भूखे को नजर आती है
हर शय में बस रोटी
आसमां में
जमीं पर
चांद में
नदियों - तालाबों में
क्योंकि
भूख़ से बड़ी
दुनिया में कुछ भी नहीं
न जिस्म काम करता है
न दिमाग सोचता है
न कुछ याद आता है
कुछ देर पहले का भी कुछ
हर गोल चीज
लगती है रोटी की तरह
स्वाद का एहसास भी
होने लगता है
मुंह में पानी आ जाता है
और कुछ देर के लिए
तृप्त हो जाता मन
ये सोचकर
कि अब तो रोटी पास है

1 टिप्पणियाँ:

achhi kavita............
achha anubhav kalpnaa k saath ythaarth ka
waah waah