अब भी दिल को यकींन नहीं हो रहा है कि कुछ घंटों ( रात साढ़े बारह बजे के आसपास) पहले जिनसे बात हुई थी...वो शख्स अब हमसे बात करने के लिए मौजूद नहीं है...और जब मुझे यकीं नहीं हो रहा है तो भला भाभीजी (उनकी पत्नी) और उनके बच्चे को कैसे यकीन होगा....वो तो मेट्रो अस्पताल से लेकर अंतिम निवास तक यही रट लगाती रहीं...कि कोई दूसरे डॉक्टर को बुलाओ...देखो आंखें खुली है...हाथ मुलायम है....लेकिन सच कड़वा ही नहीं होता....कठोर होता है...इतना कठोर कि उसके सामने कड़ी से कड़ी वस्तु...व्यक्ति की कोई अहमियत नहीं .....

सोया ही था कि मेरे एक मित्र का फोन आया.....कि एक अत्यंत बुरी खबर दे रहा हूं.....सुनकर थोड़ी देर के लिए सोचने समझने की शक्ति नहीं रही.....लगा...नहीं ये खबर झूठी है......ये मोबाईल फोन झूठा है......आनन फानन में दो अन्य मित्रों के साथ जब मेट्रो अस्पताल पहुंचा तो लोगों की भीड़ लगी थी....अंदर गया...तो दिल रोने लगा...आंखों से आंसू बहने लगे.....जिससे कल तक सुबह शाम बात होती थी ...वो शख्स चिरनिद्रा में सोया पड़ा था......और भाभी जी उनसे लिपटकर कहे जा रहीं थीं...नहीं गुड्डू तुम्हें कुछ नहीं हो सकता.....कुछ नहीं.....ये चीटिंग है यार.....बीमार मैं रहती हूं......और तुम हम सबको छोड़कर जाने की सोच भी कैसे सकते हो......तुम्हारे बिना मैं भला कैसे जी सकूंगी.......इन सबके बीच मैं वहां किंकर्तव्यविमूढ़ सिर्फ उन दोनों को निहारता रहा......सोचता रहा कि जवानी की दहलीज लांघने के बाद पति पत्नी को एक दूसरे को वास्तविक जरुरत होती है....और ऐसे में अगर कोई एक दूसरे से सदा सदा के लिए दूर हो जाए..तो ये नाइंसाफी है.....ईश्वर की....वक्त की.....

नवंबर 2003 में ईटीवी ज्वायन करने के बाद से अशोक जी से मित्रता हुई.....और उनके वीओआई आने के बाद दोस्ती और बढ़ गई...हर रोज एक दो बार बात करने का सिलसिला चलता रहा ......जहां तक मैंने उन्हें जाना....वो एक संतुलित, शांतचित्त व्यक्ति थे...जो अपनी खुशी,निराशा,तनाव के भावों को आसानी से छुपा जाते थे.....तनाव और निराशा के क्षणों में ...छोड़ो यार...जो भी होगा...देखा जाएगा......अक्सर कहते थे......न ऊधो का लेना...न माधो का देना....उनका धर्म था...किसी ने उनके साथ बुरा किया ...चलो कोई बात नहीं.....किसी ने कुछ कह दिया.....छोड़ो...उसके बारे में क्या कहना......ऐसे शख्सियत थे.....अशोक जी......हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला जाने वाला शख्स देखते ही देखते खुद धुंआ हो गया.....और हम सब के लिए बन गया एक मिसाल.....दे गया एक सीख.....चुपचाप काम करने का...कियी का दिल नहीं दुखाने का......बता गया कि ये दुनिया चंद रोज का ठिकाना है...दोस्ती सबसे करो...इस तरह कि दुश्मनी की गुंजाईश ही न रहे.......

2 टिप्पणियाँ:

क्षितिज जी... ख़बर ही ऐसी थी... जिसने सुन्न कर दिया था... आज भी यकीन है कि वो लौट आएंगे...

सच कहा आपने...
दोस्ती सबसे करो...इस तरह कि दुश्मनी की गुंजाईश ही न रहे..।