फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू
मगर उनका क्या 
जो रात में ठेले लगाते हैं
खोमचों में बेचते हैं सपने
अपने बच्चों के
जो बुनते हैं ख्वाब
दिन के उजाले में
खर्राटों के बीच

उनका भी क्या
जिन्हें रात में
मटरगश्ती की  
आदत है..खानदानी..पुरानी
जिस शहर में 
रात की रौनक होगी
बदल देंगे शहर

सोचता कौन है
रात तो रात होती है
गरीबों की 
फुटपाथ पर
अमीरों की..सड़कों पर
या किसी होटल में
पब में...बार में
या फिर ....आगोश में


गलतियां इन्सान की, बेवजह नहर बदनाम हो गई
देखते ही देखते, हादसा हुआ... वो श्मशान हो गई
गलतियां इन्सान की, बेवजह नहर बदनाम हो गई
वो तो बस थी, रोज मंजिल तक पहुंचना काम था
वक्त ने करवट क्या बदली, मौत का सामान हो गई
गलतियां इन्सान की, बेवजह नहर बदनाम हो गई
टूट गए रिश्तों के डोर, दम निकले अरमानों के
जिंदगी की कोशिशें, मौत के सामने नाकाम हो गई
गलतियां इन्सान की, बेवजह नहर बदनाम हो गई
अपनों ने सपनों को खोया, बूढ़ा बाप भी कितना रोया
ढूंढते अपनों की लाशें, सुबह से शाम हो गई
गलतियां इन्सान की, बेवजह नहर बदनाम हो गई

कितना सरल है
बस संवेदना प्रकट करना
मुआवजों का ऐलान कर देना 
ये कह देना कि 
असीम दुख की इस घड़ी में
हम आपके साथ हैं
ईश्वर आपको शक्ति दे
इसे सहन करने की 
कितना सरल है
मगर सब जानते हैं
कोई कम नहीं कर सकता 
किसी का दुख
किसी का दर्द
मुआवजे खत्म हो जाते हैं
महज चंद दिनों में 
फिर जिंदगी भर 
टीसता रहता है
वो घड़ी, वो पल
फिर उलझ जाती है
जिंदगी की पगडंडियां
रास्ते दिखते नहीं
आंसूओं से डबडबाए आंखों से
मगर चलना भी है
क्योंकि नियति यही है
बीतते सालों में 
नश्तर की चुभन घटती है
जिंदगी चल पड़ती है 
नई मंजिलों की तलाश में

जिंदगी की हकीकत, कोई समझाए
कब तलक इतनी फजीहत, कोई समझाए

देने वाले तो मिल जाते हैं हर दिन हजार
किसकी उम्दा है नसीहत, कोई समझाए

खनक रिश्तों की, या कि टनक सिक्कों की
बेहतर कौन सी मिल्कियत, कोई समझाए

न‌ लेके कोई कुछ आया, न लेके जाएगा
कौन सी किसकी वसीयत, कोई समझाए

दुनियादारी तो सिखाते हैं कई लोग "क्षितिज"
खत्म क्यों हो रही इन्सानियत, कोई समझाए

कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है
जो भी है, बस आज है, जी ले, कल की अलग कहानी है

बीत गया एक साल समूचा, बच गई सिर्फ निशानी है
अब तो आए नए साल से, रिश्ते नई निभानी है 
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है

उसके शिकवे, गिले किसी के, दिल पर लेकर क्या जीना
किसी के खातिर कुछ कर जाओ, दिल को ये समझानी है
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है

इक इक खुशियां, इक मुस्कानें, चलो पिरोएं धागों में
बीच बीच में, दर्द-ओ-ग़म, की कलियां कहीं सजानी है
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है

कभी मुश्किल...कभी आसान लगती है
ये जिंदगी, कड़ा इम्तहान लगती है

कभी तो बेरुख़ी ऐसी कि मत पूछिए
कभी तो ग़जब की मेहरबान लगती है

हमारी हसरतों की फेहरिस्त लंबी है जरा
तभी हर लम्हा, यूं हलकान लगती है

खुशियां..मुस्कुराकर गुजर जाती है अक्सर
कभी बेपरवाह, कभी बेजुबान लगती है

-क्षितिज

मुश्किलातों का समंदर, हौसले की कश्तियां
और जब गिरती हैं, यारों आसमां से बिजलियां

मैं समझ जाता हूं रोया, रात भर कोई बहुत
अश्क का कतरा न था, थीं तो केवल सिसकियां

मेरे सीने से भी गुजरे, दर्द - ओ - ग़म के रेल भी
जानता हूं, क्यों नहीं रुकती हैं आखिर हिचकियां

आपके उनके तजुर्बे, मेरे हैं किस काम के
मेरे दिल से कोई पूछे, जब उड़ी थीं गिल्लियां
-क्षितिज