सच पूछिए तो केंद्र या राज्य सरकार के बजट का अब कोई खास मतलब नहीं होता....क्योंकि अब महंगाई बजट में तय नहीं होती....कोई चीज सस्ती होगी....इसके लिए बजट का इंतजार नहीं होता.....अब तो बस औपचारिकता रह गई है ये बजट...मंत्री जी ने साल भर कुछ किया है...किया भी है....ये दिखाने के लिए बजट बनता है...संसदीय सत्र बुलाया जाता है.....इसी बहाने गरमागरम बहस होती है.....लेकिन नतीजा कुछ खास निकलता हो....ऐसा दिखता नहीं....निकले तब तो दिखे....और इसी तरह वित्त मंत्री का ओहदा भी लगता है छोटा हो गया है....क्योंकि इस साल के असली वित्त मंत्री तो शरद पवार हैं.....जिस चीज की कमी का जनाब रोना रोते हैं...उसकती कीमतें आसमान छूने लगती हैं.....अब ये अलग बात है...वो देश के वित्त नहीं बल्कि कृषि मंत्री हैं.....लेकिन रुतबा देखिए....मुंह से किसी खास चीज का नाम निकला.....और अगले दिन से बढ़ने लगे दाम.....और जनाब शरद पवार की भी गलती नहीं है.......वित्त मंत्री इस तरह अगर कुछ नहीं कहते तो गलती उनकी है न....उन्हें कुछ कहना चाहिए.....एक समय था जब लोग साल भीर बजटीय भाषण का इंतजार करते थे....टीवी पर निगाह गड़ाकर सुनते...द्खते थे कि मंत्री जी के मुख से महंगाई के साथ कौन सी चीज का नाम निकला.....दो एक चीजे तो ऐसी थीं जिसकी बजट के कुछेक दिन पहले से खरीदारी शुरू हो जाती थी....लेकिन अब सरकार के तौर तरीके ही बदल गए.....चीजों के दाम जब चाहे बढ़ा दिया.....नहीं बढ़ा हो तो सिर्फ इतना भर कह दो...जनसंख्या के हिसाब से फलां वस्तु देश में कम है...या आने वाले दिनों में किल्लत हो सकती है....वैसे बजट के मतलब बदलने की एक वजह और भी है...बढ़ता शहरीकरण भी इसकी एक वजह है जनाब...चाहे चीजों के दाम कितने भी बढ़ा दो...जिसे खरीदना होगा...खरीदेगा ही...अब जिसके पास पैसे ही न हों ....वैसे भिखमंगों के लिए क्या बजट...क्या आम दिन.....जरुरी हुआ तो खरीदा....नहीं तो उसके बिना ही काम चला लिया..............

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