मुश्किलातों का समंदर, हौसले की कश्तियां
और जब गिरती हैं, यारों आसमां से बिजलियां
मैं समझ जाता हूं रोया, रात भर कोई बहुत
अश्क का कतरा न था, थीं तो केवल सिसकियां
मेरे सीने से भी गुजरे, दर्द - ओ - ग़म के रेल भी
जानता हूं, क्यों नहीं रुकती हैं आखिर हिचकियां
आपके उनके तजुर्बे, मेरे हैं किस काम के
मेरे दिल से कोई पूछे, जब उड़ी थीं गिल्लियां
-क्षितिज
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें