आईसीसी यानी क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष माननीय शरद पवार साहब लगता है जनता के नुमाइंदे कहलाते तो हैं लेकिन हैं नहीं...अगर होते तो अपने मंत्रालय से संबंधित विभागों पर नियंत्रण रखते...लेकिन जनाब तो ये तो अपने मंत्रालय से भी खेलते हैं...कभी बैटिंग करते हैं तो कभी बॉलिंग...और इन्हें ऐसा गुमान है कि ये हर बार जीतते हैं...और हार जाती है जनता बेचारी....और तो और जनाब इनकी जुबान भी काली है....जिस जिस चीज का नाम इनकी जुबान पर आता है ...कीमतें सीधी उपर चढ़ने लगती हैं....अब इन्हें कौन समझाए...इतने बड़े ओहदे पर बैठा आदमी ...भला आम आदमी के उपयोग की चीजों का नाम कभी लेता है भला.....मैंने तो कभी किसी मंत्री को अपने विभाग से संबंधित चीज का नाम लेते नहीं सुना....लेने की जरूरत ही क्या है....वो चीज तो उनके घर की हो जाती है....और जो चीज घर की उसका नाम क्या लेना....जब सोचा हाजिर........नाम लेना हो तो उनके सेक्रेटरी-पी ए लें उस चीज का नाम...लेकिन साहब इन्हें तो अपने मंत्रालय की हर उस चीज का नाम पता है ...जिसमें इनके नाम लेने मात्र से लग जाती है आग...आग भी ऐसी जिससे निकलती है उंची उंची लपटें...और आम आदमी उसमें झुलस जाता है......अब भला इतने बड़े ओहदेदार...सीनियर मंत्री के बारे में कोई क्या कहे....इतने बड़े मंत्री हैं कि कभी पीएम बनने का ख्वाब देखते थे....ये अलग बात है कि अब वो क्रिकेट का पीएम बन चुके हैं.....कभी गेहूं की किल्लत की बात कही....तो गेहूं के दाम बढ़ गए...कभी चीनी का नाम लिया...तो चीनी को चढ़ गई.....अब ये अलग बात है एफसीआई के गोदामों में या गोदाम के बाहर करोड़ों रुपए का अनाज सड़ जाता है ...अब इसमें इनकी क्या गलती...जनाब अनाज है तो सड़ेगा ही.....इतने बड़े देश में थोड़ा बहुत अनाज सड़ गया तो मंत्री जी क्या करें....और क्या इतना बड़ा मंत्री हर गोदाम और रेलवे स्टेशनों पर पड़े गेहूं की देखभाल करता रहेगा.....सवाल ही नहीं है...मंत्री हैं कोई संतरी थोड़े न हैं कि देखते रहें...देखने का काम करें.....संतरी....अब इन टीवी वालों की इसकी समझ ही नहीं ..वो तो चाहते हैं मंत्री जी दिन रात गोदामों में और गोदामों के बाहर पड़े अनाजों की रखवाली करें...जो संभव ही नहीं....अब टीवी वालों को तो मसाला चाहिए दिखाने का...मिल गया तो इतने बड़े मंत्री जी को लपेट लिया.....हल्ला मचाने लगे कि करोड़ों का अनाज सड़ गया.....टीवी वाले हर चीज को पर्सनल बना लेते हैं.....करोड़ों का अनाज न हुआ क्या हो गया.....सरकार की हर बात करोड़ों से शुरू होती है तो अनाज भी तो करोड़ों का ही सड़ेगा न...... सच पूछिए जनाब तो मुझे पवार साहब से कोई शिकायत नहीं....अब इतने बड़े मंत्री हैं तो अपनी पावर नहीं दिखाऐंगे क्या......चुनाव लड़ना होता है...चुनाव में करोड़ों खर्च होते हैं...कौन देगा....ये टीवी वाले......अब तो इनका ओहदा भी बढ़ गया है....इन्टरनेशनल क्रिकेट काउंसिल यानी आईसीसी के ये बन गए हैं अध्यक्ष.....और कभी कभी तो लगता है जैसे टीवी वाले कुछ खास मंत्रियों के जानी दुश्मन हैं.....इनमें एक हैं अपने पवार साहब...पीएम से मिले तो खबर....न मिलें तो खबर....पीएम से मिले तो हल्ला मच गया कि पवार साहब विभाग कम कराने के लिए मिले हैं प्रधानमंत्री साहब से....भला कोई अपना मंत्रालय कम कराना चाहेगा....वो भी इस कलियुग का कोई मंत्री....टीवी वालों का भी न....लगता है दिमाग फिर गया है...अनाप शनाप जो दिमाग में आता है दिखा देते हैं.....अपने पवार साहब तो ऐसे हैं कि जब चाहें...पीएम से दो चार विभाग और मांग लें....लेकिन ये बातें टीवी वालों को थोड़े न पता है.....मुझे पता है इसलिए कह रहा हूं........


आप जो भी अखबार उठा लें...हर तरफ यही लिखा है कि बिहार में पिछले एक सप्ताह में तीन बंद से बिहारवासी त्रस्त हो गए, बेहाल हो गए...लेकिन जनाब क्या कभी आपने सोचा है कि ये बंद कितना जरूरी है...नहीं सोचा होगा...अपने आप से आगे सोचने की फुर्सत मिले तब तो सोचेंगे आप......आप कमाने धमाने के लिए ऑफिस जाते हैं, दुकान खोलते हैं, रेहड़ी लगाते हैं, अखबार बेचते हैं, चैनल चलाते हैं, रिश्वत लेते हैं-देते हैं....और भी न जाने क्या कया करते धरते हैं...तो जनाब इसी तरह राजनीति पार्टियों की दुकान चलती है रैलियों से, विरोध प्रदर्शन से, हड़ताल से , बंद से, लट्ठम लठाई से.....यानी राजनीतिक पारक्टियों की दुकान चलती रहे...इसके लिए जरूरी है कि बंद-हड़ताल आदि होते रहें.....
अब ये कतई जरूरी नहीं कि सरकार अच्छा काम कर रही हो और विपक्ष बंद न करे...हड़ताल न करे....जनाब सरकार किसी की रहे...विकास की गंगा बहाने का दावा कर रहे नीतीश कुमार की या लगातार महंगाई बढ़ाने वाले मनमोहन सिंह की...या फिर दलितों का उत्थान करने का संकल्प लेने का दम भरने वाली मायावती की......विपक्ष तो अपना काम करता रहेगा....वजह साफ है चुनाव में उन्हें भी जनता को दिखाना है कि हम भी कुछ करते हैं...कर सकते हैं....करना चाहते हैं....अब ये अलग बात है कि वो कुछ करना चाहें या न करना चाहें.......यही वजह है कि एनडीए,वामपंथियों और दूसरे दलों ने मिलकर भारत बंद का आह्वान किया तो मायावती ने अकेले दम पर यूपी में महंगाई का विरोध कर सोनिया-मनमोहन को चुनौती देने की कोशिश की......अब ऐसे में आरजेडी के लालू और एलजेपी के रामविलास भला कहां पीछे रहने वाले थे...उन्होंने भी अपने बिहार में बंद का आयोजन कर महंगाई का विरोध किया वो भी अपने अंदाज में...लेकिन ये महंगाई के विरोध में कम था नीतीश सरकार को चुनौती देना ज्यादा लगा......लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा...राजनीति की दुकान चलाने के लिए ये भी जरूरी था.....जनता लाख चिल्लाए...मरे...अपनी बला से......रोजी-रोटी सबकी चलनी चाहिए.....बीजेपी की भई,जदयू की भी,आरजेडी की भी,लोजपा की भी,बसपा की भी...और कांग्रेस तो गोदाम पर कब्जा किए बैठी है...उसकी तो बात ही मत कीजिए..........