आप मानें या न मानें लेकिन मुझे तो कम से कम यही लगता है कि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) और शिव सेना के हाथो बंधक बना हुआ है....इन दोनों पार्टियों के बड़े ओहदेदार नेता जब चाहे जो चाहे कर सकते हैं...कह सकते हैं.....राहुल गांधी की मुंबई यात्रा को कांग्रेसजन ये कहकर भले खुश हो लें कि किसी शिव सैनिक ने उन्हें काला झंडा नहीं दिखाया, किसी ने विरोध नहीं किया....इसका सारा श्रेय जाता है कांग्रेस की सत्ता को...जिसने पूरा जोर लगा दिया कि राहुल गांधी की यात्रा निर्बाध रुप से समाप्त हो जाए....जिससे वो कह सकें कि मुंबई में शिव सेना का कोई वर्चस्व नहीं है....दरअसल राहुल यात्रा ...कांग्रेस सरकार के लिए एक चुनौती थी...जिसे उसने पूरे पुलिस और प्रशासनिक अमले के जोर पर पूरा करा लिया....जबकि हकीकत इसके एकदम उलट है....सरकार माने न माने..मुंबई तो बंधक है..इन तथाकथित दो पार्टियों के हाथों में ...अगर नहीं तो मजाल है कि कोई शिव सैनिक माइ नेम इज खान के पोस्टर फाड़कर ये चेतावनी दे दे कि बिना शाहरुख के माफी मांगे फिल्म रिलीज नहीं होगी.....ये समानांतर सत्ता नहीं तो और क्या है.,...कोई उत्तर भारतीय मुंबई में काम खोजने न आए....ये फरमान क्या समानांतर सत्ता का उदाहरण नहीं....उत्तर भारतीयों को मुंबई में काम करने के लिए मराठी सीखने की बाध्यता का फरमान क्या सरकार के मुंह पर तमाचा नहीं....सरेआम सैकड़ों शिव सैनिक पुलिस की मौजूदगी में नारे लगाते हुए सरकार को चुनौती देते हैं और सरकार एक बेहया औरत की तरह बस ...जांच होगी...पड़ताल करेंगे...दोषियों को सजा देंगे...कहकर अपनी निर्लज्जता छिपाती है.....लगता है मुंबई में शिव सेना और मनसे की सरकार है....और शेष महाराष्ट्र पर कांग्रेस की.....इतिहास में कमजोर शासकों का जिक्र है...लेकिन इन दो पार्टियों की समानांतर सत्ता ये बताने के लिए काफी है महाराष्ट्र में जिस पार्टी की सरकार है वो सिर्फ कांग्रेस के बड़े नेताओं की सुरक्षा कर सकती है ...आम जनता की नहीं....संविधान की नहीं.....राष्ट्रवाद की नहीं.....अभी भी देश की नागरिकता इस बात से निर्धारित होती है कि आप इस देश के वासी है.....इस बात से नहीं कि आप महाराष्ट्र के हैं या फिर बिहार-यूपी के......सरकार बनाना एक बात है...सरकार चलाना दूसरी बात....और सरकार में रहकर एक एक नागरिक की नागरिकता की रक्षा करना उन दोनों से बड़ी बात है......शाहरुख़ ने जो कुछ भी कहा वो गलत था या सही...ये बहस का मुद्दा नहीं...बहस का मुद्दा ये है कि क्या इस देश में बोलने की आजादी नहीं है....या फिर संविधान से बढ़कर हैं ये दोनों पार्टियां......मनसे और शिवसे(ना)...................

0 टिप्पणियाँ: