राहुल गांधी जीत गए तुम
अब जनता को क्या दोगे
महंगाई कम होगी
या फिर
जनता को तुम रुला दोगे
पांच साल तो अब तेरा है
जो चाहो तुम कर सकते हो
रुस,अमेरिका,इग्लैंड की
सैर पे भी तुम जा सकते हो

वादे बड़े बड़े करके तुम
वोट तो हमसे तुने ले लिया
लेकिन अब है मेरी बारी
देखें तुम क्या कर सकते हो

हमें किसी पर नहीं भरोसा
तेरी बात पे वोट दिया है
दिखला देना कि तुम भी
दूसरे जैसे तो नहीं हो तुम भी

तुमसे ज्यादा नहीं चाहिए
मुंह को मिलता रहे निवाला
कोई ऐसी बात नहीं हो
जिससे हो तेरा मुंह काला
पार्टी के लोगों पर अंकुश
रखना है अब तेरा काम
नहीं तो अगले एलेक्शन में
कर देगी जनता काम तमाम

राहुल गांधी जीत गए तुम

बहुत कर लिया भारत दर्शन
अब भारत की फिक्र करो
जरा अपनी पार्टी में भी
समस्याओं का जिक्र करो

पोंछ सकोगे तुम भी
जनता के आंसू
या कि तुम
निकलोगे दूसरे नेताओं जैसे
जिनको याद नहीं आते हम

राहुल गांधी जीत गए तुम
अब जनता की बारी है
पांच साल में हम देखेंगे
तेरी कितनी तैयारी है
सेवा - भाव जरा है तुझमें
या सारी होशियारी है

राहुल गांधी जीत गए तुम
अब जनता की बारी है

मेरे शहर की गलियां
खुबसुरत नहीं
पर अपनापन तो है
पतली ही सही पर
पर
सर्र से निकल जाती थी मेरी साईकिल
बिना किसी को छुए
गड्ढों का क्या है
आदत सी हो गई थी
हर चेहरा जाना पहचाना था

मेरे शहर की गलियां
याद आती हैं
आज भी
वो नालियों से निकला कचरा
जिससे बचकर निकलते थे लोग
अंधेरे में भी
जिसके बारे में
मुझे पता था
कहां है ठोकर
कहां है गड्ढा
कहां रखी है
ईंट का टुकड़ा

मेरे शहर की गलियां
खुबसुरत नहीं
लेकिन
मुझे पता था
रात में
कहां होता है अंधेरा
कहां होती है रोशनी
कहां बैठे होते हैं
चोर उचक्के
एक झरोखा था
रात-अधरात
जहां जाने में
डर नहीं लगता था
कभी भी कहीं भी
क्योंकि उन्हीं गलियों में
मेरा बचपन बीता
लड़कपन भी
फिर डर कैसा
फिर बड़ा हुआ

वक्त ने ली करवट
और मैं पहुंच गया
एक अंजान शहर में
जहां आज
पांच साल बाद भी
गलियां अपनी नहीं हुईं
लोग अब भी पराए हैं
पड़ोसियों की क्या कहें
हरदम नजरें झुकाए हैं
आज भी याद आती है

मेरे अपने उस शहर की गलियां
जहां हर कदम के फासले
आज भी अपने हैं
लोग आज भी जानते हैं
पहचानते हैं
मेरा चेहरा

(मदर्स डे पर विशेष)
जीवन में अबतक जो भी मैंने देखा
समझा...जाना....
यही पहचाना
कि मां ही जानती है
अपने बेटे का दर्द
तकलीफ,मुश्किले
बिना कहे
समझ जाती है क्यों
सूखे हैं
उसके लाडले के होंठ
क्यों बिखरे हैं बाल
क्यों उड़ रही है
जिगर के टूकड़े के
चेहरे पर हवाईयां
क्यों निकल रहे हैं आंसू
क्यों बरस रही हैं आंखें
क्योंकि वो मां है
क्यों गुमसुम हैं
उसका बेटा
क्यों खामोश है
उसकी निगाहें
क्यों नहीं उठ रही
झुकी-झुकी सी निगाहें
क्यों ठिठक रहा है
उसके लाडले के पैर
क्यों नहीं आ रही
उसकी आंखों में नींद
क्यों अधखुली हैं पलकें
क्यों नजरें चुराने लगा है
कुछ
अपनी मां से ही छुपाने लगा है
क्योंकि वो मां है

ख़बर है कि लोकसभा चुनाव में पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार वरुण गाँधी के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाने को अवैध ठहराया गया है...
और इसे अवैध ठहराया है उत्तर प्रदेश के ही सलाहकार बोर्ड ने ..जिसमें हाईकोर्ट के एक जज और दो रिटायर्ड जज होते हैं.... ये बोर्ड इस बारे में सलाह देता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाने का फ़ैसला कितना सही है. ....बोर्ड ने वरुण गांधी के मामले में कहा है कि एनएसए काफी कठोर क़ानून है....और इस मामले में इसे लागू करने का पर्याप्त आधार नहीं है. .....ये सिफारिश मायावती सरकार को एक तमाचा है....और सिर्फ माया सरकार को ही नहीं हर उस शख्स को जो किसी कानून को ....राजनीतिक स्वार्थ के लिए उपयोग करता है..मैं ये नहीं कह रहा कि वरुण गांधी ने जो भी कहा वो सही था....लेकिन अगर वरुण गांधी पर एनएसए लगाया जा सकता है तो इसके दायरे में हर वो राजनीतिज्ञ आना चाहिए...जो समाज को तोड़ने का संदेश देता है...देश को तोड़ने की बात कहता है...और ऐसी कोई भी बात कहता है...या कहने की जुर्रत करता है....जिससे समाज...देश..को नुकसान होने की आशंका होती हो...एनएसए एक बानगी है.....देश में कानून.....कानून को पालन करने वाली संस्थाएं राजनीति के गुलाम बने हुए हैं.....चाकरी करते हैं....बंधुआ मज़दूर की तरह....ये अलग बात है कि जागरुकता...चेतना के अभाव में आम आदमी मूक दर्शक बना रहता है....सोचता है.....कुछ कहें पर कुछ कहता नहीं.......
क्या वरुण गांधी....लालकृष्ण आडवाणी....कल्याण सिंह...उमा भारती......लालू प्रसाद...रामविलास पासवान.....साधु यादव .......नरेन्द्र मोदी.....कई तथाकथित मुस्लिम नेता.......धर्मगुरू तकरीबन सभी धर्मों के....और ये राज ठाकरे...बाल ठाकरे.....जबतब समाज को बांटने की बात कहते हैं.....इन पर एनएसए क्यों नहीं लगना चाहिए.....मुझे तो लगता है कि सभी नेताओं को पहले एनएसए में बंद कर दो....एडवाइजरी समिति को भंग कर दो....कोई ये न कह सके...कि फैसला अवैध है......तुर्रा ये कि कोई इस लायक भी न बचे कि वो ये कह सके कि हम इसे अवैध नहीं मानते....अब इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट में होगा.......क्या अब कानून का फैसला नेता करेंगे....वो भी नेताओं पर....माया तय करे कि वरुण पर एनएसए लगे कि न लगे....लालू तय करें कि नीतीश पर कौन सी धारा लगे न लगे..सोनिया तय करे कि क्वात्रोची को क्लीन चिट मिले कि न मिले....फिर तो भईया....राम ही राखे.....क्योंकि जनता तो तटस्थ होती जा रही है........

कश्मीर तो फिर भी कश्मीर है...लेकिन इस बिहार को क्या हो गया...यहां तो लोग अब अमन चैन की बात करतने लगे हैं...लालू से छुटकारा मिल गया है लोगों को ...कहीं बिहार सुस्त तो नहीं हो गया....विकास की हल्की सी किरण देख सवेरा तो नहीं समझ लिया लोगों ने जबकि अभी तो मीलों दूर जाना है विकास की उस कल्पना के लिए जिसका ख्वाब देखा था डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने.....स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण ने......फिर इतनी सुस्ती....इतनी थकान कि वोट ही न डालेंगे....जम्हूरियत से ऐसा विकर्षण अच्छा नहीं समाज के लिए देश के लिए....सरकार के लिए...जनता के लिए.......वो भी तब जब लोगों को जागरुक बनाने के लिए...ये दिखाने के लिए कि भईया वोट देना कितना जरुरी है...(भले ही दिखावे के लिए हो).....मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद ट्रेन से चल पड़े हों वोट डालने ...इस तर्क के साथ कि हमारा मतदान केंद्र रेलवे स्टेशन के करीब पड़ता है.....ये अलग बात हो कि वो जिस सीट पर बैठे थे ...उसका शीशा यानी ग्लास में दरार थी...दरका हुआ था वो...ये दिखा रहा था कि लालू की रेल दरकी हुई है....सोच दरकी हुई है.....राजनीति दरक रही है.....कुनबा दरक रहा है.....टीवी चैनलों पर देखकर कोफ्त हुई कि बिहार के सिर्फ सैंतीस फीसदी लोगों ने चौथे चरण के मतदान में हिस्सा लिया....मीडिया के इतने सारे कार्यक्रमों ...प्रचारों के बावजूद कि बेटा पप्पु मत बनना.....माफ कीजिएगा...कोर्ट ने भले ही रोक लगा दी हो लेकिन पप्पु को पप्पु नहीं तो क्या कहेंगे......बिहार में वैशाली प्रजातंत्र की एक मिसाल मानी जाती है.....लेकिन उसी बिहार में लोगों को प्रजातंत्र से मोहभंग .....कहीं कोई बुरा सपना तो नहीं....या आने वाले किसी ख़तरे का संकेत तो नहीं.....कहीं हमारा लोकतंत्र कमजोर तो नहीं हो रहा.......
मुझे आज भी वो दिन याद है...जब हमारे गांव में लोकसभा चुनाव के लिए वोट डालने वालों की लंबी कतार लगती थी.....उस पुस्तकालय में सप्ताह भर पहले से लोगों का आना जाना...किताबें वाचने का काम बंद हो जाता था...लंबी बंदूकों वाले जवानों का डेरा हो जाता था वो पुस्तकालय...तब चुनाव में प्रचार भी खूब होता था...उम्मीदवारों की गाड़ियां....जिसमें आगे-पीछे लाऊडस्पीकर लगी होती थी....चीख-चीखकर लोगों की नींद हराम कर देती थीं.....गांड़ियों से धुएं के साथ कागज के पर्चे भी उड़ते थे......पूरे गांव के छोटे से बाज़ार में सरस्वती पूजा की तरह कागजों के बैनर पोस्टर लग जाते थे...सज जाता था हर इक घर-मकान-दुकान...जैसे कोई बड़ा त्योहार हो.....लेकिन आज न लाऊडस्पीकर की गूंज है.....न गाड़ियों का शोर...न रंगीन कागजों का प्रचार....बस्स नेताजी आ गए...यही क्या कम है......उड़नखटोले से नीचे तो कोई नेता आता भी नहीं.......नेता है भईया कोई आम आदमी तो नहीं......ये अलग बात है कि चुनाव के बाद जीत मिली तो भगवान हो जाता है और हार गया तो आम आदमी से बदतर.......

और तब वोट देने के लिए लंबी कतार लगती थी....मर्दों की अलग-महिलाओं की अलग.....तब चुनाव में गोली-बंदूक-बम के डर से लोग सुबह सवेरे वोट डालने जाते थे......क्योंकि आम तौर पर इनका इस्तेमाल दोपहर के बाद ही होता था...फिर भी लोग जाते थे....जान हथेली पर लेकर...लेकिन आज लोगों को क्या हो गया है....सुरक्षा के इतने पुख़्ता इंतजामात अगर तब होते तो शायद नब्बे फीसदी लोग वोट डालते...मेरे दादाजी भी....जो हमेशा ये कहते थे...जाओ घर पर भी कोई होना चाहिए....लुच्चे लफंगे बहुत घुमते हैं आज के दिन.....तब गाड़ी-घोड़ा क्या साईकिल तक चलाने की इज़ाजत नहीं होती थी पॉलिंग के दिन...फिर भी लोगों का हुजूम चलता था वोट डालने ...जैसे पिकनिक मनाने जा रहे हों.....लेकिन मुझे लगता है जैसे जैसे लोग आधुनिक हो रहे हैं..वैसे वैसे लापरवाह भी...आलसी भी...और अपने अधिकारों के प्रति उदासीन भी.....वोट के दिन मिली छुट्टी का मज़ा लेना चाहते हैं घर की एसी में रहकर....बच्चों के साथ टीवी देखर...फिल्में देखकर ...लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि वो खुद तो जम्हूरियत का अपमान कर ही रहे हैं...अपने बच्चों में भी उसी का बीज डाल रहे हैं......और ऐसे ही लोग सरकार पर तोहमत भी खूब लगाते हैं.....ये नहीं कर रही सरकार....वो नहीं कर रही सरकार.......सवाल ये है जब आप अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर रहे फिर दूसरों पर ऊंगलियां उठाने पहले सोच तो लीजिए......थक आप गए हैं....तोहमत जम्हूरियत पर लग रही है.....वोट आप नहीं डालते......कमजोर लोकतंत्र हो रहा है...क्योंकि आप हैं तो लोकतंत्र है.....आप ही से है लोकतंत्र...आपका ही है लोकतंत्र......


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
ज़िन्दगी में और कहीं हो न हो...लेकिन लगता है राजनीति में सब ज़ायज़ है...अगर आप (आप कहते शर्म आती है...आप इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अब भी कुछ अपवाद बचे हैं....) राजनेता हैं...तो किसी को कुछ भी कहिए...चलेगा...ख़ासकर चुनाव के मौके पर....नीच...व्याभिचारी...लुच्चा लफंगा कुछ भी कह सकते हैं...कौन देख रहा है.....चुनाव आयोग को और भी कई काम हैं....नेताओं के घटिया बयानों पर नज़र रखने के अलावा....और कोई कबतक कितना नज़र रखे..भाई...एक ..दो ..हो तो भी चलेगा...यहां तो अधिकतर वही भाषा...नहीं भांसा (कूड़ा) बोलने लगे हैं.....बिना ये सोचे कि जनता क्या सोचेगी...लगता है ये नेता ये सोच-समझ चुके हैं कि जनता को भी अब उनके बयानों-वक्तव्यों से कोई मतलब होता नहीं....लेकिन जनाब ये सोच ही इन नेताओं को एक दिन ले डूबेगी...क्योंकि जनता कल भी जनार्दन थी....आज भी जनार्दन है....और जबतक इंडिया में डेमोक्रेसी यानी जम्हूरियत रहेगी.....(जिसके न होने का कोई मतलब ही नहीं..क्योंकि जड़े काफी गहरे जमीं हैं...)...कल भी जनार्दन रहेगी.....अब किसकी-किसकी बात करें....कोई अपने विपक्षी उम्मीदवार को गाली दे रहा है....कोई विपक्षी पार्टी को गाली दे रहा है....और कोई न मिला तो कोई जनता को ही....भईया....जनता यानी आम आदमी जम्हूरियत में असली राजा होता है...एक बार आप विधायकों - सांसदों को वापस लेने का अधिकार देकर देख लो....अच्छे अच्छों को उखाड़ न दिया तो कहना.....ये तो अच्छा है कि आज के नेता इस बिल को इस डर से पास नहीं होने देंगे...कि फिर एक न एक दिन हमारी भी बारी आ जाएगी......
वैसे नेताओं का क्या है....आगे नाथ न पीछे पगहा...पगहा समझते हैं न...समझते ही होंगे ...कभी एक बात पर नहीं टिकते हैं ये लोग..कभी कुछ कहेंगे...और फिर अपनी बात से बदल जाऐंगे.....चुनाव के पहले गठबंधन की बात करेंगे...लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगी..गठबंधन कि धागे...बिखरते नजर आते हैं....क्योंकि उन्हें हर एक सीट अपनी नज़र आने लगती है....किसी एक पार्टी पर उंगली उठाने से कोई फायदा नहीं.....लेकिन सभी एक जैसे भी नहीं....लेकिन जब वोटों की गिनती होने लगेगी...परिणाम आने लगेंगे.....इनकी बोली बदलने लगेगी...अगर कम सीटें मिलती दिख रही हों तो ये आकलन करने लगते हैं...कि किसे समर्थन करें कतो मलाईदार मंत्रालय मिलेगा.....ऐसे नेताओं पर कोई यकीं करे तो कैसे....लेकिन जब कोई चारा न हो ...विकल्प न हो तो करना ही पड़ता है..........
मतलब...उ का है...कि कल तक हम निवाला....हम प्याला...आज पार्टी बदली....आज ही भाषा भी बदल गई....अरे नेता हैं तो पार्टी तो बदलेंगे ही....कोई जमींदारी तो है नहीं....कि कांग्रेस में हैं तो कांग्रेस के ही होकर रहेंगे जिंदगी भर...भईया...राजनीति प्राइवेट कंपनी की नौकरी की तरह होती है.....वो दिन गए...कि कांग्रेस से शुरु की...राजनीति की दुकान तो कफन भी कांग्रेस का झंडा ही बनेगा.......अब न तो नेता रहे पहले जैसे...न नेतागिरी....न सिद्धांत बचा.....न विचार....अब तो बस पैसे की बात है...कौन कितना देता है....कौन कितना लेता है.....पैसा है तो एक नहीं दस पार्टियां हाथोंहाथ आपको लेने के लिए तैयार हो जाऐंगी...बस एक बार आप बदलने का संकेत दीजिए......और अगर आप अपने इलाके के वजनदार नेता हैं.....लोग आपको चाहते हैं....आपके व्यक्तित्व से.....किसी पार्टी के नाम से नहीं तब तो सोने में सुहागा समझिए....क्या राष्ट्रीय ...क्या क्षेत्रीय...सब आपको हाथोहाथ लेंगे.....बस आप अपने इलाके में इतना हैसियत जरुर रखते हों कि चुनाव तो जीत ही लें...पार्टी कोई भी हो....सबसे बड़ी बीजेपी-कांग्रेस या.....राष्ट्रीय(नाम का) स्वाभिमान पार्टी.......
अब जरा उन नेताओं की बात कीजिए...जिनके जबान बेलगाम हैं.....ख़ासकर तब जब वो ये समझने लगते हैं कि अब वो हारने वाले हैं......सबसे पहली श्रेणी में आते हैं....लालू प्रसाद और राबड़ी देवी सरीखे नेता.....मतबल समझ गए न....भैंस का दूध पीकर बुद्धि भी भैंस जैसी हो गई है.....ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे जैसे चुन चुनकर रखे हों चुनाव के लिए......उसके बाद आते हैं गुड्डू पंडित जैसे लोग.....धमकाने वाले.....अगर मे्रे भाई को वोट नहीं दिया तो मतगणना के अगले दिन का सूरज नहीं देखोगे....जैसा डॉयलॉग मारने वाले लोग.....ये लोग भूल जाते हैं कि जनता एक दिन में छट्ठी का दूथ याद करा देती है...तब इनकी जगह जेल में नज़र आती है......इसके बाद कुछ लोग ऐसे भी हैं जैसे मुंह में कुछ...बगल में कुछ.....कांग्रेस नेताओं की श्रेणी कुछ ऐसी ही है.....और कांग्रेस क्या...कई राष्ट्रीय पार्टी का दंभ भरने वाली पार्टियों की यही हाल है........इस चुनाव में एक ख़ास किस्म के नेता देखने को भी मिले...मतलब बड़बोले नेता....जनाब कब क्या बोल रहे हैं....(बकना कहें तो बेहतर होगा)...इन्हें पता ही नहीं होता....बात तो ऐसे करेंगे जैसे अमेरिका इनका गुलाम हो.....पीएम और राष्ठ्रपति इनके घर आते जाते हों.....और छोटे मोटे लोग इनकी चाकरी करते हों.....ये नेता भोली भाली जनता के सामने एक डींगबाज की तरह डींग हांकते हैं...बोलते हैं शेर जैसे...लेकिन बड़े नेताओं के पास भीगी बिल्ली बन खड़े होते हैं.....ये नेता न तो अपनी कौम के होते हैं...न समाज के...न देश के...और न ही अपने किसी अपनों के.......
लेकिन लगता है चुनाव के बहाने एक चीज जो साफ साफ नज़र आती है...वो ये है कि नेता....जाने अंजाने में एक दूसरे पर कीचड़ फेंककर ये जता देते हैं कि हम कितने गंदे हैं...हमसे कितनी दूरी बनाए रखो.......आज बस इतना ही.....ज्यादा गंदगी बदबू करने लगेगी.....