उस दिन की सुबह सामान्य सी थी.....कुछ भी तो नया नहीं था.....लेकिन उधर सूर्य ने आंख खोला.....मैं उनींदी सी थी.....ये सोचकर कि उठकर करना भी क्या....वो तो नौ के पहले आते नहीं....आज क्रिसमस की छुट्टी है.....बेटे का स्कूल बंद है....मुझे भी स्कूल नहीं जाना है......चलो एकाध घंटे और आराम फरमा लिया जाय.........लेकिन अचानक बजे मोबाईल की घंटी ने मुझे उठने पर मजबूर कर दिया.....कमबख्त सोने भी नहीं देते......ये सोचकर अलसाई सी उठी...
हैलो......
कौन.....
भाभी...मैं रोहित बोल रहा हूं.....
.....मैं सोचने लगी...रोहित...आवाज जानी पहचानी नहीं...पता नहीं कौन रोहित है.......मैं इससे पहले रांग नंबर कहकर मोबाइल रखती.......उधर से आवाज आई....भाभी ......आप मुझे नहीं जानती...लेकिन मैं विमलेश भैया के ऑफिस में काम करता हूं....उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई...इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.......
...क्या.......तबीयत खराब हो गई..........अनायास मेरे मूंह से निकल पड़ा........
उधर से जवाब आई...हां भाभीजी....आप तैयार रहिए...मैं आपको लेने आ रहा हूं.........
मेरे बदन का खून मानो जम सा गया........किसी अनहोनी की आशंका को लेकर......एक साथ कई सवाल मेरे मन मस्तिष्क में कौंधने लगे........रोहित की आवाज कांप क्यूं रही थी.........और अचानक उन्हें क्या हो गया........रात तो अच्छे भले.....ऑफिस गए थे...नाईट शिफ्ट कर रहे हैं..........
....मैंने एकबारगी बेटे संदीप को झिंझोड़कर उठाया........बेटा उठो...पापा को उनके ऑफिस वालों ने अस्पताल में भर्ती कराया है........ चलो ...जल्दी करो.....पापा के ऑफिस से गाड़ी बस आने ही वाली है...कई बार उटाने पर नहीं उठने वाला संदीप भी एकबारगी उठकर खड़ा हो गया.......वो कुछ बालना चाह रहा था...पर शब्द उसके मुंह से नहीं निकल रहे थे........
किसी तरह फटाफट तैयार होकर मैं बाहर चहलकदमी करने लगी........सोचने लगी.......आखिर क्या हुआ होगा उन्हें.......तभी कार रुकने की आवाज सुनकर मैं बाहर भागी......
ऑफिस की गाड़ी में रोहित था.....आईए भाभी ...चलिए जल्दी कीजिए.........गाड़ी में बैठकर मैंने रोहित से कई सवाल पूछे पर वो चुपचाप बैठा रहा.......मेरा संदेह बढ़ने लगा......दिल बैठने लगा...क्या हुआ होगा उन्हें......या भगवान कहीं कुछ बुरा न हुआ हो......हे ईश्वर उन्हें जल्दी ठीक कर देना...तभी रोहित की आंखों के कोने से एक आंसू गिर पड़ा........रोहित ...कहीं तुम कुछ छिपा तो नहीं रहे................
तबतक गाड़ी अस्पताल के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.....ढेर सारे लोग जमा थे.......मुझे काटो तो खून नहीं ......अरे जरा सी तबियत खराब होने पर इतने लोग आते हैं क्या....नहीं नहीं...कियी और मरीज के साथ कुछ हुआ होगा......तभी इतने लोग आए हैं......लेकिन जब अस्पताल के अंदर गई...तो जो देखा....उसने मेरी जिंदगी का रुख़ बदल दिया.......पटरी पर चल रही जिंदगी मानों ठहर सी गई.........सन्नाटे में आ गई मैं...क्या करूं...कहां जाऊं.......अचानक ये क्या हो गया.......मेरे सामने मेरा सिंदूर सोया पड़ा था......गहरी निद्रा में.....जिसमें सोने के बाद कोई जागता नहीं........नहीं ये झूठ है...गलत है....ऐसा नहीं हो सकता.......भला चालीस बयालीस की कोई उम्र होती है....दुनिया छोड़ने की.....अभी उन्हें अपने बेटे की परवरिश करनी है.......अभी तो जिंदगी का लंबा फासला तय करना है......अभी हमलोगों ने किया ही क्या है.....न घर बनाया......न दौलत जमा की.....दौलत जाए भाड़ में.......ये क्या बात है......नहीं ऐसा नहीं हो सकता......इसके बाद क्या हुआ...मुझे कुछ नहीं मालूम...लोग मुझे ढांढस बंधाते रहे.....दिल मजबूत करने की बात करते रहे...लेकिन उन्हें क्या पता......एक सुबह किसी का सिंदूर लूट चुका है......कोई बे-बाप हो चुका है....एक गृहस्थी का पहिया टूट चुका है.....सपने पतझड़ के पत्तों की तरह झड़ चुके हैं.......वादे....... ढेरों वादे डूट चुके हैं.........वो सुबह जब तक सांस रहेगी....तबतक .याद रहेगी.......वो सुबह ...कैसे भूल सकती हूं मै...जिस सुबह मैंने अपना सबकुछ खोया.....चैन...नींद....सुख..सिंदूर......हंसी...मुस्कान......मानो तो पूरा जीवन खो चुकी हूं मैं.......एक जन्म के बाद जैसे बच्चा जिंदगी सीखता है...फिर सीखना होगा मुझे जिंदगी के नए फलसफे......अकेले.............

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क्षितिज जी मैं आज भी उस सुबह को कभी नहीं भूल पाता हूं... और उस शख्स को भुलाना तो मेरे लिए नामुमकिन सी बात है.