वक्त के चेहरे पे
शिकन ये कैसी दिखने लगी
थम गया वक्त
या हो चला है अब बुढ़ा
झुर्रियां चेहरे की
बिस्तर की
सिलवटों सी लगती है
सोचता हूं
शायद उसे
आजतक पता ही नहीं
आज लंगड़ाता हुआ
वक्त जब सुबह मुझसे मिला
दर्द पर उसके चेहरे पर
जरा सी भी नहीं
गिर रहा था
कई जगह से खूं का कतरा
पर उसके चेहरे पे मुस्कान
कल की तरह थी
उसने मुझसे मिलाई हाथ
गर्मजोशी से
वो था
मुरझाया सा
हाथ मेरे ठंढे थे
उसके चेहरे पे था मुस्कान
मैं उदास सा था
वो था घायल
तड़प रहा था मैं
क्योंकि उम्मीद थी
उसे
वक्त बदलेगा
जरुर बदलेगा
Mohalla Live
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Mohalla Live
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गाली-मुक्त सिनेमा में आ पाएगा पूरा समाज?
Posted: 24 Jan 2015 12:35 AM PST
सिनेमा समाज की कहानी कहता है और...
10 वर्ष पहले
2 टिप्पणियाँ:
Marmi tasvir, satik tippni.
Rajesh Apne achchha likha hai. Apne profile mein apni tasvir nahi lagai. Mera ek dost bhi hai apke nam ka. kafi din ho gye usese mile. khair apne khush ker diya. likhten rahen.
Marmi tasvir, satik tippni.
Rajesh Apne achchha likha hai. Apne profile mein apni tasvir nahi lagai. Mera ek dost bhi hai apke nam ka. kafi din ho gye usese mile. khair apne khush ker diya. likhten rahen.
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