मुझे याद है
बचपन के वो दिन
जब
जुगनुओं को पकड़ने के लिए
मचल उठता था मन
किसी पत्ते पर
बैठी तितलियों से
जलन होती थी
ये सोचकर
कि वो
मेरे कमीज पर
क्यों नहीं बैठी

मुझे याद है
बचपन के वो दिन

जब घर के करीब
हलवाई की दुकान पर
मैं रोज जाता था
और मुझे रोज मिलती थी
मिठाई बिना मांगे
क्योंकि मुझे अच्छी लगती थी
जलेबी
और मेरे लिए हर रोज
घर आती थी
गरमागरम जलेबियां
रुपए के बदले में तौलकर अलग
और मेरे नाम से मुफ्त की अलग

मुझे याद है
बचपन के वो दिन
लेकिन अब कहां मिलती हैं

वो रसदार जलेबियां
मिलती भी हैं
तो वो स्वाद कहां
उसमें बचपन की मिठास थी
अब है
जवानी की कड़वाहट
तब हकीकत का तीखापन नहीं था
अब तो हर मिठाई लगती है तीखी
मिर्च से ज्यादा

मुझे याद है
बचपन के वो दिन

1 टिप्पणियाँ:

bachpan ki mithaas ka madhur aabhas kara diya aapnhe...
aabhaar !