सूर्य की

पहली किरण की तरह

होती है

उम्मीद

मधुर

प्यारा सा

संगीत की तरह

होती है

उम्मीद

पतझड़ के बाद

पेड़ों पर आए

नए कोमल

पत्तों की तरह

होती है उम्मीद

फूल नहीं

कलियों की तरह

होती है उम्मीद

अंडे से बाहर

निकले चूजे की तरह

होती है उम्मीद

एक बेहद

नाजुक

डोर की तरह

होती है उम्मीद


ये महज इत्तेफाक है या कुछ और लेकिन मेरे स्कूल के दिनों की यादें मेरे मानस पटल पर पूरी तरह अंकित है...याद करने पर एक एक घटना फिल्म की तरह बस्स शुरू हो जाती है जैसे मैं किसी थियेटर में बैठा हूं....मेरे मध्य विद्यालय में एक मास्टर साहब थे...नाम था रोहण प्रसाद....मास्टर साहब का कहना ही क्या...जो भी विषय में शिक्षक मौजूद न हों...उन्हें भेज दीजिए पढ़ाकर आ जाऐंगे....पढ़ाते भी थे बच्चों को...आज याद करता हूं तो लगता है उस तरह तो कोई भी पढ़ा लेगा लेकिन तब वो हमारे गुरुजी थे.....और हम सब उनके छात्र....मैं उनके यहां ट्यूशन पढ़ने जाता था....सिर्फ इसलिए कि उनका घर हमारे घर से नजदीक था.....और हमारे पिताजी से उनके अच्छे संबंध थे....लेकिन इनके बारे में बात अगली बार......उससे बड़ा एक प्रसंग याद आ गया है ..मैं चाहता हूं कि पहले उसे शब्दों में पिरो लूं......उस दिन विज्ञान विषय की अर्द्ध वार्षिक परीक्षा की कॉपी क्लास में दिखाई जानी थी..सभी बच्चे खुश थे....उम्मीद लगा रहे थे कि किसे कितना नंबर मिलेगा......टिफिन के बाद विज्ञान का पीरियड था.....सभी सेक्शन के बच्चों के साथ स्कूल के किनारके बने नए हॉलनुमा क्लास में बच्चे बुलाए गए....मैं भी चुपचाप बैठा था...कम नंबर की आशंका से मैं भी भयभीत था दूसरे बच्चों की तरह...पढ़ने में ज्यादा तेज न था...पर ज्यादा मद्धम भी नहीं था.....हमारे विज्ञान के शिक्षक शिवकिशोर जी दरवाजे पर कॉपी का बंडल लेकर खड़े थे.....क्लास में मच रहा हंगामा अनायास थम गया.....सन्नाटा ऐसा जैसे कोई सरसराहट भी हो तो सुनाई पड़ जाय...उनके पीछे स्कूल का चपरासी खजूर की कई छड़ियों के साथ....हम बच्चों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था....कि आखिर माजरा क्या है.....मास्साब आकर सबसे आगे लगा कुर्सी पर बैठ गए.....और फिर शुरू हुआ बारी बारी से एक एक लड़के का रौल नंबर का पुकारा जाना....सबको कॉपियां मिल गई...पर मेरी बारी नहीं आई....मेरे दिल की धड़कनें तब कितनी बढ़ गई होगी...इसका अंदाजा आप पाठक लगा सकते हैं......मुझे काटो तो खून नहीं.....मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पांव के नीचे धरती है ही नहीं.....कांपने लगे थे मेरे पांव......आखिर मेरा रौल नेबर क्यों नहीं पुकारा गया.....मैं उत्सुकता बस मास्साब को देख रहा था....कुछ मेरे साथी मुझसे पूछ रहे थे....क्या हुआ तुमने कॉपी जमा तो कराई थी....
आखिरकार मास्साब ने मेरा नाम पुकारा...रौल नंबर नहीं.....मैं खड़ा हो गया...फिर उन्होंने मुझे आगे आने को कहा......मैं डरते डरते आगे बढ़ रहा था जैसे मुझसे कोई अपराघ हो गया हो....मास्साब के पास पहुंचकर मैं सर झुकाकर खड़ा हो गया.....मैंने तिरछी नजर से देखा मेरी कॉपी वहां पड़ी थी......मास्टर साहब ने कड़क स्वर में पूछा.....तुम्हारी कॉपी किसने लिखी है?
सर....मैंने खुद लिखी है......डरते हुए मैंने जवाब दिया......
वेवकूफ समझते हो.....एक पाचवीं कक्षा का छात्र किस तरह लिख सकता है...मुझे पता है.....ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो....समझे.....अभी पता चल जाएगा.....कि तुम कितने शातिर हो.....
मास्साब की आवाज में इतनी तल्खी थी कि मिडिल स्कूल में पढ़ने वाला एक बदमाश बच्चा भी कांपने लगे...और मैं तो बदमाश से एक पायदान नीचे था....लोगों की नजर में ....
फिर मास्साब की आवाज गूंजी.......हाथ निकालो
मैंने देखा उनके हाथ में खजूर की लंबी सी छड़ी थी....मेरे हाथ थरथरा रहे थे.....बिना पिटाई लगे मेरी आंखों से आंसू गिरने लगे.........
आवाज फिर कड़की.....मैंने कहा हाथ निकालो.........इस बार आवाज कुछ ज्यादा तेज थी......मैंने धीरे धीरे हाथ निकालना शुरू कर दिया......तभी रोहण मास्साब की आवाज सुनाई दी.....अरे शिवकिशोर जी....क्या हुआ?
अरे स्साब .....आजकल के बच्चे अब बच्चे नहीं रहे....वार्षिक परीक्षा में नकल की बात सुनी है पर छमाही परीक्षा में पूरी की पूरी कॉपी किसी और से लिखवाने का ये मामला तो हद है .....ये देखने में भले ही भोला भाला लग रहा हो पर है शातिर....पता नहीं किससे लिखवा लिया पूरी कॉपी....ये देखिए........
अब मेरी समझ में सारी बात आ गई.....मुझे बड़ों की तरह धसीटकर लिखने की आदत थी...और इसी कारण मुझे आज अपराधी की तरह खड़ा होना पड़ा....आखिर रोहण मास्साब ने मेरी पूरी कॉपी देखी और फिर कहा कि शिवकिशोर जी....इस बच्चे को आप भी पढ़ाते हैं और मैं भी.....ये इसकी खुद की लिखावट है.....अगर आपको यकीन न हो तो अभी लिखवाकर देख लीजिए......मुझे थोड़ी राहत मिलती दिखाई देने लगी....फिर मुझे मेरी की कॉपी में एक वाक्य लिखने को कहा गया.....जो मैंने लिख दिया....इसके बाद शिवकिशेर सर ने कहा...बच्चे हो....बच्चों की तरह लिखो....बड़ों की तरह नहीं....अभी रोहण जी नहीं होते तो तुम्हारी क्या दुर्गति होती....इसका तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हो......जाओ...अपनी जगह पर बैठो.....राहत के साथ मैं तेज कदमों के साथ अपनी सीट पर जाकर बैठ गया.....आज मुझे रोहण सर ...भगवान सदृश दिख रहे थे....जो अचानकर ही प्रगट हो गए और मेरी जान बच गई..........




लोग कुछ भी कहें
पर इतना यकीं है मुझको
जो भी होता है
बेहतरी के लिए होता है
शुरू में भले ही लगे
बुरा हो रहा है बहुत
लेकिन
सच तो ये भी है
कल किसने देखा है
कल में होती है
ढेरों संभावनाएं
कुछ लोगों को
नजर आती हैं मगर
सिर्फ आशंकाएं
बदलाव
विकास को भी तो कहते हैं
कल के गर्भ में
आज पनपता है
बढ़ता है
और
आने वाले कल से है़
मुझे काफी उम्मीदें