जिंदगी की हकीकत, कोई समझाए
कब तलक इतनी फजीहत, कोई समझाए

देने वाले तो मिल जाते हैं हर दिन हजार
किसकी उम्दा है नसीहत, कोई समझाए

खनक रिश्तों की, या कि टनक सिक्कों की
बेहतर कौन सी मिल्कियत, कोई समझाए

न‌ लेके कोई कुछ आया, न लेके जाएगा
कौन सी किसकी वसीयत, कोई समझाए

दुनियादारी तो सिखाते हैं कई लोग "क्षितिज"
खत्म क्यों हो रही इन्सानियत, कोई समझाए

कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है
जो भी है, बस आज है, जी ले, कल की अलग कहानी है

बीत गया एक साल समूचा, बच गई सिर्फ निशानी है
अब तो आए नए साल से, रिश्ते नई निभानी है 
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है

उसके शिकवे, गिले किसी के, दिल पर लेकर क्या जीना
किसी के खातिर कुछ कर जाओ, दिल को ये समझानी है
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है

इक इक खुशियां, इक मुस्कानें, चलो पिरोएं धागों में
बीच बीच में, दर्द-ओ-ग़म, की कलियां कहीं सजानी है
कल की फिक्र न करना कोई, कल तो आनी जानी है