जब से गर्मी का महीना शुरू हुआ है तब से घरवालों से जब भी बात होती है तो रुह कांप जाती है...इस भयंकर गर्मी के मौसम में चार से पांच घंटे बिजली मिल पाती है....जिससे भी बात कीजिए ...बात घुम-फिरकर आ जाती है बिजली पर.....बड़ा बुरा हाल है बेटा बिजली रहती ही नहीं.....इन्वर्टर चार्ज तक नहीं हो पाता और इस भयंकर गर्मी में तो ऐसा लगता है जैसे नरक में पूर्व जन्मों के पापों की सजा भोग रहा हूं......ऐसी बातों से कोफ्त भी होती है, गुस्सा भी आता है..... लेकिन जब सोचने लगता हूं तो लगता है कोई भी सरकार करे तो क्या करे.....बिजली आपूर्ति करना कोई पियाऊ खोलने जैसा तो है नहीं.....लोगों को बिजली चोरी की आदत लगी है....बिजली खर्च करेंगे हजार का बिल जमा करेंगे सौ रुप्य्या...सरकार करे तो क्या करे.....और यही वजह है कि दम ठोंक कर बिहार में बिजली आपूर्ति के लिए कोई पार्टी.....कोई संगठन आगे नहीं आता.....सबको पता है कि बिहार में बिजली उत्पादन कितना होता है.....खरीदकर सरकार दान में बिजली सप्लाई करे तो क्यों करे.....लेकिन बिहार के लोग इस बात को समझने के लिए कतई तैयार नहीं...और जो समझना चाहते हैं उन्हें निरा बेवकूफ समझा जाता है....जबकि लोग ये भूल जाते हैं कि अगर बिजली आपूर्ति के मुताबिक बिल का भुगतान होने लगे तो सरकार को मिलने वाला राजस्व तो बढ़ेगा ही.....व्यापार और उद्योग-धंधे भी तेजी से प्रगति करेंगे.....गांव-देहात की नहीं जिला मुख्यालयों में चार से पांच घंटे बिजली आपूर्ति के कारण बिजली से चलने वाले उपकरण का व्यापार , इन्वर्टर का व्यापार, लघु, मध्यम तथा वृहत आकार के उद्योग धंधों की दुकानदारी बाबा आदम के जमाने की चल रही है.....लोग सोचने हैं एसी – कूलर क्यों खरीदें ...जब बिजली ही नहीं होगी..तो पैसा क्यों खर्च करें....जब अट्ठारह-उन्नीस घंटे बिना एसी-कूलर के रहेंगे...तो चार –पांच घंटे और सही.....अब जेनरेटर बाले लोग पांच फीसदी से ज्यादा तो हैं नहीं...लिहाजा व्यापार उद्योग के विकास का अंदाजा लगाना सरल है.....यानी बात वहीं ढाक के तीन पात.....
लेकिन इस मामले में सरकार भी कम दोषी नहीं.....सरकार कांग्रेस की रही हो.....लालू राबड़ी की हो या फिर नीतीश की.....हर राज्य बिजली आपूर्ति, वितरण और बिल भुगतान का काम निजी क्षेत्रों को सौंप रहा है.....और सरकार की एजेंसियां खुद मॉनिटरिंग कर रही है...लेकिन बिहार में बिजली चोरी की समस्या आज भी विकराल है....ये उपभोक्ताओं की नासमझी भी है और मूर्खता भी.....जो कम बिल का भुगतान कर.....बिजली ऑफिस के बाबू – इंजीनियर को कुछ रिश्वत देकर सोच लेते हैं कि बाजी मार ली.....जबकि हकीकत में बाजी उनके हाथ से निकलती जा रही है....और यही वजह है उनके घरों में आज बल्ब चौबीस घंटे में महज चार – पांच घंटे ही जल पाते हैं.....फ्रिज में हर वक्त ठंढा पानी नहीं होता....एसी-कूलर घर की शोभा के सामान बन जाते हैं......लेकिन इस बारे में उन्हें ही सोचना होगा.....कि वो सही तरीके से बिजली बिल का भुगतान करें....खुद भी चैन से रहें और औरों को भी रहने दें.....जाहिर से सरकार से हम सुविधाओं की मांग तभी प्रभावकारी तरीके से कर सकते हैं जब हम अपनी ओर से इमानदार हों........

1 टिप्पणियाँ:

बिजली की ज़रूरत शहरों को है..
होर्डिंग्स के लिए बैनर्स के लिए सजावट के लिए.. न कि गांवों के लिए , वहां के लोगों को तो आदन है न?