नए साल में मत भेजो संदेश
नववर्ष मंगलमय हो
भेजो ..एक तरीके का संदेश
कैसे हो मंगलमय नूतन वर्ष
कैसे रहें सभी हम सब सहर्ष
कैसे फलित होता रहे हम सबका संघर्ष

नए साल में मत भेजो संदेश
नववर्ष में खुशियां मिले अपार

लिखकर भेजो कैसे रखें सहेजकर
छोटी छोटी खुशियों भरे अनमोल पल
न पड़े हमारे तुम्हारे सबके जीवन में
आतंकवाद का खलल
राजनीति कैसे न बने
प्रजातंत्र के लिए दलदल
न हो कोई ऐसी घटना
दुर्घटना,जिससे हो मन भाव विह्वल

नए साल में मत भेजो संदेश

जब अपना ही बसेरा उजड़ जाए तो आदमी ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि अब जाएं तो जाएं कहां.....करें तो क्या करें.....औरैय्या में पीडब्ल्यूडी इंजीनियर मनोज गुप्ता की हत्या महज़ किसी एक अधिकारी या इंजीनियर की हत्या नहीं...ये हत्या है सामाजिक व्यवस्था की.........ये बानगी है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्थाएं कितनी खोखली हो गई हैं..........ये जाहिर करता है कि विकलांग हो गई है विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र का तंत्र......इस हत्या से एक के बाद एक कई गंभीर सवाल समाज के सामने दागने शुरू कर दिए हैं.....इस हत्या के बहाने राजनीति निर्वस्त्र हो गई दिखती है......और भीख मांगता...गिड़गिड़ाता प्रशासन......ये घटना ये बताने के लिए काफी है कि समाज में रहना है तो समझौता करना सीख लो...या बागी बन जाओ.....शहीद होने के लिए तैयार हो जाओ....एम के गुप्ता की तरह........जिसकी मौत पर राजनीति होती है......सस्ती..घटिया राजनीति.....राजनीति वोट की....राजनीति नोट की......और राजनीति सत्ता पर चोट की.....मैं किसी को इमानदार नहीं कहता.....किसी को नहीं.....लेकिन चंद रूपयों के लिए किसी की मौत का सौदा किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए.....चाहे कुछ भी हो जाए......क्योंकि किसी बसेरे (घर ) के मालिक की हत्या या मौत से.....बसेरा टूट जाता है...बिखर जाता है....जैसे आंधी -तूफान में कोई झोपड़ी...या कोई कागज़ का टुकड़ा.......इंजीनियर का बसेरा ऐसे ही उजड़ चुका है.....बिखर चुका है.....उस बसेरे में रहने वाले लोगों की जिंदगी एक दिन में बदल गई....मुस्कुराहटें आंसुओं में तब्दील हो गई.....और जिंदगी के सपने सिमट से गए....ये अलग बात है कि वक्त हर जख़्म भरने की कोशिश करता है...जख़्म भर भी जाते हैं लेकिन ताउम्र दाग़ रह जाता है ...और रह जाती है वक्त के साए में यादें.....जिंदगी भर के लिए......
अब लगता है राजनीति संवेदनहीन हो गई है.....लोग अगर संवेदना दिखाते भी हैं तो सिर्फ दिखावे के लिए...अपने फायदे के लिए.....ये जताने के लिए कि हम हैं.....औरैया में इंजीनियर की हत्या के बाद यूपी में विपक्ष अचानक जीवित हो गई....धरना- प्रदर्शन,बंद,चक्काजाम, तोड़फोड़, गिरफ़्तारियां...मृतक के परिजनों से मुलाकात.....का दौर शुरू हो गया......मुख्यमंत्री को तो मानों पीसी करने का बहाना मिल गया......दूसरी पार्टियों को भी खबरों में बने रहने का......लेकिन इन सबमें अगर कुछ नहीं दिखा तो संवेदना.......मुआवजे की घोषणा,सीबीआई जांच की मांग ......मांग से इंकार......आरोपी बीएसपी विधायक की गिरफ़्तारी.....तफ्तीस....इन सबमें हर तरफ अगर कुछ नहीं दिखा तो संवेदना......विपक्ष को मुख्यमंत्री पर हमला करने का मौका मिला....दूसरी पार्टियों को बीएसपी की आलोचना करने का......और इस सबमें बेचारे बन गए उस बसेरे के लोग...जिनका अपना उनसे बिछड़ गया.....
सूबे का राजपाट संभालने वाली सीएम को हत्या में साज़िश दिखती है क्योंकि उसमें उनका एक एमएलए शामिल है...नहीं होता तो कतई नहीं दिखती...तब शायद बिना शर्त सीबीआई जांच के लिए तैयार हो जातीं....लेकिन बात पार्टी की साख की है....भले जनता भाड़ में जाए...वैसे भी राजनीति में अब जनता की फिक्र किसी को नहीं फिर मैडम माया क्यूं करें.....और जब सूबे की पुलिस जांच करेगी तब सबकुछ अपने मनमाफिक ही तो होगा.....वक्त के साथ पुलिस एक दिन बीएसपी विधायक को भी पाक साफ कह दे तो ताज्जुब नहीं होनी चाहिए.......लेकिन बात फिर भी वहीं की वहीं है.....एक घटना कुछ समय के लिए हम सबको स्तब्ध कर देती है लेकिन फिर वही पुराना राग....वही पुराना ढर्रा .....वही लोग वही काम....वही चंदा उगाही....वही चंदा देने वाले.....वही ठेकेदार...वही नेता...अफसर....सबकुछ वही......सोच लीजिए....जाएं तो जाएं कहां.......

मेरे एक पड़ोसी हैं....नाम लूं...चलिए...नहीं लेते हैं...बेचारे खफ़ा हो जाऐंगे....पड़ोसी हैं तो हर छोटी बड़ी बात पर चर्चा भी हो जाती है...इन दिनों पिछले कई दिनों से एक टेलीविजन सीरियल "उतरन" पर गंभीर चर्चा कर रहे हैं.....हम भी उसमें दिलचस्पी ले रहे थे क्योंकि विषय बड़ा ही संजीदा था...सीरियल में एक नौकरानी की बेटी मालकिन की बेटी के साथ खेलती है...उसे नहीं पता कि उसमें और मालकिन की बेटी में क्या फर्क है...वो भी उसकी तरह घुमना चाहती है...मॉल जाना चाहती है....वो सबकुछ करना चाहती है जो...मालकिन की बेटी करती है.....जाहिर है मालकिन इससे ख़फा खफ़ा सी रहती है.....और फिर सीरियल में एक पात्र आती है...नानी.....नानी है तो अनुभव भी होगा....अनुभव..जी तजूर्बा.....और फिर नौकरानी की बेटी को खुश करने के लिए नामी नए नए तरकीब निकालने लगी....पुराने कपड़े...खिलौने देकर नौकरानी की बेटी से पिंड छुड़ाने की कोशिश करने लगी.....अब साहब हमारे पड़ोसी हर रोज यही कहते...देखिए....इंसानियत का तो जो जमाना ही नहीं है.....एक नौकरानी की बेटी ....मालकिन की बेटी के साथ खेल भी नहीं सकती.....मैं तो ऐसा न करूं...इंसानियत भी कोई चीज़ होती है.....जूठे बचे खाने किसी को न दूं.....ये गलत है.....

दो तीन दिन गुजर गए....एक दिन पड़ोसी साहब की मिसेज ने एक स्वेटर अपनी नौकरानी को दी....स्वेटर दिखने में अच्छी थी...लेकिन थी ?....और तो और देते वक्त कहा गया मंहगी है...लेकिन मैंने सोचा कि दीवाली पर कपड़े नहीं दिए...तो चलो इस जाड़े में एक अच्छा सा स्वेटर ही दे दूं.....नौकरानी खुश...मालकिन ने इतना ख़्याल रखा....उत्साह में मेरे घर मेरी पत्नी को दिखाने आई ...मेम साहब ......आपकी पड़ोसन ने ये मंहगी स्वेटर दी है मुझे.....पांच सौ से कम की नहीं लगती न मेमसाहब......
मेरी पत्नी ने लंबी सांस लेकर हम्म्म्म्म्म्म् .....................कहा....उसके जवाब पर मुझे थोड़ी नाराज़गी हुई.....थोड़ा खुश होकर कह देती ..बढ़िया है.....तो क्या बिगड़ जाता......लेकिन जब हकीकत पता चली तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई...स्वेटर वीकली हाट से सत्तर रूपए में खरीदी गई थी......

बस में भीड़ रोज की तरह थी....हर स्टॉप पर दो चार नए पैंसेंजर चढ़ते ...तो एक दो उतर रहे थे.....तभी कंडक्टर की आवाज़ सुनाई दी...टिकिट ...टिकिट ले लो....हां भईया कहां जाना है......कासना...और युवक ने दस रूपए का नोट कंडक्टर की ओर बढ़ा दिया...पांच रूपए और दो...पंद्रह रूपिया किराया है......युवक ने फुसफुसाते हुए कहा...रख लो...इतने में ही जाता हूं......जाता हूं मतलब...पांच और निकाल...कंडक्टर ने कड़कती आवाज़ में कहा.....अबे ..पांच नहीं देता...जो करना है कर लो....ज्यादा बोला...तो दूंगा एक जमा के...मादर....कंडक्टर सहम कर आगे बढ़ गया......बस अपनी चाल में रुक रुककर चली जा रही थी..........दो तीन लोगों को टिकट देने के बाद कंडक्टर एक बुजूर्ग यात्री के पास पहुंचा....बाबा...कहां जाना है.......ग्रेटर नोएडा.....जवाब मिला...और सात ही थरथराते हाथ...जिसमें पैसे थे.....ये क्या है.....पांच और.....क्यों इतना ही तो किराया है....भई हर रोज जाता हूं.....जाता हूं से मतलब पांच और निकाल .....बेटा किसी से पूछ लो...कोई बोल दे तो ले लो.....बस मेरी है...कंडक्टर मैं हूं...किसी और से क्यों पूछ्छूं....पांच निकालल..नहीं तो उतर जा.....बुढ़े ने कहा....बेटा तुम्हारे जैसे मेरे नाती पोते हैं...तमीज़ से बात तो कर.....बाबा...तमीज से गड्डी नहीं चलती.....पांच निकाल वर्ना उतर जा.....बूढ़े बाबा ने पांच की हरी पत्ती निकाल कर कंडक्टर को देने में ही भलाई समझी...अब इस उमर में बीच रास्ते में बस से उतरना भी ठीक नहीं......

भाईयों और बहनों...दहेज समाज का वो दावन है...जो पूरे परिवार को खा जाता है...समाज को खोखला बना देता है....आज आप लेते हैं...कल देना पड़ता है....और अगर आप दे रहे हैं तो कल लेने के लिए मन लालायित रहता है....उपायुक्त महोदय के इस भाषण पर जोरदार तालियां तालियां बजी....सेमिनार में वैसे तो साहब कम ही जाते हैं...पर ना जाने क्यों इस सेमिनार के लिए मना नहीं कर सके....एक कारण ये भी था कि विभागीय मंत्री की धर्मपत्नी जी का एनजीओ इसे आयोजित कर रहा है.....लेकिन सेमिनार होते होते शाम हो गई....और साहब को घर जाने की जल्दी सताने लगी...अरे...रघु...गाड़ी तेज चलाओ...अंधेरा हो रहा है.......करीब आधे घंटे में घर आ गया....साहब गाड़ी से उतरे ...घर में दाखिल होते ही पूछा....दिल्ली से कोई जवाब आया या नहीं......
कहां...दिल्ली से फोन आया था...कह रहे थे ..आप लोग बड़े लोग हैं....लाख दो लाख आपके हाथ का मैल है....लेकिन फिलहाल हाथ तंग है नहीं तो मना नहीं करते .........मेमसाहब ने जवाब दिया.......जवाब सुनते ही साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा...तो रखें अपनी बेटी को अपने ही घर....मेरा बेटा भी कोई खैरात नहीं.....लाखों कमाता है महीने में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है.....पांच लाख की गाड़ी नहीं दे सकते तो हम भी नहीं विशाल को दिल्ली जाने से मना कर देंगे....साल दो साल में दिमाग ठिकाने आ जाएगा.....मेरे बेटे के लिए लड़कियों की लाईन लग जाएगी.....

पैसेंजर ट्रेन में भीड़ वैसे ही बहुत ज्यादा थी...फिर भी खोमचे वाले बेचने से बाज नहीं आ रहे थे...चने ले लो...भूने चने...लेमनचूस....एक रूपए में बाल बच्चा खुस.......नारियल...एक रुपए..दो रुपए...ले लो ताजा नारियल....इन्हीं आवाजों के बीच एक ट्रेन में एक मैगजीन वाला भी चढ़ा.....मैगजीन ....नई पुरानी मैगजीन.....देशभक्त शहीदों की किताबें भी.....गीत गानों की किताबें...फिल्मी गाने सुने सुनाएं लाइफ बनाएं....ये देखिए बच्चों की कहानियां....जो बनाएगी आपके बच्चों को समझदार...सिखाएगी जिंदगी के नए मायने...ये देखिए बड़े लेखकों के पुराने उपन्यास.....बाज़ार में नए उपन्यास की कीमत सौ रूपए से कम नहीं होगी ..लेकिन यहां मिलेगी बस पच्चीस में...जिसे लेना हो भाी लोग आवाज देकर मांग लेंगे..... लेकिन किसी पैसेंजर ने तवज्जो नहीं दी....मैगजीन वाला आधे से ज्यादा डिब्बे में घुम चुका था...किसी ने कोई किताब ..कोई मैगजीन नहीं मांगी ...मुझे लगा लगता है लोग पढ़ने की आदत छोड़ चुके हैं....उनके जीवन में पढ़ने के लिए या तो समय नहीं....या फिर टीवी देखना ज्यादा पसंद करते हैं.....तभी मैगजीन वाले की आवाज़ आई.....और ये देखिए.....ख़ास आपके लिए .....बच्चों को न दिखाएं क्योंकि इसमें है बहुत कुछ.....फोटो ऐसे ऐसे कि आप सबकुछ भूल पहले उसे देखेंगे.....नई हिरोईनों की तस्वीरें भी मिलेंगी....अंदाज ऐसे कि बस पूछिए मत.....मॉडलों की गर्मागर्म तस्वीरें.....और....भाई जिन्हें चाहिए आवाज़ देकर मांग लेंगे...कीमत बस बीस ...बीस ...बीस रूपए......एक साथ कई कोनों से आवाज़ आई...अरे ...एक इधर देना......जरा...किताब दिखा.....दो लेने पर कम होगा क्या......