वर्ल्ड कप का आगाज हो चुका है ...देश में फुटबॉल के दीवानों की कमी नहीं...मीडिया को हर दिन कई घंटे फुटबॉल की कहानी कहने का बहाना मिल चुका है.....अखबारों में कई पन्नों में छपने लगी वर्ल्ड कप की खबरें......ये अलग बात है कि एक अरब से ज्यादा जनसंख्या वाले इस देश में बारह चौदह अव्वल दर्जे के फुटबॉल खिलाड़ी पैदा करने का माद्दा नहीं.....करोड़ों – अरबों रुपये नेताओं की चाटूकारिता और उनके ऐशो-आराम पर खर्च करने वाले इस देश में खिलाड़ियों को मांजने ...उन्हें तैयार करने के लिए पर्याप्त रुपये नहीं निकलते...और जो निकलते हैं उनका सही खर्च नहीं होता.....हमें विदेशी खिलाड़ियों की चर्चा तक ही सीमित रहना पड़ता है.....ये अलग बात है कि फुटबॉल दूर दराज के देहात से लेकर शहर तक खेला और देखा जाता है.....लेकिन क्रिकेट की तरह इसके लिए हमारे पास अच्छे विश्वस्तरीय खिलाड़ी नहीं......ये हमारे लिए शर्म नहीं तो और क्या है......छोटी-छोटी जनसंख्या वाले छोटे छोटे देश वर्ल्ड कप जीतने की बात करते हैं और हमें उसमें जगह बनाने के लिए ...या यूं कहें तो क्वालिफाइंग मैच खेलने के लिए करनी पड़ती है कड़ी मशक्कत...... जाहिर है हमारे पास नहीं है कोई पुख्ता खेल नीति.....खेल के लिए हमारी सारी नीतियां क्रिकेट तक ही सीमित हैं......

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