कितना सरल है
बस संवेदना प्रकट करना
मुआवजों का ऐलान कर देना 
ये कह देना कि 
असीम दुख की इस घड़ी में
हम आपके साथ हैं
ईश्वर आपको शक्ति दे
इसे सहन करने की 
कितना सरल है
मगर सब जानते हैं
कोई कम नहीं कर सकता 
किसी का दुख
किसी का दर्द
मुआवजे खत्म हो जाते हैं
महज चंद दिनों में 
फिर जिंदगी भर 
टीसता रहता है
वो घड़ी, वो पल
फिर उलझ जाती है
जिंदगी की पगडंडियां
रास्ते दिखते नहीं
आंसूओं से डबडबाए आंखों से
मगर चलना भी है
क्योंकि नियति यही है
बीतते सालों में 
नश्तर की चुभन घटती है
जिंदगी चल पड़ती है 
नई मंजिलों की तलाश में

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