सच के चेहरे
रुखे सूखे
झुठ के चेहरे
दप दप करते
सच के चेहरे
मुरझाए से
झुठ को देखो
सदा चमकते
सच का क्या है
जो भी है
बस सामने है
आईने की तरह
झुठ की तो
बस पूछो ही मत
दिखता कुछ है
होता है कुछ और
एक चेहरे पर इतने चेहरे
कोई पहचान नहीं सकता
कोई जान नहीं सकता
कुछ तो दिखते
सच की भांति
मिलते जुलते
ऐसे जैसे
बस सच ही हों

क्या है बसेरा?
वक्त के साथ...
फ़ॉलोअर
कुछ और बसेरे...
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Mohalla Live - Mohalla Live ------------------------------ गाली-मुक्त सिनेमा में आ पाएगा पूरा समाज? Posted: 24 Jan 2015 12:35 AM PST सिनेमा समाज की कहानी कहता है और...10 वर्ष पहले
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स्पोर्ट्स पीरियड में सफाई करवाने से बनेंगे खिलाड़ी? - आज टीवी पर स्कूल के बच्चों को सफाई करते देखा तो अपना टाइम याद आ गया। मगर सफाई के बहाने कोई दूसरी बात ध्यान में आई। मैं 11 साल तक सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं...10 वर्ष पहले
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अब तो हर शख्स की
नज़रों में झलकता है फरेब
कोई अपना हो या हो गैर
करें किसपे यकीं
हर चेहरे पे
नज़र आती है
मुस्कुराहट झुठी
ठहाके
खोखले से लगते हैं
बस
सच लगता है
तो
आंखों में आंसू
लेकिन
हर कोई
हर किसी के सामने
रोता भी नहीं
हंसने की कोशिश में
निकल आते हैं
कमबख़्त आंसू
किसी के दुख-दर्द में
संवेदनाएं
हो गई है
दिखावे की चीज
लोग भरे गले से
कहते तो
बहुत कुछ हैं मगर
दूर जाते ही
हंसते हैं
परीक्षा में
फेल होने पर
बच्चे
कर लेते हैं आत्महत्या
कर्ज अदा करने में
सक्षम नहीं होने पर
किसान
झूल जाता है फांसी पर
नौकरी छूट जाने पर
कूद जाता है
पाचवीं मंजिल से
कोई
पर
कोई नेता
आज तक
कभी नहीं मरा
भले
हार जाए
लोकसभा का चुनाव
विधानसभा का भी
पार्षद का भी
पंचायत का भी
उसे शर्म
नहीं आती
क्योंकि नेतागिरी
बेशर्मी की हद है
जनता को
बेवकूफ
नहीं बना पाया
बस
सोचकर
चुपचाप रह जाता है
चलो
अगली बार देखेंगे
कैसे बचेगा बच्चु
ट्वेंटी-ट्वेंटी
वर्ल्ड कप में
टीम इंडिया
हार गया
तो क्या हुआ
खेल में
जीतता
कोई एक ही है
हार की हार
स्वीकार करो
हारने वाला ही
अगली बार
जीतने के लिए
उतरता है
मैदान में
जो हारा नहीं
उसे क्या पता
जीत का
असली स्वाद
सुनता रहा हूं
एक मच्छर
बना देता है
आदमी को हिजड़ा
आज सुनिए
एक ग़लत फैसला
नहीं छोड़ता
इंसान को
किसी काम का
सोचिए
आपने
कब लिया
कोई
गलत फैसला
मैं जिस रुट की बस से रोज ऑफिस आता हूं...उसमें अमूमन कई चेहरे जाने पहचाने से लगते हैं.....या यूं कहें तो लगने लगे हैं...रोज उतरने चढ़ने भर का रिश्ता है...कोई किसी को देखकर मुस्कुराता भी नहीं ...बस देखता है...सोचता है....अच्छा आज भी...ऐसे ही एक चेहरा है एक लड़की का.....मॉडर्न सी लड़की का.....चेहरे पर काला चश्मा....गहरे लिपस्टिक रंगे होंठ....हाथ में दो मोबाईल फोन....कान में लगा ईयरफोन.....लड़की मोटी सी है पर हर रोज नए लड़के के साथ.....कोई भी हो....मुझे क्या.....कई बार लड़कों के साथ खुसर-फुसर करते देखा..सट-सटाकर....मुझे क्या.....उस दिन अचानक वो चिल्लाने लगी.....समझ क्या रखा है.....शरीफ लड़कियों को छेड़ते शर्म नहीं आती...ठीक से बैठते नहीं.....पीछे मुड़कर देखा...वही लड़की....नए लड़के के साथ...लड़का चुप था....क्या बोलता......लड़की चिल्लाए जा रही थी......एक यात्री पर.....जिसका पैर जरा छू गया था उसके पैर से....बस्स......अब शरीफ (?) लड़की है तो चिल्लाएगी ही......फिर शरीफ लड़की चुप हो गई.....लड़के से बातचीत में गुम हो गई.....शरीफ जो ठहरी.....मेरा स्टॉप आया...मैं उतर गया......
लोग कहते हैं
आजकल
हर शय बिकती है
मैं कहता हूं
नहीं जनाब
आजकल नहीं
सिर्फ आज
कल किसने देखा है
और जो कल
बीत चुका है
उसके बारे में
मुझे कुछ भी कहां पता
मुझे याद है
बचपन के वो दिन
जब
जुगनुओं को पकड़ने के लिए
मचल उठता था मन
किसी पत्ते पर
बैठी तितलियों से
जलन होती थी
ये सोचकर
कि वो
मेरे कमीज पर
क्यों नहीं बैठी
मुझे याद है
बचपन के वो दिन
जब घर के करीब
हलवाई की दुकान पर
मैं रोज जाता था
और मुझे रोज मिलती थी
मिठाई बिना मांगे
क्योंकि मुझे अच्छी लगती थी
जलेबी
और मेरे लिए हर रोज
घर आती थी
गरमागरम जलेबियां
रुपए के बदले में तौलकर अलग
और मेरे नाम से मुफ्त की अलग
मुझे याद है
बचपन के वो दिन
लेकिन अब कहां मिलती हैं
वो रसदार जलेबियां
मिलती भी हैं
तो वो स्वाद कहां
उसमें बचपन की मिठास थी
अब है
जवानी की कड़वाहट
तब हकीकत का तीखापन नहीं था
अब तो हर मिठाई लगती है तीखी
मिर्च से ज्यादा
मुझे याद है
बचपन के वो दिन
भूखे को नजर आती है
हर शय में बस रोटी
आसमां में
जमीं पर
चांद में
नदियों - तालाबों में
क्योंकि
भूख़ से बड़ी
दुनिया में कुछ भी नहीं
न जिस्म काम करता है
न दिमाग सोचता है
न कुछ याद आता है
कुछ देर पहले का भी कुछ
हर गोल चीज
लगती है रोटी की तरह
स्वाद का एहसास भी
होने लगता है
मुंह में पानी आ जाता है
और कुछ देर के लिए
तृप्त हो जाता मन
ये सोचकर
कि अब तो रोटी पास है
(अर्थ मत ढूंढिए)
सूरज की किरणें उदास है
कोई मेरे आसपास है
चांदनी क्यों खोई खोई है
आखिर उसे किसकी तलाश है
जब जीवन का अंत विनाश है
मालिक क्यों कोई दास है
कोई मुझको ये समझाए
क्यों मूल्यों का हो रहा ह्रास है
देख समाज की नित घटनाएं
मन को होता क्यों त्रास है
कोई किसी को नहीं है भाता
तो कोई क्यों खासमखास है
अच्छा ये बतलाओ मुझको
आखिर रोता क्यों आकाश है
वो विशाल है, सबसे ऊपर
आखिर उसे क्या संत्रास है
आज की ताजा ख़बर
जेट पर उड़ेगी माया
78 करोड़ की जेट पर
क्या अजूबा है इसमें
जब माया है
तब जेट भी उसके लिए कम है
क्योंकि माया की माया के क्या कहने
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
चोट लगे,दम निकले,पर आह मत करना
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
अच्छा हो कितना भी, कुछ भी पर दोस्त मेरे
आम लोगों की तरह वाह वाह मत करना
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
जीवन में खुशियां हो, गम हों..जो भी हो
आंसू बहाकर जीवन स्याह मत करना
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
किसी बात पर भी अपनी नाराज़गी
भूलकर भी जाहिर सरेराह मत करना
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
चोट लगे,दम निकले,पर आह मत करना
कभी किसी की तुम परवाह मत करना
चेहरे पर चेहरा
शब्दों के चेहरे
कहते हैं सबकुछ
बस आना चाहिए
आपको पढ़ना
शब्द मुस्कुराते हैं
शब्द खिलखिलाते हैं
होते हैं गुस्सा भी
शब्द दिल मिलाते हैं
शब्दों के चेहरे
कहते हैं सबकुछ
बस आना चाहिए
आपको पढ़ना
गुस्से में शब्दों के
लाल नहीं होते
चेहरे
गतिहीन होते हैं
शिथिल से हो जाते हैं
शब्दों के चेहरे
कहते हैं सबकुछ
बस आना चाहिए
आपको पढ़ना
शब्दों को मत समझो
शब्द नहीं होते
निर्जीव
शब्द
बोलते भी हैं
कुछ
बोलते नहीं
बिना बोले
सिखा जाते हैं
ढेरों अर्थ
अनकहे शब्दों की
बात ही मत पुछो
शब्दों के चेहरे
कहते हैं सबकुछ
बस आना चाहिए
आपको पढ़ना
शब्दों को भी
लगती है ठेस भी
रोते भी हैं शब्द
शब्दों के होते हैं
दिल भी
दुखते भी हैं दिल
दर्द भी होता है
शब्दों के चेहरे
कहते हैं सबकुछ
बस आना चाहिए
आपको पढ़ना