जिंदगी की हकीकत, कोई समझाए
कब तलक इतनी फजीहत, कोई समझाए

देने वाले तो मिल जाते हैं हर दिन हजार
किसकी उम्दा है नसीहत, कोई समझाए

खनक रिश्तों की, या कि टनक सिक्कों की
बेहतर कौन सी मिल्कियत, कोई समझाए

न‌ लेके कोई कुछ आया, न लेके जाएगा
कौन सी किसकी वसीयत, कोई समझाए

दुनियादारी तो सिखाते हैं कई लोग "क्षितिज"
खत्म क्यों हो रही इन्सानियत, कोई समझाए

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