कभी मुश्किल...कभी आसान लगती है
ये जिंदगी, कड़ा इम्तहान लगती है

कभी तो बेरुख़ी ऐसी कि मत पूछिए
कभी तो ग़जब की मेहरबान लगती है

हमारी हसरतों की फेहरिस्त लंबी है जरा
तभी हर लम्हा, यूं हलकान लगती है

खुशियां..मुस्कुराकर गुजर जाती है अक्सर
कभी बेपरवाह, कभी बेजुबान लगती है

-क्षितिज

मुश्किलातों का समंदर, हौसले की कश्तियां
और जब गिरती हैं, यारों आसमां से बिजलियां

मैं समझ जाता हूं रोया, रात भर कोई बहुत
अश्क का कतरा न था, थीं तो केवल सिसकियां

मेरे सीने से भी गुजरे, दर्द - ओ - ग़म के रेल भी
जानता हूं, क्यों नहीं रुकती हैं आखिर हिचकियां

आपके उनके तजुर्बे, मेरे हैं किस काम के
मेरे दिल से कोई पूछे, जब उड़ी थीं गिल्लियां
-क्षितिज

हर रोज सबेरा होता है
कल की गलती से सीखो कुछ
जीवन फिर मौका देता है
हर रोज सबेरा होता है

कुछ लोग अलग ही होते हैं
हर रस्ते में, हर मोड़ पे वो
औरों को धोखा देता है
हर रोज सबेरा होता है

लेकिन हर दिल के राज अलग
रंग अलग, अंदाज अलग
कितनी भी मुश्किल आ जाए
दिल...दिल को समझा देता है
हर रोज सबेरा होता है

हर बात अलग, जज्बात अलग
मुश्किल घड़ियां, हालात अलग
पर, खुशियों के पल हौले से
जख्मों को सहला देता है
हर रोज सबेरा होता है
-क्षितिज

नौकरशाही पर नकेल
सियासत का खेल
हर तरफ रेलमपेल
क्या करेंगे ?
बातें बदलाव की
काम करेंगे घाव की
कीमत हर दांव की
क्या करेंगे
होठों पर मीठी मुस्कान
दिल नहीं, खाली दुकान
रिश्ते भी हो गए सामान
क्या करेंगे
नहीं किसी की फिक्र
बस बात बात में जिक्र
लगाएंगे सभी के चित्र
क्या करेंगे
रिश्ते रिसने लगे
बुड्ढे भी सीखने लगे
घुन संग गेहूं पिसने लगे
क्या करेंगे
अब नहीं किसी के पास वक्त
हट्टा कट्टा हो या निःशक्त
सब अपने आप में मस्त
क्या करेंगे


न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सन्नाटों में दस्तक का होता है धोखा बड़ी निगरानियां है हर शख्स घर के कमरों में ही है सोता न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे किसी को देखकर पहचानना आसां नहीं अब कि हर चेहरा छुपा है... मास्क के पीछे अब तो कि जैसे हर किसी को टास्क मिला हो वैसे बड़ी परेशानियां है न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सड़क पर एक भी बच्चा, कहीं दिखता नहीं है सभी को वायरस की आहट से डर लगने लगा है न कोई आंख से आंखें मिलाकर बात करता जो मिलते दूर से, तो काट कर कन्नी गुजर जाते हैं अब तो बड़ी दुश्वारियां हैं न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है जमाने से सुनी न खिलखिलाहटें किसी की किसी चेहरे पर मिलती नहीं मुस्कान अब तो सभी को फिक्र अब होने लगी है ..क्या होगा आगे न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सियासतदां ने तो कोशिश बहुत की.... मगर नादान अपने दोस्त ही हैं समझते ही नहीं, हालात की दुश्वारियों को बड़ी नादानियां हैं न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे मगर...मानो मेरी...उम्मीद का दामन न छोड़ो मुझे मालुम है...सूरज उगेगा...छंटेगा ये अंधेरा मरेगा.... वायरस का ये राक्षस भी जल्दी दूर हो जाएगा, सड़कों का सूनापन लौटेगी हर शहर की रौनकें जल्दी मगर... न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे