रात को घर लौटते समय बस छूट गई ...मैं ऑटो से उतर ही रहा था कि बस आई और चली गई....मन खट्टा हो गया...आज फिर घर पहुंचने में देर हो जाएगी...बिटिया रोज कहती है जल्दी आने के लिए...आज मौका था लेकिन कमबख़्त...बस का क्या करें......तभी करीब एक ऑटो आकर रुका.....मोहननगर....मोहन नगर.....मेरा स्टॉप तो रास्ते में ही पड़ता है....पूछता हूं...ये सोचकर मैंने ऑटो वाले से पूछा भैया वसुंधरा जाओगे क्या.....हां जाऊंगा पर दस रूपए लगेगें....चलो ...इतना कहकर मैं ऑटो में बैठ गया...एक दो और सवारी बैठ गए....ऑटो चल पड़ी...रास्ते में ऑटो चालक और सवारियों के लिए आवाज़ लगाता जा रहा था.......खोड़ा के पास एक सवारी....जो दिखने में सिक्योरिटी गार्ड सा लग रहा था...ने हाथ दिया....डाबर चलोगे क्या...हां....कितना लोगे....अनमने ढंग से ऑटो चालक ने कहा...जितना देना हो दे देना.....अब ऑटो पुरी रफ़्तार से चल रही थी...घर पहुंचने की मुझे भी जल्दी थी...खुश था मैं....देखते ही देखते डाबर आ गया....एक सवारी उतर गया और उसने तीन रूपए ऑटो ड्राइवर की ओर बढ़ाया....ये क्या है....तीन रूपए...जवाब मिला.....क्यों कम से कम पांच तो दे...बस नहीं है ऑटो में लाया हूं....भइया कहो तो एक रुपया और दे दूं........इससे ज्यादा नहीं दूंगा......इतना कहकर उस सिक्योरिटी गार्ड सा दिखने वाले गरीब सवारी ने दो रूपए का सिक्का ऑटो चालक की ओर बढ़ा दिया.....लेकिन ये क्या ऑटो चालक तो चल पड़ा बिना एक रूपया वापस किए....लेकिन तभी वो सवारी बीच सड़क पर ऑटो के सामने खड़ा हो गया.....अरे मेहनत पसीने की कमाई है...एक रूपइय्या लेकर भाग रहे हो दे दो....नहीं तो ठीक नहीं होगा....ऑटो वाला देने को तैयार नहीं था....और सवारी लेने पर आमादा....जान दे दूंगा लेकिन एक रूपया लेकर रहुंगा....दिनभर जानवर की तरह खड़ा रहता हूं तब रूपल्ली मिलती है....ऐसे जाने नहीं दूंगा....किसी पैसेंजर ने कहा ...पागल है...दे दो....आख़िरकार ऑटोवाले ने एक रूपए का सिक्का उसकी ओर फेंका...और चल पड़ा....मैं सोचने लगा...वो पागल कतई नहीं था....मेहनतकश था...जिसे एक एक रूपए की कीमत मालूम है......इसी सोच विचार में मेरा स्टॉप आ गया....और मैं उतर गया.....