(मदर्स डे पर विशेष)
जीवन में अबतक जो भी मैंने देखा
समझा...जाना....
यही पहचाना
कि मां ही जानती है
अपने बेटे का दर्द
तकलीफ,मुश्किले
बिना कहे
समझ जाती है क्यों
सूखे हैं
उसके लाडले के होंठ
क्यों बिखरे हैं बाल
क्यों उड़ रही है
जिगर के टूकड़े के
चेहरे पर हवाईयां
क्यों निकल रहे हैं आंसू
क्यों बरस रही हैं आंखें
क्योंकि वो मां है
क्यों गुमसुम हैं
उसका बेटा
क्यों खामोश है
उसकी निगाहें
क्यों नहीं उठ रही
झुकी-झुकी सी निगाहें
क्यों ठिठक रहा है
उसके लाडले के पैर
क्यों नहीं आ रही
उसकी आंखों में नींद
क्यों अधखुली हैं पलकें
क्यों नजरें चुराने लगा है
कुछ
अपनी मां से ही छुपाने लगा है
क्योंकि वो मां है

4 टिप्पणियाँ:

aapka blog dekha...

bahut hi sundar hai

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बहुत बढ़िया...
आज मैंने मां के ऊपर बहुत कविताएं पढ़ीं लेकिन भावनाओं को सटीक रूप से अभिव्यक्त करती पहली रचना मिली....
मदर्स डे की बधाई......

बहुत सुंदर कविता है सर..आपमें एर फन ये भी है आज जाना ...बहुत सुंदर रचना है आपकी...मदर्स डे पर सटीक कविता..

बेहतरीन लफ़्ज़ अदाएगी...! बस इतना ही कहूंगी कि आप कि कविता ने भावनाओं के स्तर को बखूबी शब्दों का रुप दिया है ।