न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सन्नाटों में दस्तक का होता है धोखा बड़ी निगरानियां है हर शख्स घर के कमरों में ही है सोता न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे किसी को देखकर पहचानना आसां नहीं अब कि हर चेहरा छुपा है... मास्क के पीछे अब तो कि जैसे हर किसी को टास्क मिला हो वैसे बड़ी परेशानियां है न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सड़क पर एक भी बच्चा, कहीं दिखता नहीं है सभी को वायरस की आहट से डर लगने लगा है न कोई आंख से आंखें मिलाकर बात करता जो मिलते दूर से, तो काट कर कन्नी गुजर जाते हैं अब तो बड़ी दुश्वारियां हैं न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है जमाने से सुनी न खिलखिलाहटें किसी की किसी चेहरे पर मिलती नहीं मुस्कान अब तो सभी को फिक्र अब होने लगी है ..क्या होगा आगे न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे बड़ी वीरानियां है सियासतदां ने तो कोशिश बहुत की.... मगर नादान अपने दोस्त ही हैं समझते ही नहीं, हालात की दुश्वारियों को बड़ी नादानियां हैं न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे मगर...मानो मेरी...उम्मीद का दामन न छोड़ो मुझे मालुम है...सूरज उगेगा...छंटेगा ये अंधेरा मरेगा.... वायरस का ये राक्षस भी जल्दी दूर हो जाएगा, सड़कों का सूनापन लौटेगी हर शहर की रौनकें जल्दी मगर... न पूछो हाल मेरे शहर का अभी मुझसे

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