(अर्थ मत ढूंढिए)
सूरज की किरणें उदास है
कोई मेरे आसपास है
चांदनी क्यों खोई खोई है
आखिर उसे किसकी तलाश है
जब जीवन का अंत विनाश है
मालिक क्यों कोई दास है
कोई मुझको ये समझाए
क्यों मूल्यों का हो रहा ह्रास है
देख समाज की नित घटनाएं
मन को होता क्यों त्रास है
कोई किसी को नहीं है भाता
तो कोई क्यों खासमखास है
अच्छा ये बतलाओ मुझको
आखिर रोता क्यों आकाश है
वो विशाल है, सबसे ऊपर
आखिर उसे क्या संत्रास है
Mohalla Live
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Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 वर्ष पहले
1 टिप्पणियाँ:
कुछ भी निरर्थक नहीं... ये पंक्तियां भी गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं...
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