घर से निकलने से पहले
करता हूं आपको प्रणाम
घर से निकलते ही
सोसायटी में कारों पर
देखता हूं आपकी तस्वीर
सिर झुक जाता है
खुद-ब-खुद
कहना नहीं पड़ता
बस में चढ़ा
आगे के शीशे पर दिखी
आपकी
एक नहीं ....कई तस्वीरें
अलग अलग मुद्राओं में
एक बार फिर नमन आपको
बस की खिड़की से
दिखती है
हर रोज आपका मंदिर
मंदिर पर लगा साईनबोर्ड
जिसमें हैं
आपकी अनुपम तस्वीरें
फिर सिर झुक गया
खुद -ब - खुद
ऑफिस में मंदिर है
मंदिर में है
आपकी
झक्क सफेद प्रतिमा
हाथ जुड़ जाते हैं
सिर झुक जाता है
आपको देखकर
बंधती है
एक उम्मीद
जीवन में खुशी का
लोग कहते हैं भगवान कहां है..
मैं तो कहता हूं
हर कहीं है
बस रुप अलग है
देखने वाले की नज़र है
किसी को
हर तस्वीर में नजर आते हैं साईं
किसी को कोई
तस्वीर ही नहीं दिखती

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