गांव से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर था हमारा मिडिल स्कूल....रास्ते में तीन पइनों से गुजरना पड़ता था....पानी कम होने पर पैर से छपाछप करते हुए...पानी ज्यादा होने पर,खासकर बरसात के दिनों में, तीन इंच के पाइप के सहारे इस पार से उस पार जाते थे....पैर जरा भी फिसला कि आप पानी के अंदर...बड़ा मजा आता था....पाइप पर चलने में भी और पैर फिसलता किसी को देखने में भी.....जिनके पास साइकिल होती थी...वो लंबी दूरी तय कर....मुख्य सड़क के सहारे स्कूल पहुंच जाते थे....रास्ते में उन्हें किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता था....पर हम जैसों को तो पैदल चलने में ही मजा आता था....मजबूरी भी थी...शौक भी था...उत्साह भी.....बारिश का मौसम हो तो क्या कहने....भीग कर स्कूल पहुंचों और फिर भीगने का बहाना कर घर लौट आओ...आखिर भीगने पर ही तो कोई बीमार पड़ता है.....और ये बात मास्साब भी जानते थे और घरवाले भी......
मिडिल स्कूल में टिफिन में कैंटिन के नाम पर होती थी एक बुढ़िया अम्मा की टोकरी...जिसमें कई चीजें होती थी....पकौड़ी, घुघनी, बर्रा.....और भी बहुत कुछ....खाने के लिए प्लेट के नाम होती थी प्राकृतिक पेड़ों के पत्ते...जिसमें बुढ़ी अम्मा बेचती थी सबकुछ...बुढ़ी थी बेचारी...दादी अम्मां की तरह....बुढ़ापे में याद कितना रहता है सभी जानते हैं पर बच्चे उनकी अच्छी बुरी याददाश्त का खुब फायदा उठाते थे....वैसे अम्मा को याद बहुत रहता था...किसने कब क्या खाया...उस दिन उसने क्या बहाना किया था.....क्या पहने था उस दिन ...यहां तक कि उसके साथ और कौन आया था....सब कुछ...लेकिन जब बच्चे इंकार करते तो वो हार जाती थी....कभी कभीर कसमें खाने को कहती...जैसे भगवान कसम...इससे ज्यादा कभी नहीं....और बच्चे तो भगवान ऐसे खाते जैसे मूंगफली के दाने.....वैसे धीरे धीरे उसने उधार देना भी कम कर दिया....ये कहकर कि बेटा याद नहीं रहता...पैसे है तो खाओ....वर्ना न खाओ....हां पैसे नहीं हैं...और देने का इरादा भी नहीं तो खा लो...ऐसे ही लेकिन कभी कभार...बिरले ही किसी को देती थी.....आज भी उसके सामान को याद कर मुंह में पानी भर आता है.....बुढ़ी अम्मा की हाथों में मानो जादू था........
(शेष अगले अंक में....)

1 टिप्पणियाँ:

बचपन याद करा दिया आपने... मज़ा आ गया... हम भी धूल-मिट्टी में लोटते हुए स्कूल पहुंचते थे और उससे भी बुरी हालत में घर लौटते थे। लेकिन स्कूल में मास्साब जब मारते थे, तो उसका जिक्र किसी से भी नहीं करते थे। वैसे भी बचपन से अब तक सारी तालीम सरकारी स्कूलों में हुई... लिहाज़ा मस्ती करने की पूरी छूट होती थी।