बस में काफी भीड़ थी...अपने पैरों पर खड़ा होना भी मुश्किल लग रहा था....कोई सीट खाली होती तो लोग उस पर बैठने के लिए आपाधापी करने लगते...तभी एक सीट खाली हुई....एक बुजुर्ग ..जो सीट के करीब खड़े थे...ने आवाज लगाई...बहन जी आप बैठ जाओ ...आपको दिक्कत हो रही है....आ जाओ...जल्दी.....महिला भी लपककर आई..और सीट पर बैठ गई....अगले स्टॉप पर भी एक सज्जन उतरे....बुजुर्ग व्यक्ति ने वहां भी खुद बैठना मुनासिब नहीं समझा और एक दूसरी महिला को सीट पर बैठने के लिए जगह छोड़ दिया......थोड़ी देर बाद आए एक स्टॉप पर एक साहब सीट छोड़कर नीचे उतरने लगे...बुजुर्ग व्यक्ति को लगभग धकियाकर एक युवक आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा....उस वृद्ध व्यक्ति ने उसे समझाया....तुम्हारी उम्र ही क्या है...तुम तो खड़े रह सकते हो...जवान हो....मुझे बैठने दो....दस बारह किलोमीटर का और सफर है.....अरे बाबा...मैं आपकी तरह परोपकारी नहीं...परोपकारी बनूंगा तो रोज खड़े ही सफर करना पड़ेगा....और आगे बढ़कर वो युवक धम्म से सीट पर विराजमान हो गया.....बुजुर्गवार ने कुछ नहीं कहा....सोचने लगे...ये अंतर शायद पीढ़ी का है.....और कुछ संस्कार का भी.....

आईसीसी यानी क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष माननीय शरद पवार साहब लगता है जनता के नुमाइंदे कहलाते तो हैं लेकिन हैं नहीं...अगर होते तो अपने मंत्रालय से संबंधित विभागों पर नियंत्रण रखते...लेकिन जनाब तो ये तो अपने मंत्रालय से भी खेलते हैं...कभी बैटिंग करते हैं तो कभी बॉलिंग...और इन्हें ऐसा गुमान है कि ये हर बार जीतते हैं...और हार जाती है जनता बेचारी....और तो और जनाब इनकी जुबान भी काली है....जिस जिस चीज का नाम इनकी जुबान पर आता है ...कीमतें सीधी उपर चढ़ने लगती हैं....अब इन्हें कौन समझाए...इतने बड़े ओहदे पर बैठा आदमी ...भला आम आदमी के उपयोग की चीजों का नाम कभी लेता है भला.....मैंने तो कभी किसी मंत्री को अपने विभाग से संबंधित चीज का नाम लेते नहीं सुना....लेने की जरूरत ही क्या है....वो चीज तो उनके घर की हो जाती है....और जो चीज घर की उसका नाम क्या लेना....जब सोचा हाजिर........नाम लेना हो तो उनके सेक्रेटरी-पी ए लें उस चीज का नाम...लेकिन साहब इन्हें तो अपने मंत्रालय की हर उस चीज का नाम पता है ...जिसमें इनके नाम लेने मात्र से लग जाती है आग...आग भी ऐसी जिससे निकलती है उंची उंची लपटें...और आम आदमी उसमें झुलस जाता है......अब भला इतने बड़े ओहदेदार...सीनियर मंत्री के बारे में कोई क्या कहे....इतने बड़े मंत्री हैं कि कभी पीएम बनने का ख्वाब देखते थे....ये अलग बात है कि अब वो क्रिकेट का पीएम बन चुके हैं.....कभी गेहूं की किल्लत की बात कही....तो गेहूं के दाम बढ़ गए...कभी चीनी का नाम लिया...तो चीनी को चढ़ गई.....अब ये अलग बात है एफसीआई के गोदामों में या गोदाम के बाहर करोड़ों रुपए का अनाज सड़ जाता है ...अब इसमें इनकी क्या गलती...जनाब अनाज है तो सड़ेगा ही.....इतने बड़े देश में थोड़ा बहुत अनाज सड़ गया तो मंत्री जी क्या करें....और क्या इतना बड़ा मंत्री हर गोदाम और रेलवे स्टेशनों पर पड़े गेहूं की देखभाल करता रहेगा.....सवाल ही नहीं है...मंत्री हैं कोई संतरी थोड़े न हैं कि देखते रहें...देखने का काम करें.....संतरी....अब इन टीवी वालों की इसकी समझ ही नहीं ..वो तो चाहते हैं मंत्री जी दिन रात गोदामों में और गोदामों के बाहर पड़े अनाजों की रखवाली करें...जो संभव ही नहीं....अब टीवी वालों को तो मसाला चाहिए दिखाने का...मिल गया तो इतने बड़े मंत्री जी को लपेट लिया.....हल्ला मचाने लगे कि करोड़ों का अनाज सड़ गया.....टीवी वाले हर चीज को पर्सनल बना लेते हैं.....करोड़ों का अनाज न हुआ क्या हो गया.....सरकार की हर बात करोड़ों से शुरू होती है तो अनाज भी तो करोड़ों का ही सड़ेगा न...... सच पूछिए जनाब तो मुझे पवार साहब से कोई शिकायत नहीं....अब इतने बड़े मंत्री हैं तो अपनी पावर नहीं दिखाऐंगे क्या......चुनाव लड़ना होता है...चुनाव में करोड़ों खर्च होते हैं...कौन देगा....ये टीवी वाले......अब तो इनका ओहदा भी बढ़ गया है....इन्टरनेशनल क्रिकेट काउंसिल यानी आईसीसी के ये बन गए हैं अध्यक्ष.....और कभी कभी तो लगता है जैसे टीवी वाले कुछ खास मंत्रियों के जानी दुश्मन हैं.....इनमें एक हैं अपने पवार साहब...पीएम से मिले तो खबर....न मिलें तो खबर....पीएम से मिले तो हल्ला मच गया कि पवार साहब विभाग कम कराने के लिए मिले हैं प्रधानमंत्री साहब से....भला कोई अपना मंत्रालय कम कराना चाहेगा....वो भी इस कलियुग का कोई मंत्री....टीवी वालों का भी न....लगता है दिमाग फिर गया है...अनाप शनाप जो दिमाग में आता है दिखा देते हैं.....अपने पवार साहब तो ऐसे हैं कि जब चाहें...पीएम से दो चार विभाग और मांग लें....लेकिन ये बातें टीवी वालों को थोड़े न पता है.....मुझे पता है इसलिए कह रहा हूं........


आप जो भी अखबार उठा लें...हर तरफ यही लिखा है कि बिहार में पिछले एक सप्ताह में तीन बंद से बिहारवासी त्रस्त हो गए, बेहाल हो गए...लेकिन जनाब क्या कभी आपने सोचा है कि ये बंद कितना जरूरी है...नहीं सोचा होगा...अपने आप से आगे सोचने की फुर्सत मिले तब तो सोचेंगे आप......आप कमाने धमाने के लिए ऑफिस जाते हैं, दुकान खोलते हैं, रेहड़ी लगाते हैं, अखबार बेचते हैं, चैनल चलाते हैं, रिश्वत लेते हैं-देते हैं....और भी न जाने क्या कया करते धरते हैं...तो जनाब इसी तरह राजनीति पार्टियों की दुकान चलती है रैलियों से, विरोध प्रदर्शन से, हड़ताल से , बंद से, लट्ठम लठाई से.....यानी राजनीतिक पारक्टियों की दुकान चलती रहे...इसके लिए जरूरी है कि बंद-हड़ताल आदि होते रहें.....
अब ये कतई जरूरी नहीं कि सरकार अच्छा काम कर रही हो और विपक्ष बंद न करे...हड़ताल न करे....जनाब सरकार किसी की रहे...विकास की गंगा बहाने का दावा कर रहे नीतीश कुमार की या लगातार महंगाई बढ़ाने वाले मनमोहन सिंह की...या फिर दलितों का उत्थान करने का संकल्प लेने का दम भरने वाली मायावती की......विपक्ष तो अपना काम करता रहेगा....वजह साफ है चुनाव में उन्हें भी जनता को दिखाना है कि हम भी कुछ करते हैं...कर सकते हैं....करना चाहते हैं....अब ये अलग बात है कि वो कुछ करना चाहें या न करना चाहें.......यही वजह है कि एनडीए,वामपंथियों और दूसरे दलों ने मिलकर भारत बंद का आह्वान किया तो मायावती ने अकेले दम पर यूपी में महंगाई का विरोध कर सोनिया-मनमोहन को चुनौती देने की कोशिश की......अब ऐसे में आरजेडी के लालू और एलजेपी के रामविलास भला कहां पीछे रहने वाले थे...उन्होंने भी अपने बिहार में बंद का आयोजन कर महंगाई का विरोध किया वो भी अपने अंदाज में...लेकिन ये महंगाई के विरोध में कम था नीतीश सरकार को चुनौती देना ज्यादा लगा......लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा...राजनीति की दुकान चलाने के लिए ये भी जरूरी था.....जनता लाख चिल्लाए...मरे...अपनी बला से......रोजी-रोटी सबकी चलनी चाहिए.....बीजेपी की भई,जदयू की भी,आरजेडी की भी,लोजपा की भी,बसपा की भी...और कांग्रेस तो गोदाम पर कब्जा किए बैठी है...उसकी तो बात ही मत कीजिए..........


जब से गर्मी का महीना शुरू हुआ है तब से घरवालों से जब भी बात होती है तो रुह कांप जाती है...इस भयंकर गर्मी के मौसम में चार से पांच घंटे बिजली मिल पाती है....जिससे भी बात कीजिए ...बात घुम-फिरकर आ जाती है बिजली पर.....बड़ा बुरा हाल है बेटा बिजली रहती ही नहीं.....इन्वर्टर चार्ज तक नहीं हो पाता और इस भयंकर गर्मी में तो ऐसा लगता है जैसे नरक में पूर्व जन्मों के पापों की सजा भोग रहा हूं......ऐसी बातों से कोफ्त भी होती है, गुस्सा भी आता है..... लेकिन जब सोचने लगता हूं तो लगता है कोई भी सरकार करे तो क्या करे.....बिजली आपूर्ति करना कोई पियाऊ खोलने जैसा तो है नहीं.....लोगों को बिजली चोरी की आदत लगी है....बिजली खर्च करेंगे हजार का बिल जमा करेंगे सौ रुप्य्या...सरकार करे तो क्या करे.....और यही वजह है कि दम ठोंक कर बिहार में बिजली आपूर्ति के लिए कोई पार्टी.....कोई संगठन आगे नहीं आता.....सबको पता है कि बिहार में बिजली उत्पादन कितना होता है.....खरीदकर सरकार दान में बिजली सप्लाई करे तो क्यों करे.....लेकिन बिहार के लोग इस बात को समझने के लिए कतई तैयार नहीं...और जो समझना चाहते हैं उन्हें निरा बेवकूफ समझा जाता है....जबकि लोग ये भूल जाते हैं कि अगर बिजली आपूर्ति के मुताबिक बिल का भुगतान होने लगे तो सरकार को मिलने वाला राजस्व तो बढ़ेगा ही.....व्यापार और उद्योग-धंधे भी तेजी से प्रगति करेंगे.....गांव-देहात की नहीं जिला मुख्यालयों में चार से पांच घंटे बिजली आपूर्ति के कारण बिजली से चलने वाले उपकरण का व्यापार , इन्वर्टर का व्यापार, लघु, मध्यम तथा वृहत आकार के उद्योग धंधों की दुकानदारी बाबा आदम के जमाने की चल रही है.....लोग सोचने हैं एसी – कूलर क्यों खरीदें ...जब बिजली ही नहीं होगी..तो पैसा क्यों खर्च करें....जब अट्ठारह-उन्नीस घंटे बिना एसी-कूलर के रहेंगे...तो चार –पांच घंटे और सही.....अब जेनरेटर बाले लोग पांच फीसदी से ज्यादा तो हैं नहीं...लिहाजा व्यापार उद्योग के विकास का अंदाजा लगाना सरल है.....यानी बात वहीं ढाक के तीन पात.....
लेकिन इस मामले में सरकार भी कम दोषी नहीं.....सरकार कांग्रेस की रही हो.....लालू राबड़ी की हो या फिर नीतीश की.....हर राज्य बिजली आपूर्ति, वितरण और बिल भुगतान का काम निजी क्षेत्रों को सौंप रहा है.....और सरकार की एजेंसियां खुद मॉनिटरिंग कर रही है...लेकिन बिहार में बिजली चोरी की समस्या आज भी विकराल है....ये उपभोक्ताओं की नासमझी भी है और मूर्खता भी.....जो कम बिल का भुगतान कर.....बिजली ऑफिस के बाबू – इंजीनियर को कुछ रिश्वत देकर सोच लेते हैं कि बाजी मार ली.....जबकि हकीकत में बाजी उनके हाथ से निकलती जा रही है....और यही वजह है उनके घरों में आज बल्ब चौबीस घंटे में महज चार – पांच घंटे ही जल पाते हैं.....फ्रिज में हर वक्त ठंढा पानी नहीं होता....एसी-कूलर घर की शोभा के सामान बन जाते हैं......लेकिन इस बारे में उन्हें ही सोचना होगा.....कि वो सही तरीके से बिजली बिल का भुगतान करें....खुद भी चैन से रहें और औरों को भी रहने दें.....जाहिर से सरकार से हम सुविधाओं की मांग तभी प्रभावकारी तरीके से कर सकते हैं जब हम अपनी ओर से इमानदार हों........


वर्ल्ड कप का आगाज हो चुका है ...देश में फुटबॉल के दीवानों की कमी नहीं...मीडिया को हर दिन कई घंटे फुटबॉल की कहानी कहने का बहाना मिल चुका है.....अखबारों में कई पन्नों में छपने लगी वर्ल्ड कप की खबरें......ये अलग बात है कि एक अरब से ज्यादा जनसंख्या वाले इस देश में बारह चौदह अव्वल दर्जे के फुटबॉल खिलाड़ी पैदा करने का माद्दा नहीं.....करोड़ों – अरबों रुपये नेताओं की चाटूकारिता और उनके ऐशो-आराम पर खर्च करने वाले इस देश में खिलाड़ियों को मांजने ...उन्हें तैयार करने के लिए पर्याप्त रुपये नहीं निकलते...और जो निकलते हैं उनका सही खर्च नहीं होता.....हमें विदेशी खिलाड़ियों की चर्चा तक ही सीमित रहना पड़ता है.....ये अलग बात है कि फुटबॉल दूर दराज के देहात से लेकर शहर तक खेला और देखा जाता है.....लेकिन क्रिकेट की तरह इसके लिए हमारे पास अच्छे विश्वस्तरीय खिलाड़ी नहीं......ये हमारे लिए शर्म नहीं तो और क्या है......छोटी-छोटी जनसंख्या वाले छोटे छोटे देश वर्ल्ड कप जीतने की बात करते हैं और हमें उसमें जगह बनाने के लिए ...या यूं कहें तो क्वालिफाइंग मैच खेलने के लिए करनी पड़ती है कड़ी मशक्कत...... जाहिर है हमारे पास नहीं है कोई पुख्ता खेल नीति.....खेल के लिए हमारी सारी नीतियां क्रिकेट तक ही सीमित हैं......


भोपाल गैस कांड पर फैसला आने के बाद तत्कालीन कलक्टर और एसपी को सच बोलना महंगा पड़ सकता है....क्योंकि ये देश तो है नेताओं का....खबर ये है कि वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप में दोनों अधिकारियों पर मामला दर्ज करने के लिए याचिका दर्ज की गई है...जिसकी सुनवाई दो जुलाई को होगी....एक बार फिर ये साफ हो गया कि इन सबके पीछे हो रही है सिर्फ और सिर्फ राजनीति....किसी ने तत्कालीन सरकारों और उन सरकारों के तत्कालीन तथाकथित मुखिया के खिलाफ याचिका दर्ज कराने की हिम्मत नहीं दिखाई....जाहिर है याचिका दर्ज कराने वाले लोगों में वो लोग शामिल हो सकते हैं ...जिन पर आरोपों की बौछार हो रही है......वैसे भी एक –दो अपवादों को छोड़ दें तो आजतक किसी आरोपी राजनीतिज्ञ पर आरोप तय ही नहीं होता....और जब आरोप ही तय नहीं होगा...तो सजा तो मिलने से रही......ये अलग बात है कि इसकी एक सबसे बड़ी वजह इन तथाकथित राजनीतिज्ञों का मौखिक आदेश होता है ...जिससे वो जब चाहें....जहां चाहें मुकर सकते हैं.......और उपर से नीचे...यानी निम्न से उच्च और यहां तक कि उच्चतर न्यायपालिका भी राजनीति के गहरे गिरफ्त में है....आजाद होने का महज ढोंग किया जाता है......जनता को ...व्यवस्था को बेवकूफ बनाने के लिए......बात अर्जुन सिंह की हो......या फिर तत्कालीन केंद्र सरकार के मुखिया की...सभी अमेरिका परस्त थे....आज भी हैं.....और ऐसे में आज भी वो वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण पर कोई गंभीर कदम उठायेंगे.....ऐसा सोचना भी मूर्खता होगी.....आज की सरकार को एंडरसन को सजा दिलाने की न तो मंशा है.....और न ही उसने इस बारे में खुलकर कुछ कहने की जहमत उठाई है.......और जिन्होंने सच कहने की हिम्मत दिखाई उनके खिलाफ याचिका दर्ज कर उन्हें चुप कराने की साजिश जरुर रची जा रही है......ये है राजनीति की सच या यूं कहें तो सच में राजनीति........


करीब पच्चीस साल बाद भोपाल के यूनियन कारबाईड कंपनी से गैस रिसाव की बड़ी घटना के लिए दोषी लोगों को सुनाया गया सिर्फ दो साल की अधिकतम सजा...ऐसी सजा जो गैर जिम्मेदार तरीके से सड़क पर वाहन चलाने वालों को दी जाती है.....इसके लिए हम अपने न्यायपालिका को दोष दें या फिर सरकारी मशीनरी की....जिसके लिए पच्चीस हजार लोगों की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती.....एक पीढ़ी के मानसिक और शारीरिक रुप से विकलांग होने की स्थिति शायद उतनी गंभीर नहीं है....फैसले का टीवी चैनलों और मीडिया माध्यमों को जितना बेसब्री से इंतजार था उससे ज्यादा बेकरार थे गैस पीड़ित....और उनके परिजन, जिन्हें वारेन एंडरसन, केशव महिन्द्रा समेत सभी आरोपी किसी दरिंदे से कम नहीं दिख रहे थे.....उनकी आंखें कड़ी से कड़ी सजा सुनने के लिए आतुर थीं....लेकिन जब जज साहब ने फैसला सुनाया तो एकबारगी उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई.....मीडिया को बहस का मौका मिल गया लेकिन गैस पीड़ितों और उनके परिजनों के दिलों पर सांप लोटने लगा.....उन्हें लगा मानो न्यायपालिका ने उनकी बेबसी, उनके दुख दर्द का भद्दा मजाक उड़ाया है......तभी तो कानून मंत्री तक को ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि फैसले में न्याय दफन हो गया है.......सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जो भी कहें लेकिन हकीकत तो यही है कि भोपाल गैस कांड के फैसले ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमारी न्यायपालिका क्या बिल्कुल संवेदनहीन है....जिसके लिए पच्चीस हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगियां किसी काम की नहीं......और जब इतना कमजोर फैसला सुनाया जाएगा और दोषी बड़ी कंपनियों के आला ओहदेदार होंगे तो जमानत उसी दिन मिलना भी लाजमी है........
हां...ये फैसला आने के बाद जो बातें खुलकर सामने आ रही हैं वो और भी दुखद हैं....पहली ये कि कंपनी समूह के अध्यक्ष वारेन एंडरसन को सरकारी मशीनरी ने भारत से भागने के लिए कॉरिडोर दी.....प्लेन मुहैया कराया ....जबरन जमानत दिलाई...और ये सब हुआ केंद्र और राज्य सरकार के बड़े ओहदों पर काबिज लोगों की वजह से....उनके इशारे पर....ताकि अमेरिका से हमारे रिश्ते मजबूत बने रहें....अगर किसी देश की सरकार अपने पच्चीस हजार लोगों की मौत के दोषी के सामने इतनी शालीनता से पेश आयेंगे तो जाहिर है विदेश से उनके रिश्ते मजबूत तो होंगे ही.....और देश के पच्चीस क्या पचास हजार लोगों की जिंदगियों का क्या...करोड़ों – अरबों की जनसंख्या का ये तो एक फीसदी भी नहीं......मरे तो अपनी बला से.....वोट की राजनीति चलती रहेगी.....एक-दो पीढ़ियां अपंग होती हैं..तो होने दो...उसके बाद की पीढ़ी तो ठीक हो जाएगी......ओबामा, क्लिंटन या फिर बुश से रिश्ते तो नहीं बिगड़ेंगे........ऐसे मौकों पर राहुल गांधी, सोनिया गांधी या फिर मनमोहन सिंह को पीसी करने की जरुरत भी नहीं दिखी...क्योंकि इन सारी करतूत में कांग्रेस नंगी हो चुकी है......गृह मंत्री ने जरुर एक समिति बनाने की घोषणा कर अपने नंगेपन को केले के पत्ते से ढंकने की कोशिश की.....लेकिन उन्हें नहीं पता कि हवा के एक झोंके में वे फिर नंगे हो जायेंगे..........




मेडिकल काउंसिल अध्यक्ष के घर से मिले 1800 करोड़ से ज्यादा का सोना.....इसे हाल ही में सीबीआई ने रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था...सीबीआई ने रिश्वत लेते गिरफ्तार किए एमसीआई अध्यक्ष डॉ. केतन देसाई के अहमदाबाद, दिल्ली और पंजाब स्थित घर पर छापेमारी की। देसाई व उनके सहयोगियों के घरों पर छापेमारी के बाद वहां से ढेरों अहम दस्तावेज जब्त किए गए,जिसे जांच एजेंसी ने स्क्रूटनी के लिए भेज दिया है.....सीबीआई अभी केवल दस्तावेजों की प्रामाणिकता और देसाई के काली कमाई के बारे में छानबीन कर रही है। सीबीआई अब यह भी पता करने की कोशिश कर रही है कि देसाई और परिवार के सदस्यों के नाम से कितनी संपत्ति है.....ये सब संभव इसलिए हो पाया क्योंकि केतन देसाई की राजनीतिक जड़े गहरी नहीं थीं...अगर गहरी होती तो अव्वल छापेमारी नहीं होती.....जनाब रिश्वत लेते पकड़े ही नहीं जाते.....इसलिए अगर आप रिश्वत लेते हैं तो राजनीति में पैठ बनाईए......खासकर सत्ताधारी नेताओं में...खाईए और खिलाईए....आपकी बाल भी बांका नहीं होगा......ललित मोदी भी राजनीति से पंगा लेने में गए...और भी कई नमूने मिल जायेंगे....जिसने राजनीति से पंगा लिया.....उसकी जड़े खुद गई.....पद भी गया.....और छापेमारी भी हुई....लेकिन जिसकी राजनीति में गहरी जड़े होती है....या जो खुद राजनीति में होता है....उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.....चारा घोटाले में लालू का क्या हुआ.....निर्दलीय विधायक से मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा को ही लीजिए...अब तो चर्चा भी नहीं होती...और फिर धीरे धीरे सबकुछ फिट हो जाएगा.......राजनीतिज्ञों के लिए तो लगता है सौ खून माफ है....जो चाहो करो...सबका लाईसेंस मिल जाता है सिर्फ राजनीति करने से......इसलिए अगर आप भी कोई गलत काम करते हैं.....रिश्वत लेते हैं......आय के श्रोत से अधिक की संपत्ति अर्जित कर लिया है...तो आपके पास बस एक ही रास्ता है.....राजनीति को अपने करीब ले आईए....या उसी में समा जाईये...मजाल है कोई छू भी ले.....सब राजनीति के दास हैं.....और जब आप राजनीति के पास हो जायेंगे तो वो भी आपका दास हो जाएगा.............



अखबार में प्रधानमंत्री का एक बयान पढ़ा...देश की सबसे बड़ी समस्या हैं नक्सली...गलत... सरासर गलत......पीएम भी झूठ बोलते हैं...इतने बड़े ओहदे पर बैठा शख्स भी सच बोलने से डरता है या फिर जानबूझकर सच नहीं बोलना चाहता......देश की सबसे बड़ी समस्या तो है राजनीति......सड़ी-गली गंदी राजनीति......जिसमें इतनी गंदगी है कि उसे साफ करने के लिए सभी राजनेताओं को लेना पड़ेगा संन्यास.....या फिर निकाल फेंकना पड़ेगा राजनीति से.....क्योंकि एक भी रहे तो फिर गंदगी बढ़ती ही जाएगी......कहीं भी मामला करप्शन का हो...नेताओं का नाम जरुर आता है ...बात चाहे चारा घोटाले की हो.....बोफोर्स घोटाले की या फिर ताजा आईपीएल घोटाले की....हर घोटाले की जड़ राजनीति की दलदली जमीन में ही नजर आती है......ये अलग बात है कि आजतक किसी बड़े नेता को न तो सजा हुई...और अगर यही हाल रहा तो आगे भी नहीं होगी......और पीएम हों या सीएम.....राजनीति को दोष क्यों दें भला...उनकी दुकानदारी तो उसी से चल रही है.......इसलिए पीएम साहब ...देश में नक्सली कोई समस्या नहीं है....समस्या की जड़ को पहचानिए...जनता बेवकूफ नहीं ...काफी समझदार है............नक्सली समस्या की जड़ में भी यही गंदी राजनीति है......एक कहता है कार्रवाई करो...दूसरा कहता है नहीं करो.....एक उसका विरोध करता है ...दूसरा समर्थन.....एक चुनाव में उनकी सहायता लेता है ....उन्हें रुपए भिजवाता है...तो कई रात के घुप्प अंधेरे में जाकर मिलते हैं....कि भईया साथ देना.....तुम्हारा साथ जरुरी है....लेकिन दिन के उजाले में बात करेंगे नक्सल और नक्सली के विरोध की........ऐसे दूर होगी देश से नक्सली समस्या......जैसे राजनेताओं ने गरीबी हटाई....उसी तरह अब भी हटायेंगे नक्सी समस्या को........


भारत भी गजब का देश है...जहां एक ही दिन कहीं कोई नेतागिरी नहीं करने का उपदेश देता है तो कहीं मिल जाता है सेना में स्थायी रूप से काम करने का मौका...लंबे समय से महिलाओं को पैर की जूती, अबला तेरी यही कहानी .... और न जाने क्या क्या कहने वाला पुरुष प्रधान समाज अपने बराबरी में खड़ा होने देने से मना कर रहा है...मेरा मतलब सभी पुरुषों से नहीं बल्कि उन पुरुषों से है जिन्हें शायद अपने आप पर कम यकीन है....कि वो महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद कहीं हाशिए पर न आ जाएं....नेता तो नेता....अब धर्म-कर्म करने वाले तथाकथित धर्मगुरू ये उपदेश देने लगे कि महिलाओं को अच्छे नेता पैदा करने चाहिए न कि खुद नेतागिरी करनी चाहिए....उन्हें शायद इतना भी नहीं मालुम कि राजनीति किसे करनी चाहिए और किसे नहीं ये बताना भी धर्मगुरूओं का काम तो नहीं.....रही बात महिलाओं के राजनीति करने की....तो कुछ कहने से पहले ईतिहास पढ़ लें...देश-दुनिया को समझ लें तो बेहतर हो....कूपमंडूक बनकर सिर्फ उपदेश देना हास्यास्पद होता है.....बेगम खालिदा जिया,मरहुम बेनजीर भुट्टो, इंदिरा गांधी को अगर वो भूल गए हों तो ऐसे भलक्कड़ धर्मगुरूओं को क्या कहना....और फिर उनकी बातों को तवज्जो क्या देना.....इस कान से सुनिए...उस कान से निकाल दीजिए.....क्योंकि ये धर्मगुरु कतई नहीं...ये धर्म की आड़ में राजनीति करते हैं....और उन्हें ये खतरा भी लगने लगा है कि कहीं महिलाओं के आ जाने से उनकी दुकानदारी भी न फीकी पड़ जाय......


सच पूछिए तो केंद्र या राज्य सरकार के बजट का अब कोई खास मतलब नहीं होता....क्योंकि अब महंगाई बजट में तय नहीं होती....कोई चीज सस्ती होगी....इसके लिए बजट का इंतजार नहीं होता.....अब तो बस औपचारिकता रह गई है ये बजट...मंत्री जी ने साल भर कुछ किया है...किया भी है....ये दिखाने के लिए बजट बनता है...संसदीय सत्र बुलाया जाता है.....इसी बहाने गरमागरम बहस होती है.....लेकिन नतीजा कुछ खास निकलता हो....ऐसा दिखता नहीं....निकले तब तो दिखे....और इसी तरह वित्त मंत्री का ओहदा भी लगता है छोटा हो गया है....क्योंकि इस साल के असली वित्त मंत्री तो शरद पवार हैं.....जिस चीज की कमी का जनाब रोना रोते हैं...उसकती कीमतें आसमान छूने लगती हैं.....अब ये अलग बात है...वो देश के वित्त नहीं बल्कि कृषि मंत्री हैं.....लेकिन रुतबा देखिए....मुंह से किसी खास चीज का नाम निकला.....और अगले दिन से बढ़ने लगे दाम.....और जनाब शरद पवार की भी गलती नहीं है.......वित्त मंत्री इस तरह अगर कुछ नहीं कहते तो गलती उनकी है न....उन्हें कुछ कहना चाहिए.....एक समय था जब लोग साल भीर बजटीय भाषण का इंतजार करते थे....टीवी पर निगाह गड़ाकर सुनते...द्खते थे कि मंत्री जी के मुख से महंगाई के साथ कौन सी चीज का नाम निकला.....दो एक चीजे तो ऐसी थीं जिसकी बजट के कुछेक दिन पहले से खरीदारी शुरू हो जाती थी....लेकिन अब सरकार के तौर तरीके ही बदल गए.....चीजों के दाम जब चाहे बढ़ा दिया.....नहीं बढ़ा हो तो सिर्फ इतना भर कह दो...जनसंख्या के हिसाब से फलां वस्तु देश में कम है...या आने वाले दिनों में किल्लत हो सकती है....वैसे बजट के मतलब बदलने की एक वजह और भी है...बढ़ता शहरीकरण भी इसकी एक वजह है जनाब...चाहे चीजों के दाम कितने भी बढ़ा दो...जिसे खरीदना होगा...खरीदेगा ही...अब जिसके पास पैसे ही न हों ....वैसे भिखमंगों के लिए क्या बजट...क्या आम दिन.....जरुरी हुआ तो खरीदा....नहीं तो उसके बिना ही काम चला लिया..............


आप मानें या न मानें लेकिन मुझे तो कम से कम यही लगता है कि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) और शिव सेना के हाथो बंधक बना हुआ है....इन दोनों पार्टियों के बड़े ओहदेदार नेता जब चाहे जो चाहे कर सकते हैं...कह सकते हैं.....राहुल गांधी की मुंबई यात्रा को कांग्रेसजन ये कहकर भले खुश हो लें कि किसी शिव सैनिक ने उन्हें काला झंडा नहीं दिखाया, किसी ने विरोध नहीं किया....इसका सारा श्रेय जाता है कांग्रेस की सत्ता को...जिसने पूरा जोर लगा दिया कि राहुल गांधी की यात्रा निर्बाध रुप से समाप्त हो जाए....जिससे वो कह सकें कि मुंबई में शिव सेना का कोई वर्चस्व नहीं है....दरअसल राहुल यात्रा ...कांग्रेस सरकार के लिए एक चुनौती थी...जिसे उसने पूरे पुलिस और प्रशासनिक अमले के जोर पर पूरा करा लिया....जबकि हकीकत इसके एकदम उलट है....सरकार माने न माने..मुंबई तो बंधक है..इन तथाकथित दो पार्टियों के हाथों में ...अगर नहीं तो मजाल है कि कोई शिव सैनिक माइ नेम इज खान के पोस्टर फाड़कर ये चेतावनी दे दे कि बिना शाहरुख के माफी मांगे फिल्म रिलीज नहीं होगी.....ये समानांतर सत्ता नहीं तो और क्या है.,...कोई उत्तर भारतीय मुंबई में काम खोजने न आए....ये फरमान क्या समानांतर सत्ता का उदाहरण नहीं....उत्तर भारतीयों को मुंबई में काम करने के लिए मराठी सीखने की बाध्यता का फरमान क्या सरकार के मुंह पर तमाचा नहीं....सरेआम सैकड़ों शिव सैनिक पुलिस की मौजूदगी में नारे लगाते हुए सरकार को चुनौती देते हैं और सरकार एक बेहया औरत की तरह बस ...जांच होगी...पड़ताल करेंगे...दोषियों को सजा देंगे...कहकर अपनी निर्लज्जता छिपाती है.....लगता है मुंबई में शिव सेना और मनसे की सरकार है....और शेष महाराष्ट्र पर कांग्रेस की.....इतिहास में कमजोर शासकों का जिक्र है...लेकिन इन दो पार्टियों की समानांतर सत्ता ये बताने के लिए काफी है महाराष्ट्र में जिस पार्टी की सरकार है वो सिर्फ कांग्रेस के बड़े नेताओं की सुरक्षा कर सकती है ...आम जनता की नहीं....संविधान की नहीं.....राष्ट्रवाद की नहीं.....अभी भी देश की नागरिकता इस बात से निर्धारित होती है कि आप इस देश के वासी है.....इस बात से नहीं कि आप महाराष्ट्र के हैं या फिर बिहार-यूपी के......सरकार बनाना एक बात है...सरकार चलाना दूसरी बात....और सरकार में रहकर एक एक नागरिक की नागरिकता की रक्षा करना उन दोनों से बड़ी बात है......शाहरुख़ ने जो कुछ भी कहा वो गलत था या सही...ये बहस का मुद्दा नहीं...बहस का मुद्दा ये है कि क्या इस देश में बोलने की आजादी नहीं है....या फिर संविधान से बढ़कर हैं ये दोनों पार्टियां......मनसे और शिवसे(ना)...................


लगता है राष्ट्र से बड़ा महाराष्ट्र हो गया है...और उससे भी बड़ा मुंबई....क्योंकि आज तकरीबन हर राजनीतिक पार्टियां इसी बारे में बात कर रही हैं.....पार्टी कोई भी हो.....राष्ट्रीय स्तर की कांग्रेस...या फिर राज्य स्तर की मनसे...या फिर बीजेपी की सहयोगी रही शिव सेना...किसी को राष्ट्र नहीं दिख रहा....सबको दिख रहा है वोट...सबको दिख रही है सत्ता.....राहुल गांधी को उत्तर भारतीयों पर हो रही ज्यादती की चिंता तब आई जब वो बिहार दौरे पर आए...अब बिहार के लोगों को अपने वश में करने के लिए कुछ तो कहना था....सो कह दिया....राहुल गांधी कांग्रेस के बड़े नेता हैं...दांव देखकर पत्ते खोलते हैं.....बाकी की बात ही कुछ और है.....मनसे...यानी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना मन से मराठियों की पक्षधर है....शिव सेना की बात मत कीजिए...नाम शिव का....काम किसी दानव का....क्योंकि शिव की नजर में व्यक्ति के बीच भेदभाव कहां होता है...वैसे शिव के साथ सेना की जरुरत भी बेमानी सी लगती है क्योंकि शिव तो खुद ही सब कुछ कर सकने की क्षमता रखते थे........जहां तक एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की बात है तो उसने तो बस नाम के लिए राष्ट्रवादी नां जोड़ रखा है.....बाकी कहीं उसका वजूद है ही नहीं तो नाम में क्या रखा है......हां तो मैं बात कर रहा था राहुल की राह की.....भारत की खोज में निकले राहुल के पांव बिहार पर भी पड़ ही गए.....लेकिन इतने देर से उत्तर भारतीयों की महत्ता बखान करने से क्या फायदा.....जब उनकी ही सरकार ने जब गैर मराठी कानून बनाई थी तब उनकी बोलती बंद क्यों थी.....जनाब भारत की खोज करने नहीं...भारत की राजनीति समझने निकले हैं...जिससे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा जा सके...लेकिन राहुल जैसे बड़े नेताओं को पता नहीं कि ये जनता है सब जानती है...आप उसे बेवकूफ नहीं बना सकते.....चिदम्बरम ने थोड़ी बहुत हिम्मत दिखाई लेकिन लगता है वो भी दूरदर्शी हैं...बिहार में होने वाले चुनावों की याद लगता है उन्हें भी आ गई है......जो भी हो...आज कोई ,खासकर नेता, समाज के बारे में नहीं सोचता.....आम आदमी के बारे में नहीं सोचता...क्योंकि उसकी नजर होती है वोटों पर....सीटों पर.....सत्ता पर.....और इसके लिए उसकी आवाज उसी तरह बदल जाती है जैसे अमेरिकी नेताओं की...जो भारत में कुछ बोलते हैं और पाकिस्तान पहुंचते ही कुछ और बोलने लगते हैं......मैं दावे के साथ कहता हूं कि अगर निकट भविष्य में राहुल गांधी का मुंबई या महाराष्ट्र का दौरा हुआ तो उनकी आवाज बदल जाएगी या फिर बिहार में कहे गए शब्दों के अर्थ...उनके अनुसार....क्योंकि बिहार अनिश्चित है और महाराष्ट्र में उनकी सरकार विराजमान है सत्ता के पुष्पक विमान पर...........


एक राज ठाकरे को क्यों दोषी ठहराएं....कांग्रेस भी कहां कम है....वो भी मराठी मानुष की आग को हवा देने में साथ दे रही है....अब ये स्थानीय राजनीति की मजबूरी हो या फिर कुछ और लेकिन हकीकत अब कांग्रेस भी देश को क्षेत्रीय आधारों पर नाप तौल समझ रही है......अभी लोग भूले भी नहीं वो दिन जब महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने यूपी बिहार के टैक्सी ऑटो ड्राइवरों के लिए मराठी पढ़ना लिखना आने की अनिवार्यता तय की थी.....ये अलग बात है कि बाद में कांग्रेस पर दवाब बढ़ने लगा और सरकार बैक फूट पर आ गई....लेकिन कांग्रेस ने दिखाई राह और एमएनएस कार्यकर्ता उस पर चलने लगे.....एमएनएस की गुंडागर्दी से भला कौन परिचित नहीं....उसी तर्ज पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ट्रांसपोर्ट विंग के एक नेता ने गांधीगिरी का परिचय देते हुए टैक्सी और ऑटो ड्राइवरों को पुस्तिका वितरित की है...जिसमें उनसे चालीस दिनों के भीतर मराठी सीखने की बाध्यता या यूं कहें धमकी दी गई है.....एमएनएस ने साफ कहा है...मराठी सीखो वर्ना घर वापस भेज दिया जाएगा......क्या इसके लिए कांग्रेस दोषी नहीं.....कहीं एमएनएस और कांग्रेस में आपसी सांठगांठ तो नहीं.....क्योंकि मराठी मानुष के नाम पर हुई अबतक की किसी भी घटना को महाराष्ट्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है......अगर कांग्रेस इसमें एमएनएस को सहय़ोग कर रही है तो ये अखंड भारत के स्वरूप के खिलाफ है और घातक भी....क्योंकि इससे अलगाव बढ़ेगा...समाज में वैमनस्यता भी......और अगर कांग्रेस का दामन पाक साफ है तो एमएनएस को नियंत्रित करने से सरकार घबराती क्यों है.....हिंदीभाषी हों या मराठीभाषी .....अगर उनमें योग्यता है तो वो पूरे देश में कहीं भी नौकरी पा सकते हैं और उन्हें पाना भी चाहिए...ऐसेलोगों को कहीं भी काम करने से रोकने से कोई मना क्यों करे.....लेकिन लगता है एमएनएस हो..शिव सेना हो....या फिर कांग्रेस....वोटों पर ढीली पकड़ उन्हें कुछ कदम उठाने पर मजबूर कर देती है....और साफ साफ पता चल जाता है कि हमाम में सब नंगे हैं.....


उस दिन की सुबह सामान्य सी थी.....कुछ भी तो नया नहीं था.....लेकिन उधर सूर्य ने आंख खोला.....मैं उनींदी सी थी.....ये सोचकर कि उठकर करना भी क्या....वो तो नौ के पहले आते नहीं....आज क्रिसमस की छुट्टी है.....बेटे का स्कूल बंद है....मुझे भी स्कूल नहीं जाना है......चलो एकाध घंटे और आराम फरमा लिया जाय.........लेकिन अचानक बजे मोबाईल की घंटी ने मुझे उठने पर मजबूर कर दिया.....कमबख्त सोने भी नहीं देते......ये सोचकर अलसाई सी उठी...
हैलो......
कौन.....
भाभी...मैं रोहित बोल रहा हूं.....
.....मैं सोचने लगी...रोहित...आवाज जानी पहचानी नहीं...पता नहीं कौन रोहित है.......मैं इससे पहले रांग नंबर कहकर मोबाइल रखती.......उधर से आवाज आई....भाभी ......आप मुझे नहीं जानती...लेकिन मैं विमलेश भैया के ऑफिस में काम करता हूं....उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई...इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.......
...क्या.......तबीयत खराब हो गई..........अनायास मेरे मूंह से निकल पड़ा........
उधर से जवाब आई...हां भाभीजी....आप तैयार रहिए...मैं आपको लेने आ रहा हूं.........
मेरे बदन का खून मानो जम सा गया........किसी अनहोनी की आशंका को लेकर......एक साथ कई सवाल मेरे मन मस्तिष्क में कौंधने लगे........रोहित की आवाज कांप क्यूं रही थी.........और अचानक उन्हें क्या हो गया........रात तो अच्छे भले.....ऑफिस गए थे...नाईट शिफ्ट कर रहे हैं..........
....मैंने एकबारगी बेटे संदीप को झिंझोड़कर उठाया........बेटा उठो...पापा को उनके ऑफिस वालों ने अस्पताल में भर्ती कराया है........ चलो ...जल्दी करो.....पापा के ऑफिस से गाड़ी बस आने ही वाली है...कई बार उटाने पर नहीं उठने वाला संदीप भी एकबारगी उठकर खड़ा हो गया.......वो कुछ बालना चाह रहा था...पर शब्द उसके मुंह से नहीं निकल रहे थे........
किसी तरह फटाफट तैयार होकर मैं बाहर चहलकदमी करने लगी........सोचने लगी.......आखिर क्या हुआ होगा उन्हें.......तभी कार रुकने की आवाज सुनकर मैं बाहर भागी......
ऑफिस की गाड़ी में रोहित था.....आईए भाभी ...चलिए जल्दी कीजिए.........गाड़ी में बैठकर मैंने रोहित से कई सवाल पूछे पर वो चुपचाप बैठा रहा.......मेरा संदेह बढ़ने लगा......दिल बैठने लगा...क्या हुआ होगा उन्हें......या भगवान कहीं कुछ बुरा न हुआ हो......हे ईश्वर उन्हें जल्दी ठीक कर देना...तभी रोहित की आंखों के कोने से एक आंसू गिर पड़ा........रोहित ...कहीं तुम कुछ छिपा तो नहीं रहे................
तबतक गाड़ी अस्पताल के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.....ढेर सारे लोग जमा थे.......मुझे काटो तो खून नहीं ......अरे जरा सी तबियत खराब होने पर इतने लोग आते हैं क्या....नहीं नहीं...कियी और मरीज के साथ कुछ हुआ होगा......तभी इतने लोग आए हैं......लेकिन जब अस्पताल के अंदर गई...तो जो देखा....उसने मेरी जिंदगी का रुख़ बदल दिया.......पटरी पर चल रही जिंदगी मानों ठहर सी गई.........सन्नाटे में आ गई मैं...क्या करूं...कहां जाऊं.......अचानक ये क्या हो गया.......मेरे सामने मेरा सिंदूर सोया पड़ा था......गहरी निद्रा में.....जिसमें सोने के बाद कोई जागता नहीं........नहीं ये झूठ है...गलत है....ऐसा नहीं हो सकता.......भला चालीस बयालीस की कोई उम्र होती है....दुनिया छोड़ने की.....अभी उन्हें अपने बेटे की परवरिश करनी है.......अभी तो जिंदगी का लंबा फासला तय करना है......अभी हमलोगों ने किया ही क्या है.....न घर बनाया......न दौलत जमा की.....दौलत जाए भाड़ में.......ये क्या बात है......नहीं ऐसा नहीं हो सकता......इसके बाद क्या हुआ...मुझे कुछ नहीं मालूम...लोग मुझे ढांढस बंधाते रहे.....दिल मजबूत करने की बात करते रहे...लेकिन उन्हें क्या पता......एक सुबह किसी का सिंदूर लूट चुका है......कोई बे-बाप हो चुका है....एक गृहस्थी का पहिया टूट चुका है.....सपने पतझड़ के पत्तों की तरह झड़ चुके हैं.......वादे....... ढेरों वादे डूट चुके हैं.........वो सुबह जब तक सांस रहेगी....तबतक .याद रहेगी.......वो सुबह ...कैसे भूल सकती हूं मै...जिस सुबह मैंने अपना सबकुछ खोया.....चैन...नींद....सुख..सिंदूर......हंसी...मुस्कान......मानो तो पूरा जीवन खो चुकी हूं मैं.......एक जन्म के बाद जैसे बच्चा जिंदगी सीखता है...फिर सीखना होगा मुझे जिंदगी के नए फलसफे......अकेले.............


कल को क्योंकर याद रखें
आज ही तो जिंदगी है
लोग कहते तो हैं लेकिन
पर भला वो कैसे भूलें
जिसने अपनों को है खोया
वक्त ने जिनको डूबोया
जिसके लिए आंसू बहाए
खूब रोया, खूब रोया
पर उन्हें क्या
वो क्या समझें
दर्द , आंसू और कसक की
जिनके आंसू थे दिखावा
है दिखावे पर यकीं जिन्हें
पर दिए हैं जख्म जिनको
वक्त ने गहरे बहुत ही
वक्त तो काफी लगेगा
जख्म भर जाऐंगे शायद
पर कसक तो जिंदगी भर
उनको देगी टीस दिल में
आज मेरा
कल भी मेरा
आने वाला दिन भी मेरा
कोई चुनता आज को है
कोई बीते दिन को चुनता
वक्त तो पर वक्त ही है
जिसके आगे सब झुकाते
सर हैं अपना