एक मोड़ पर
मैंने देखा
सच का चेहरा
बुझा-बुझा सा
रुखे बाल
सूखापन हर कोने में
पसीने से लथपथ
झुर्रियां भरी जवानी में
धंसी-धंसी आंखें
स्मित विहीन
मैंने सोचा
पुछें...
क्या हाल बना रखा था
पर ..फिर सोचा
जले पर नमक न लगे
छोड़ दिया
अगले मोड़ पर
झुठ मिला
चेहरे पर हों
दीप जले से
ताजा फूलों सा
खिला-खिला सा
गाल गुलाबी
नैन शराबी
हर बात पर
मुस्कान बिखेरता
पूछ ही बैठा
कैसे हो
उत्तर मिला
समय के साथ चलता हूं
और कोई राज नहीं
यही फर्क है
झुठ और सच में
एक समय के साथ
चलता है
एक कोशिश करता है
कोशिस क्या..हिमाकत कहिए
समय को
अपने साथ चलाने की
Mohalla Live
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Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 वर्ष पहले
1 टिप्पणियाँ:
bahut hi badhiya laga sach ka chehara
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