एक राज ठाकरे को क्यों दोषी ठहराएं....कांग्रेस भी कहां कम है....वो भी मराठी मानुष की आग को हवा देने में साथ दे रही है....अब ये स्थानीय राजनीति की मजबूरी हो या फिर कुछ और लेकिन हकीकत अब कांग्रेस भी देश को क्षेत्रीय आधारों पर नाप तौल समझ रही है......अभी लोग भूले भी नहीं वो दिन जब महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने यूपी बिहार के टैक्सी ऑटो ड्राइवरों के लिए मराठी पढ़ना लिखना आने की अनिवार्यता तय की थी.....ये अलग बात है कि बाद में कांग्रेस पर दवाब बढ़ने लगा और सरकार बैक फूट पर आ गई....लेकिन कांग्रेस ने दिखाई राह और एमएनएस कार्यकर्ता उस पर चलने लगे.....एमएनएस की गुंडागर्दी से भला कौन परिचित नहीं....उसी तर्ज पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ट्रांसपोर्ट विंग के एक नेता ने गांधीगिरी का परिचय देते हुए टैक्सी और ऑटो ड्राइवरों को पुस्तिका वितरित की है...जिसमें उनसे चालीस दिनों के भीतर मराठी सीखने की बाध्यता या यूं कहें धमकी दी गई है.....एमएनएस ने साफ कहा है...मराठी सीखो वर्ना घर वापस भेज दिया जाएगा......क्या इसके लिए कांग्रेस दोषी नहीं.....कहीं एमएनएस और कांग्रेस में आपसी सांठगांठ तो नहीं.....क्योंकि मराठी मानुष के नाम पर हुई अबतक की किसी भी घटना को महाराष्ट्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है......अगर कांग्रेस इसमें एमएनएस को सहय़ोग कर रही है तो ये अखंड भारत के स्वरूप के खिलाफ है और घातक भी....क्योंकि इससे अलगाव बढ़ेगा...समाज में वैमनस्यता भी......और अगर कांग्रेस का दामन पाक साफ है तो एमएनएस को नियंत्रित करने से सरकार घबराती क्यों है.....हिंदीभाषी हों या मराठीभाषी .....अगर उनमें योग्यता है तो वो पूरे देश में कहीं भी नौकरी पा सकते हैं और उन्हें पाना भी चाहिए...ऐसेलोगों को कहीं भी काम करने से रोकने से कोई मना क्यों करे.....लेकिन लगता है एमएनएस हो..शिव सेना हो....या फिर कांग्रेस....वोटों पर ढीली पकड़ उन्हें कुछ कदम उठाने पर मजबूर कर देती है....और साफ साफ पता चल जाता है कि हमाम में सब नंगे हैं.....


उस दिन की सुबह सामान्य सी थी.....कुछ भी तो नया नहीं था.....लेकिन उधर सूर्य ने आंख खोला.....मैं उनींदी सी थी.....ये सोचकर कि उठकर करना भी क्या....वो तो नौ के पहले आते नहीं....आज क्रिसमस की छुट्टी है.....बेटे का स्कूल बंद है....मुझे भी स्कूल नहीं जाना है......चलो एकाध घंटे और आराम फरमा लिया जाय.........लेकिन अचानक बजे मोबाईल की घंटी ने मुझे उठने पर मजबूर कर दिया.....कमबख्त सोने भी नहीं देते......ये सोचकर अलसाई सी उठी...
हैलो......
कौन.....
भाभी...मैं रोहित बोल रहा हूं.....
.....मैं सोचने लगी...रोहित...आवाज जानी पहचानी नहीं...पता नहीं कौन रोहित है.......मैं इससे पहले रांग नंबर कहकर मोबाइल रखती.......उधर से आवाज आई....भाभी ......आप मुझे नहीं जानती...लेकिन मैं विमलेश भैया के ऑफिस में काम करता हूं....उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई...इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.......
...क्या.......तबीयत खराब हो गई..........अनायास मेरे मूंह से निकल पड़ा........
उधर से जवाब आई...हां भाभीजी....आप तैयार रहिए...मैं आपको लेने आ रहा हूं.........
मेरे बदन का खून मानो जम सा गया........किसी अनहोनी की आशंका को लेकर......एक साथ कई सवाल मेरे मन मस्तिष्क में कौंधने लगे........रोहित की आवाज कांप क्यूं रही थी.........और अचानक उन्हें क्या हो गया........रात तो अच्छे भले.....ऑफिस गए थे...नाईट शिफ्ट कर रहे हैं..........
....मैंने एकबारगी बेटे संदीप को झिंझोड़कर उठाया........बेटा उठो...पापा को उनके ऑफिस वालों ने अस्पताल में भर्ती कराया है........ चलो ...जल्दी करो.....पापा के ऑफिस से गाड़ी बस आने ही वाली है...कई बार उटाने पर नहीं उठने वाला संदीप भी एकबारगी उठकर खड़ा हो गया.......वो कुछ बालना चाह रहा था...पर शब्द उसके मुंह से नहीं निकल रहे थे........
किसी तरह फटाफट तैयार होकर मैं बाहर चहलकदमी करने लगी........सोचने लगी.......आखिर क्या हुआ होगा उन्हें.......तभी कार रुकने की आवाज सुनकर मैं बाहर भागी......
ऑफिस की गाड़ी में रोहित था.....आईए भाभी ...चलिए जल्दी कीजिए.........गाड़ी में बैठकर मैंने रोहित से कई सवाल पूछे पर वो चुपचाप बैठा रहा.......मेरा संदेह बढ़ने लगा......दिल बैठने लगा...क्या हुआ होगा उन्हें......या भगवान कहीं कुछ बुरा न हुआ हो......हे ईश्वर उन्हें जल्दी ठीक कर देना...तभी रोहित की आंखों के कोने से एक आंसू गिर पड़ा........रोहित ...कहीं तुम कुछ छिपा तो नहीं रहे................
तबतक गाड़ी अस्पताल के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.....ढेर सारे लोग जमा थे.......मुझे काटो तो खून नहीं ......अरे जरा सी तबियत खराब होने पर इतने लोग आते हैं क्या....नहीं नहीं...कियी और मरीज के साथ कुछ हुआ होगा......तभी इतने लोग आए हैं......लेकिन जब अस्पताल के अंदर गई...तो जो देखा....उसने मेरी जिंदगी का रुख़ बदल दिया.......पटरी पर चल रही जिंदगी मानों ठहर सी गई.........सन्नाटे में आ गई मैं...क्या करूं...कहां जाऊं.......अचानक ये क्या हो गया.......मेरे सामने मेरा सिंदूर सोया पड़ा था......गहरी निद्रा में.....जिसमें सोने के बाद कोई जागता नहीं........नहीं ये झूठ है...गलत है....ऐसा नहीं हो सकता.......भला चालीस बयालीस की कोई उम्र होती है....दुनिया छोड़ने की.....अभी उन्हें अपने बेटे की परवरिश करनी है.......अभी तो जिंदगी का लंबा फासला तय करना है......अभी हमलोगों ने किया ही क्या है.....न घर बनाया......न दौलत जमा की.....दौलत जाए भाड़ में.......ये क्या बात है......नहीं ऐसा नहीं हो सकता......इसके बाद क्या हुआ...मुझे कुछ नहीं मालूम...लोग मुझे ढांढस बंधाते रहे.....दिल मजबूत करने की बात करते रहे...लेकिन उन्हें क्या पता......एक सुबह किसी का सिंदूर लूट चुका है......कोई बे-बाप हो चुका है....एक गृहस्थी का पहिया टूट चुका है.....सपने पतझड़ के पत्तों की तरह झड़ चुके हैं.......वादे....... ढेरों वादे डूट चुके हैं.........वो सुबह जब तक सांस रहेगी....तबतक .याद रहेगी.......वो सुबह ...कैसे भूल सकती हूं मै...जिस सुबह मैंने अपना सबकुछ खोया.....चैन...नींद....सुख..सिंदूर......हंसी...मुस्कान......मानो तो पूरा जीवन खो चुकी हूं मैं.......एक जन्म के बाद जैसे बच्चा जिंदगी सीखता है...फिर सीखना होगा मुझे जिंदगी के नए फलसफे......अकेले.............


कल को क्योंकर याद रखें
आज ही तो जिंदगी है
लोग कहते तो हैं लेकिन
पर भला वो कैसे भूलें
जिसने अपनों को है खोया
वक्त ने जिनको डूबोया
जिसके लिए आंसू बहाए
खूब रोया, खूब रोया
पर उन्हें क्या
वो क्या समझें
दर्द , आंसू और कसक की
जिनके आंसू थे दिखावा
है दिखावे पर यकीं जिन्हें
पर दिए हैं जख्म जिनको
वक्त ने गहरे बहुत ही
वक्त तो काफी लगेगा
जख्म भर जाऐंगे शायद
पर कसक तो जिंदगी भर
उनको देगी टीस दिल में
आज मेरा
कल भी मेरा
आने वाला दिन भी मेरा
कोई चुनता आज को है
कोई बीते दिन को चुनता
वक्त तो पर वक्त ही है
जिसके आगे सब झुकाते
सर हैं अपना