उस दिन में बस के इंतज़ार में बस अड्डे पर खड़ा था.....तभी दिखने में हट्टा कट्टा वो शख़्स एक बुजूर्ग सी दिखने वाली महिला के साथ सामने आ खड़ा हुआ....और कहने लगा...भाई साहब...घर जा रहा था...सारा सामान चोरी हो गया.....एक पचास रूपए दे दीजिए.....थोड़ी मदद हो जाएगी....भगवान आपकी बहुत मदद करेगा.....मैंने अनमने ढंग से अनसुना कर दिया.....दूसरे तीसरे बार वही आवाज सुनाई पड़ी तो दिल पसीज गया.....सोचने लगा...लगता है सचमुच मुसीबत में है ...अन्तर्मन ने कहा तुम्हें मदद करनी चाहिए...हाथ अनायास पॉकेट की तरफ बढ़े...एक दस का नोट निकाला और बढ़ा दिया........उसने और रूपयों की मांग की...पर मैंने मना कर दिया......देना चाहता था कि दे दूं पचास रूपए...किसी और से मांगने की बेचारे को नौबत न आए....पर ऐसा कई बार सुन रखा था कि हट्टा कट्टा से दिखने वाले लोग भी बहानेबाजी कर भीख मांगते हैं......ज्यादा देने की हिम्मत नहीं हुई......बस में सोचता रहा कि क्यों नहीं उसे पचास रूपए दे दिए.......बात आई गई हो गई...मैं भी भूल सा गया ...उस वाकये को ...लेकिन उस दिन भी बस से ऑफिस जा रहा था.......ग़ाजीपुर बाईपास के करीब एक बस स्टॉप पर मैंने देखा तो मुझे सहसा यकीन न हुआ.....मुझे ठीक से याद है वही शख़्स था....जिसने सारा सामान चोरी हो जाने की बात कह मुझसे पचास रूपए मांगे थे.....एक बच्ची और एक महिला के साथ मिलकर इकट्ठा पैसे के लिए लड़ाई कर रहा था......मैं सोच में पड़ गया कि आख़िर किसे जरूरतमंद समझा जाए........

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इन कमबख्त ड्रामेबाज़ों की वजह से असली ज़रूरतमंद भी सहायता से वंचित रह जाते हैं।