यूपी सरकार ने
बीस जिलों को कर दिया
सूखाग्रस्त घोषित

कोई लाख चिल्लाए
जो जिले घोषित नहीं हुए
वो सूखाग्रस्त नहीं हैं
क्योंकि सरकार
सच बोलती है
जो भी करती है
सोच समझ कर करती है
कोई किसान मरता है
तो उसकी गलती है
सरकार की नहीं
क्योंकि
ये तो
सरकार ही देखेगी
तय करेगी
कहां बारिश हुई
कहां सूखा पड़ा
कहां ज्यादा हैं
उसके वोट बैंक
कहां विपक्षी दलों के



झूठ की मशीन
सच भी पकड़ती है
सीरियल देखकर
उसने मुझसे कहा
तुम भी जाओ
इस सीरियल में
जिससे मैं जान पाऊं
तुम कितने सच हो
क्योंकि झूट पकड़ने की मशीन
मैं घर नहीं ला सकती
पता नहीं कितनी महंगी होगी
हर रोज कहते हो
बहुत प्यार करता हूं
कम से कम पता तो चलेगा
तुम सच में
प्यार करते हो
या यूं ही बस कहते हो

दिल से निकली
हंसी खनकती है
खोखली हंसी
में
छिपा होता है
एक सन्नाटा
पहचान मुश्किल नहीं
फिर भी लोग
अक्सर पहचान नहीं पाते


हंसने की बात पर
हंसी
झरने सी बहती है
बेबात
बहते पानी की तरह
पहचान मुश्किल नहीं
फिर भी लोग
अक्सर पहचान नहीं पाते

हल

किसान
कल भी चलाते थे हल
आज भी चला रहे हैं
क्योंकि
उनकी समस्याएं
हल
नहीं हुईं


कल

कल की तो
बात ही मत करो
क्योंकि
कल कभी आज
नहीं बनता
कल...
कल रहता है


जाने कहां गए वो दिन
खुली हवा में सांसे लेना
लंबा लंबा डग भरकर
लंबी सैर पे जाना
बातें करते करते
जाने कितने लोगों को
प्रणाम कहना
हालचाल पूछना
अनजाने चेहरे को देखकर
ताज्जूब करना

खेतों से चने के पौधे
उखाड़कर
खाना
गेहूं की बालियों से
खेलना...
उछालना
हवा में
और चलते रहना

पैरों से
रस्ते में पड़े
पत्थरों को
ठोकर मारना
और देखना
कितनी दूर गए
पत्थर

जाने कहां गए वो दिन

रिक्शे के पीछे लटकना
छुपकर
ट्रैक्टर को
दौड़कर पकड़ना
फिर कूद जाना
किसी की साईकिल के
पहिए से हवा निकाल देना
किसी की सीट गायब कर देना
किसी के सिर में च्यूंगम चिपकाना
किसी को पीछे से धप्पा मारना

जाने कहां गए वो दिन

बिना शोर किए सुबह सवेरे
निकल पड़ना
फुटबॉल- क्रिकेट खेलने
और दरवाजे को बस
धीरे से सटाकर चले जाना
बिना ये सोचे
कि कोई चोर
घुस सकता है
मेरे घर से
रात अंधेरे
सावन में
कनैल के
ढेर सारे फूल तोड़ना
और फिर सुनना
माली की गाली
सच्च...
कितनी खुशी होती थी
जाने कहां गए वो दिन

वो बगिया में
आधा किलो
अमरुद खरीदना
और फिर
चार किलो से अधिक
चुराना
क्योंकि
माली चाचा को दिखता कम था
जब तक चलता था पता
हम सब हो चुके होते थे
रफूचक्कर
छोटी सी बगिया में
धमाचौकड़ी मचाना
एक दौरे में
तहस नहस करना
जाने कहां गए वो दिन

बचपन के दिन
बेफिक्री के दिन
दिन सिर्फ वर्तमान के
जिसमें नहीं होती थी
भविष्य की चिंता
चिंतन तो था ही नहीं
जाने कहां गए वो दिन


वो पतली सी पगडंडी
जिसके किनारे बहती थी पईन
जिसमें पानी
तो बस बरसात में दिखती थी
दूसरे मौसमों में
पानी ऐसे बहती थी
जैसे किसी के घर के नाली का पानी

वो पतली सी पगडंडी
जिसके किनारे
न जाने कितने फलों के थे
पेड़
कदम्ब
बेर
आम
और अमरूद
खाते न अघाते थे
लोग
हम बच्चे भी
उन पगडंडियों ने
हमारा बचपन ही देखा था
जवानी शहरों ने देखी

वो पतली सी पगडंडी
जिसके किनारे होती थी
कंटीली झाड़ियां
निकलते थे जिससे
बचकर
लेकिन कई बार
झाड़ियों ने भी बचाया हमें था

जिसपर बरसात में
होती थी फिसलन
गिरते-फिसलते
बचते बचाते
घर पहुंच जाते

वो पतली सी पगडंडी

याद है
रहेगी
ताउम्र



वो भी क्या दिन थे
झड़ी लगती थी बरसात की
मुश्किल होता था घर से निकलना
दादी की डांट,दादा की झिड़की
पानी आ रहा है,बंद करो खिड़की
बंद हो जाता था
सड़कों पर जाना
घरों में घुटता था दम
सीलन भरी दीवारें
हर तरफ पानी ही पानी

कपड़े सूखते नहीं थे
हर दिन
अलग अलग कपड़े
पहनने को मिलते थे
कभी कभी नए भी
क्योंकि गीले कपड़ों की
लग जाती थी भरमार

वो भी क्या दिन थे
आंगन में
हम बच्चे भीगते थे
दिन में कई बार
और फिर पड़ती थी
दादी की मार
रोती थी दादी
कपड़े सूखते नहीं
और ये बदमाश बच्चे
भीगने से नहीं आते
बाज

वो भी क्या दिन थे
कागज की
बनाते थे नाव
एक - दो नहीं
ढेर सारे
और फिर
शुरू होती थी
जिद
उसे बहाने की
पानी की तेज धार में
याद है...
दादा की गोद
जिसमें बैठकर
छाते में
जाते थे सड़कों पर
बहाने अपनी कागज की नाव
सड़कों पर
बहते पानी में
देख अपनी नाव
होती थी इतनी खुशी
जैसे अपनी नाव
तैर रही हो
बीच समन्दर में

वो भी क्या दिन थे
बरसात में लगती थी ठंढ
क्योंकि होता था
हर तरफ पानी ही पानी
और बहती थी
तेज हवाएं
दादी के आंचल में
छुप कर सुनते थे
राजा-रानी की कहानियां
बनता था हर दिन
गरमागरम पकौड़ियां
और खाते थे
हम बच्चे चटनी के साथ
जिसमें नहीं होती थी
मिर्च
ये भी होता था
दादी की मेहरबानी
क्योंकि
वही पीसती थी चटनी
अपने हाथों से
क्योंकि घर में नहीं था
मिक्सर-ग्राइंडर
सिल पाटी की
उस चटनी का स्वाद
आज भी याद है
जिसे याद कर
सिहर जाता हूं
क्योंकि आज भी
उस स्वाद को
ढूंढने की कोशिश करता हूं

वो भी क्या दिन थे


आम तौर पर मामलों को सीबीआई जांच की सिफारिश के लिए पीसी करने वाली सीएम मायावती ने एक हाई प्रोफाइल मामले की जांच का जिम्मा सीबी-सीआईडी को सौंपने का ऐलान किया है....लेकिन न्यायपसंद मुख्यमंत्री की ये घोषणा लोगों के गले नहीं उतर रही क्योंकि इस मामले में लखनऊ पुलिस के आला अधिकारी के साथ एक बीएसपी विधायक का नाम भी सामने आ रहा है....और कांग्रेस ....उनकी ही पार्टी के कुछ और नेताओं के नाम भी इसमें शामिल होने की आशंका जता रही है....और इसी मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग खुद रीता बहुगुणा जोशी, केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री और पूर्व गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह कर चुके हैं....इस बारे में मीडिया में कई ऐसी तस्वीरें प्रसारित हो चुकी हैं...जिनमें ये साफ साफ दिख रहा है कि रीता बहुगुणा का घर ....एक तरह से....पुलिस संरक्षण में जलाया गया.....जाहिर है....जब सत्ता किसी अपराध में शामिल हो...तो पुलिस और प्रशासन तो शामिल होगा ही....ये अलग बात है कि मामला जांच का है....लेकिन सीबी-सीआईडी मामले की कितनी निष्पक्षता से जांच कर पाएगा...सभी जानते और मानते हैं.....और ये भी जानते हैं कि क्यों मुख्यमंत्री साहिबा ने मामला सीबीआई को नहीं देकर सीबी-सीआईडी को सौंपा......जाहिर है आरोपी सरकार के करीब...जांच का जिम्मा सरकार की एजेंसी को....रिपोर्ट क्या होगा...सबको पता है....अब क्या कहना...क्या छिपाना....सैंया भये कोतवाल...अब डर काहे का


घर जलने का दर्द
सभी को होता है
सुनकर
हर दिल रोता है
घर
चाहे रीता का हो
सीता का
या फिर माया का

सच सुनने की ताकत
सबमें नहीं होती
क्योंकि सच
नुकीला होता है
सच
तीखा होता है
कड़वा होता है
रीता ने सच कहा
माया को चुभ गया

वैसे बिना जेल गए
सभी बहुत कुछ कहते हैं

लेकिन एक बार गए
फिर
नरम पड़ जाते हैं

पहले वरुण
अब रीता
वरुण भूल गए
धार्मिक कट्टरता
रीता ने कहा
माया से नहीं है
जातिगत लड़ाई

लेकिन

इतना तो है

घर जलने का दर्द
सभी को होता है
चाहे रीता हो
सीता हो
या हो माया

आज रीता रोई
भले आंसू न दिखे हों
कल सीता...गीता
फिर माया का नंबर भी
कभी तो आएगा


आज तकरीबन हर बैंक के कामकाज में एटीएम की बड़ी भूमिका है....एटीएम ने बैंकों की भीड़ को कम करने में काफी मदद की है....लेकिन जब एटीएम से निकलने लगे नकली लोट...तब...हम...आप क्या करें....जी हां ये मामला इलाहाबाद के सिविल लाइन्स इलाके की है....जहां के कर्नाटक बैंक के एटीएम से एक व्यक्ति को मिला पांच सौ रुपए का एक नकली नोट......ये मामला......सीधे सीधे बैंक और ग्राहक के बीच विश्वास का है...वैसे भी विश्वास की डोर बड़ी पतली होती है....कमजोर होती है....इलाहाबाद के एसपी राय ने एटीएम से पैसा निकाला...और जब वो अपने ऑफिस पहुंचे तब उन्हें इसका पता चला ...कि जो नोट उनके पास है वो नकली है......जाहिर है एटीएम से निकला नोट नकली तभी होगा...जब मशीन में डाला गया होगा.....एस पी राय देर शाम तक बैंक में बैठे रहे...बैंक अधिकारी ये मानने को कत्तई तैयार नहीं था कि उनके एटीएम से नकली नोट निकला है.....जाहिर है ये मानना..न मानना उनके हाथ में है लेकिन इस बात की सच्चाई का पता कैसे चलेगा.....या तो बैंक तत्काल अपने एटीएम के सभी नोटों को जांच कराता.....और जांच पड़ताल करता कि कहीं अब भी तो एक या कुछ नकली नोट नहीं हैं....अगर नहीं निकलता तो बैंक ये कह सकता था कि जो शख्स नकली नोट लेकर आया है वो गलत है......लेकिन बैंक ने ऐसी कोई भी कार्रवाई नहीं की...अति आत्मविश्वास भी हो सकता है.
बैंक अधिकारी ने अपने ग्राहक से ये भी कहा कि आप एटीएम से पैसे निकालने के बाद कई जगह घुमकर आ रहे हैं इसलिए भी ये कहना मुश्किल है कि आपने जो पैसे एटीएम से निकाले थे....ये पांच सौ का नकली नोट वहीं से मिला है....लेकिन ये कहते वक्त बैंक अफसर ये भूल गया कि एटीएम से पैसे निकालने के बाद हर कोई विश्वास के साथ घर जाता है...बाजार जाता है....अपने कामकाज में लग जाता है....ऐसा कोई नियम नहीं कि एटीएम से पैसे निकालो ....तत्काल बैंक जाओ...चेक कराओ...कि कहीं नोट नकली तो नहीं....अगर ऐसा होता तो एटीएम की जरुरत ही क्या थी.....बैंकों में थोड़ी भीड़ ही तो होती...नकली नोट मिलने की गुंजाईश तो कम ही थी..... इसलिए बैंक अफसरों का ये कहना बिल्कुल ही गलत है....अगर कोई ग्राहक इमानदारी से कोई बात कहता है तो बैंक को चाहिए कि वो भी पूरी इमानदारी से मामले की पड़ताल करे...क्योंकि जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया.....आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से नकली नोट निकल सकता है तो दूसरे बैंकों से क्यों नहीं.......यहां एक दलील ये भी है कि अब नकली और असली नोटों में फर्क इतना कम हो गया है कि बैंक अधिकारी भी इसके झांसे में आ सकते हैं...ख़ासकर एक एक नोट की चेकिंग ...जांच पड़ताल की अगर बात की जाए........मैं ऐसे कई मामलों को जानता हूं ...जिसमें लोगों को एटीएम से नकली नोट मिले और उन्होंने ये सोचकर कि कौन पुलिस...कचहरी के लफड़े में पड़े ....इसकी शिकायत करनी भी जरुरी नहीं समझी........एक से ज्यादा मामलों में बैंक अधिकारियों ने नकली नोट बदलकर ग्राहकों को चलता कर दिया.....लेकिन मेरी हर किसी से गुजारिश है कि अगर आपको कभी किसी एटीएम से नकली नोट मिले तो इसकी पुलिस में रिपोर्ट जरुर दर्ज कराएं....जिससे बैंक अफसरों को ये पता चल सके उनके ग्राहक इमानदार हैं.....और अपने अधिकारों के प्रति जागरुक भी.......क्योंकि नोट नकली हो सकते हैं पर बैंकों और ग्राहकों के बीच का विश्वास नकली नहीं...वो तो असली है....बिल्कुल असली........


क्या कभी आपने भगवान को हड़ताल पर जाते देखा है.....मेरा दावा है कि आपमें से निन्यानवे फीसदी लोग कहेंगे नहीं....लेकिन जनाब लगता है आप जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं....भगवान भी हड़ताल पर जा सकते हैं....और जाते भी हैं....याद कीजिए....कुछ याद आया नहीं न.....एक बार फिर याद कीजिए....अब भी याद नहीं आया......चलिए मैं ही बता देता हूं .....भगवान कब कब हड़ताल पर गए...या जाते हैं....जबसे हमने होश संभाला.....हम...से का मतलब हम सभी से है.....यही सुनता आया हूं कि धरती पर डॉक्टर्स भगवान का रुप होते हैं....यानी आसमान के भगवान की तरह धरती के भगवान हैं डॉक्टर्स...अब तो आप समझ गए होंगे....बिल्कुल सही.....आजकल यूपी के कई बड़े शहरों के जूनियर भगवान हड़ताल पर हैं....जूनियर भगवान मतलब...जूनियर डॉक्टर्स.....अब भगवान ही हड़ताल पर हों तो लोग मरेंगे ही.....उन्हीं के आसरे पर तो पूरी दुनिया है....दुनिया मतलब धरती.....तो कानपुर में वही चौदह पंद्रह ने दम तोड़ा...तो इलाहाबाद में एक दो लोगों की सासें बंद हो गईं.....लेकिन इससे भगवान को कोई लेना देना नहीं.....क्योंकि ये भगवान खाते पीते ...बोलते चालते भगवान हैं....इन्हें चाहिए.....नॉन प्रैक्टिसिंग एलाऊंस...अब ये मत पूछिए कि भगवान को कैसा भत्ता.....क्योंकि ये भगवान धरती के हैं.....और इन्हें खाने पीने रहने के लिए पैसे की जरुरत भी होती है.....


घर से निकलने से पहले
करता हूं आपको प्रणाम
घर से निकलते ही
सोसायटी में कारों पर
देखता हूं आपकी तस्वीर
सिर झुक जाता है
खुद-ब-खुद
कहना नहीं पड़ता
बस में चढ़ा
आगे के शीशे पर दिखी
आपकी
एक नहीं ....कई तस्वीरें
अलग अलग मुद्राओं में
एक बार फिर नमन आपको
बस की खिड़की से
दिखती है
हर रोज आपका मंदिर
मंदिर पर लगा साईनबोर्ड
जिसमें हैं
आपकी अनुपम तस्वीरें
फिर सिर झुक गया
खुद -ब - खुद
ऑफिस में मंदिर है
मंदिर में है
आपकी
झक्क सफेद प्रतिमा
हाथ जुड़ जाते हैं
सिर झुक जाता है
आपको देखकर
बंधती है
एक उम्मीद
जीवन में खुशी का
लोग कहते हैं भगवान कहां है..
मैं तो कहता हूं
हर कहीं है
बस रुप अलग है
देखने वाले की नज़र है
किसी को
हर तस्वीर में नजर आते हैं साईं
किसी को कोई
तस्वीर ही नहीं दिखती

एक मोड़ पर
मैंने देखा
सच का चेहरा
बुझा-बुझा सा
रुखे बाल
सूखापन हर कोने में
पसीने से लथपथ
झुर्रियां भरी जवानी में
धंसी-धंसी आंखें
स्मित विहीन
मैंने सोचा
पुछें...
क्या हाल बना रखा था
पर ..फिर सोचा
जले पर नमक न लगे
छोड़ दिया
अगले मोड़ पर
झुठ मिला
चेहरे पर हों
दीप जले से
ताजा फूलों सा
खिला-खिला सा
गाल गुलाबी
नैन शराबी
हर बात पर
मुस्कान बिखेरता
पूछ ही बैठा
कैसे हो
उत्तर मिला
समय के साथ चलता हूं
और कोई राज नहीं
यही फर्क है
झुठ और सच में
एक समय के साथ
चलता है
एक कोशिश करता है
कोशिस क्या..हिमाकत कहिए
समय को
अपने साथ चलाने की