ज़िन्दगी में और कहीं हो न हो...लेकिन लगता है राजनीति में सब ज़ायज़ है...अगर आप (आप कहते शर्म आती है...आप इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अब भी कुछ अपवाद बचे हैं....) राजनेता हैं...तो किसी को कुछ भी कहिए...चलेगा...ख़ासकर चुनाव के मौके पर....नीच...व्याभिचारी...लुच्चा लफंगा कुछ भी कह सकते हैं...कौन देख रहा है.....चुनाव आयोग को और भी कई काम हैं....नेताओं के घटिया बयानों पर नज़र रखने के अलावा....और कोई कबतक कितना नज़र रखे..भाई...एक ..दो ..हो तो भी चलेगा...यहां तो अधिकतर वही भाषा...नहीं भांसा (कूड़ा) बोलने लगे हैं.....बिना ये सोचे कि जनता क्या सोचेगी...लगता है ये नेता ये सोच-समझ चुके हैं कि जनता को भी अब उनके बयानों-वक्तव्यों से कोई मतलब होता नहीं....लेकिन जनाब ये सोच ही इन नेताओं को एक दिन ले डूबेगी...क्योंकि जनता कल भी जनार्दन थी....आज भी जनार्दन है....और जबतक इंडिया में डेमोक्रेसी यानी जम्हूरियत रहेगी.....(जिसके न होने का कोई मतलब ही नहीं..क्योंकि जड़े काफी गहरे जमीं हैं...)...कल भी जनार्दन रहेगी.....अब किसकी-किसकी बात करें....कोई अपने विपक्षी उम्मीदवार को गाली दे रहा है....कोई विपक्षी पार्टी को गाली दे रहा है....और कोई न मिला तो कोई जनता को ही....भईया....जनता यानी आम आदमी जम्हूरियत में असली राजा होता है...एक बार आप विधायकों - सांसदों को वापस लेने का अधिकार देकर देख लो....अच्छे अच्छों को उखाड़ न दिया तो कहना.....ये तो अच्छा है कि आज के नेता इस बिल को इस डर से पास नहीं होने देंगे...कि फिर एक न एक दिन हमारी भी बारी आ जाएगी......
वैसे नेताओं का क्या है....आगे नाथ न पीछे पगहा...पगहा समझते हैं न...समझते ही होंगे ...कभी एक बात पर नहीं टिकते हैं ये लोग..कभी कुछ कहेंगे...और फिर अपनी बात से बदल जाऐंगे.....चुनाव के पहले गठबंधन की बात करेंगे...लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगी..गठबंधन कि धागे...बिखरते नजर आते हैं....क्योंकि उन्हें हर एक सीट अपनी नज़र आने लगती है....किसी एक पार्टी पर उंगली उठाने से कोई फायदा नहीं.....लेकिन सभी एक जैसे भी नहीं....लेकिन जब वोटों की गिनती होने लगेगी...परिणाम आने लगेंगे.....इनकी बोली बदलने लगेगी...अगर कम सीटें मिलती दिख रही हों तो ये आकलन करने लगते हैं...कि किसे समर्थन करें कतो मलाईदार मंत्रालय मिलेगा.....ऐसे नेताओं पर कोई यकीं करे तो कैसे....लेकिन जब कोई चारा न हो ...विकल्प न हो तो करना ही पड़ता है..........
मतलब...उ का है...कि कल तक हम निवाला....हम प्याला...आज पार्टी बदली....आज ही भाषा भी बदल गई....अरे नेता हैं तो पार्टी तो बदलेंगे ही....कोई जमींदारी तो है नहीं....कि कांग्रेस में हैं तो कांग्रेस के ही होकर रहेंगे जिंदगी भर...भईया...राजनीति प्राइवेट कंपनी की नौकरी की तरह होती है.....वो दिन गए...कि कांग्रेस से शुरु की...राजनीति की दुकान तो कफन भी कांग्रेस का झंडा ही बनेगा.......अब न तो नेता रहे पहले जैसे...न नेतागिरी....न सिद्धांत बचा.....न विचार....अब तो बस पैसे की बात है...कौन कितना देता है....कौन कितना लेता है.....पैसा है तो एक नहीं दस पार्टियां हाथोंहाथ आपको लेने के लिए तैयार हो जाऐंगी...बस एक बार आप बदलने का संकेत दीजिए......और अगर आप अपने इलाके के वजनदार नेता हैं.....लोग आपको चाहते हैं....आपके व्यक्तित्व से.....किसी पार्टी के नाम से नहीं तब तो सोने में सुहागा समझिए....क्या राष्ट्रीय ...क्या क्षेत्रीय...सब आपको हाथोहाथ लेंगे.....बस आप अपने इलाके में इतना हैसियत जरुर रखते हों कि चुनाव तो जीत ही लें...पार्टी कोई भी हो....सबसे बड़ी बीजेपी-कांग्रेस या.....राष्ट्रीय(नाम का) स्वाभिमान पार्टी.......
अब जरा उन नेताओं की बात कीजिए...जिनके जबान बेलगाम हैं.....ख़ासकर तब जब वो ये समझने लगते हैं कि अब वो हारने वाले हैं......सबसे पहली श्रेणी में आते हैं....लालू प्रसाद और राबड़ी देवी सरीखे नेता.....मतबल समझ गए न....भैंस का दूध पीकर बुद्धि भी भैंस जैसी हो गई है.....ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे जैसे चुन चुनकर रखे हों चुनाव के लिए......उसके बाद आते हैं गुड्डू पंडित जैसे लोग.....धमकाने वाले.....अगर मे्रे भाई को वोट नहीं दिया तो मतगणना के अगले दिन का सूरज नहीं देखोगे....जैसा डॉयलॉग मारने वाले लोग.....ये लोग भूल जाते हैं कि जनता एक दिन में छट्ठी का दूथ याद करा देती है...तब इनकी जगह जेल में नज़र आती है......इसके बाद कुछ लोग ऐसे भी हैं जैसे मुंह में कुछ...बगल में कुछ.....कांग्रेस नेताओं की श्रेणी कुछ ऐसी ही है.....और कांग्रेस क्या...कई राष्ट्रीय पार्टी का दंभ भरने वाली पार्टियों की यही हाल है........इस चुनाव में एक ख़ास किस्म के नेता देखने को भी मिले...मतलब बड़बोले नेता....जनाब कब क्या बोल रहे हैं....(बकना कहें तो बेहतर होगा)...इन्हें पता ही नहीं होता....बात तो ऐसे करेंगे जैसे अमेरिका इनका गुलाम हो.....पीएम और राष्ठ्रपति इनके घर आते जाते हों.....और छोटे मोटे लोग इनकी चाकरी करते हों.....ये नेता भोली भाली जनता के सामने एक डींगबाज की तरह डींग हांकते हैं...बोलते हैं शेर जैसे...लेकिन बड़े नेताओं के पास भीगी बिल्ली बन खड़े होते हैं.....ये नेता न तो अपनी कौम के होते हैं...न समाज के...न देश के...और न ही अपने किसी अपनों के.......
लेकिन लगता है चुनाव के बहाने एक चीज जो साफ साफ नज़र आती है...वो ये है कि नेता....जाने अंजाने में एक दूसरे पर कीचड़ फेंककर ये जता देते हैं कि हम कितने गंदे हैं...हमसे कितनी दूरी बनाए रखो.......आज बस इतना ही.....ज्यादा गंदगी बदबू करने लगेगी.....
Mohalla Live
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Mohalla Live
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जाहिलों पर क्या कलम खराब करना!
Posted: 07 Jan 2016 03:37 AM PST
➧ *नदीम एस अख्तर*
मित्रगण कह रहे हैं कि...
8 वर्ष पहले
2 टिप्पणियाँ:
हमेशा की तरह अच्छा रचना
ब्लॉग रिलॉन्च हो गया है। बधाई, नए रंग के साथ, नए कलेवर के साथ
सही कह रहे है सर...अब को मुहावरे भी बदलने पड़ेगें....जैसे प्यार और जंग के साथ साथ अब तो राजनीति में सब जायज़ है.....
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