आप जो भी अखबार उठा लें...हर तरफ यही लिखा है कि बिहार में पिछले एक सप्ताह में तीन बंद से बिहारवासी त्रस्त हो गए, बेहाल हो गए...लेकिन जनाब क्या कभी आपने सोचा है कि ये बंद कितना जरूरी है...नहीं सोचा होगा...अपने आप से आगे सोचने की फुर्सत मिले तब तो सोचेंगे आप......आप कमाने धमाने के लिए ऑफिस जाते हैं, दुकान खोलते हैं, रेहड़ी लगाते हैं, अखबार बेचते हैं, चैनल चलाते हैं, रिश्वत लेते हैं-देते हैं....और भी न जाने क्या कया करते धरते हैं...तो जनाब इसी तरह राजनीति पार्टियों की दुकान चलती है रैलियों से, विरोध प्रदर्शन से, हड़ताल से , बंद से, लट्ठम लठाई से.....यानी राजनीतिक पारक्टियों की दुकान चलती रहे...इसके लिए जरूरी है कि बंद-हड़ताल आदि होते रहें.....
अब ये कतई जरूरी नहीं कि सरकार अच्छा काम कर रही हो और विपक्ष बंद न करे...हड़ताल न करे....जनाब सरकार किसी की रहे...विकास की गंगा बहाने का दावा कर रहे नीतीश कुमार की या लगातार महंगाई बढ़ाने वाले मनमोहन सिंह की...या फिर दलितों का उत्थान करने का संकल्प लेने का दम भरने वाली मायावती की......विपक्ष तो अपना काम करता रहेगा....वजह साफ है चुनाव में उन्हें भी जनता को दिखाना है कि हम भी कुछ करते हैं...कर सकते हैं....करना चाहते हैं....अब ये अलग बात है कि वो कुछ करना चाहें या न करना चाहें.......यही वजह है कि एनडीए,वामपंथियों और दूसरे दलों ने मिलकर भारत बंद का आह्वान किया तो मायावती ने अकेले दम पर यूपी में महंगाई का विरोध कर सोनिया-मनमोहन को चुनौती देने की कोशिश की......अब ऐसे में आरजेडी के लालू और एलजेपी के रामविलास भला कहां पीछे रहने वाले थे...उन्होंने भी अपने बिहार में बंद का आयोजन कर महंगाई का विरोध किया वो भी अपने अंदाज में...लेकिन ये महंगाई के विरोध में कम था नीतीश सरकार को चुनौती देना ज्यादा लगा......लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा...राजनीति की दुकान चलाने के लिए ये भी जरूरी था.....जनता लाख चिल्लाए...मरे...अपनी बला से......रोजी-रोटी सबकी चलनी चाहिए.....बीजेपी की भई,जदयू की भी,आरजेडी की भी,लोजपा की भी,बसपा की भी...और कांग्रेस तो गोदाम पर कब्जा किए बैठी है...उसकी तो बात ही मत कीजिए..........

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चलने तो रोजी रोटी सबकी...