लगता है नेता किसी भी पार्टी का हो...किसी भी स्तर का हो...बस चुनाव के मौके का इंतज़ार करता है......सभी नेता ...चाहे सोनिया-राहुल हों...या फिर आडवाणी या राजनाथ...सब से सब कुछ मामलों पर पांच साल ग़जब के चुप रहेंगे...जैसे उनकी बोलती बंद हो गई हो,....लेकिन चुनाव आने पर ऐसे बोलने लगें हों जैसे जेल से छूटकर आए हों....और पहली बार बोलने का मौका मिला हो....जैसे कांग्रेस के हाथ आया है कंधार का तुरुप का पत्ता...तो बीजेपी ने निकाला स्विस बैंक में छुपा धन....कंधार मामले में कांग्रेस की चिंता बेमानी है क्योंकि देश के सौ से ज्यादा लोगों की जान के बदले तीन आतंकियों की रिहाई सही नहीं तो गलत भी नहीं कही जा सकती...खुदा न करे अगर राहुल बाबा या प्रियंका गांधी को आतंकी कैद कर लें ..तो कांग्रेस की बोलती बंद हो जाएगी....और जो आतंकी कहेंगे वो करने को मजबूर हो जाएगी कांग्रेस की सरकार और तथाकथित हो हल्ला करने वाले लोग....क्योंकि तब उनके परिवार....उनके बेटे-बेटियों की बात होगी.....कांग्रेस ये क्यों भूल जाती है कि कंधार मामले में बीजेपी सरकार ने जो किया वो समय का तकाज़ा था....जरुरत थी.....क्योंकि देश का हर शख्स भारत माता की संतान है.....और किसी भी प्रजातांत्रिक देश में नागरिकों की सुरक्षा सरकार का पहला दायित्व होता है...होना चाहिए.....ये अलग बात है कि आतंकियों से निपटने के लिए कोई कारगर रणनीति न तो कांग्रेस सरकार बना पाई न ही बीजेपी...और न ही लगता है कि किसी पार्टी के पास कोई योजना हो........
और अब बात आडवाणी की वाणी की.....स्विस बैंक में कई लाख करोड़ रुपए जमा होने की बात पर आडवाणी जी अड़े हुए हैं कि अगर एनडीए-बीजेपी की सरकार बनी तो सौ दिन के भीतर स्विस बैंक में जमा देश के काला धन को वापस लाने की पूरी कोशिश करेंगे....कोशिश हम कह रहे हैं...आडवाणी जी तो लाने के लिए कृत संकल्प लगते हैं.....चुनाव को मौसम है....आडवाणी जी बीजेपी के लौह पुरुष हैं....कह रहे हैं तो जरुर लाऐंगे....लाना भी चाहिए....देश का पैसा विदेश में क्यों रहे....देश में रहे....देश के विकास के लिए काम करे....लेकिन स्विस बैंको में जमा पैसा क्या वाकई आडवाणी जी ला पाऐंगे....या कोई भी प्रधानमंत्री ला पाएगा....कत्तई नहीं....लाना मुश्किल हो ...ऐसा नहीं लेकिन जिन लोगों का पैसा वहां जमा है...वो देश के साधारण नागरिक तो नहीं हैं....विशिष्ट हैं....होगें ही....ऐसे ऐसे-गैरे नत्थू खैरे की स्विस बैंक में एकाऊंट तो होती नहीं......और न कोई दस बीस हज़ार रुपए जमा करने के लिए स्विस बैंक का रुख़ करता है.....जिन लोगों के पैसे होंगे वो उद्योगपति भी कम ही होंगे.....क्योंकि उद्योगपति निवेश में विश्वास करता है.....स्विस बैंक में जिनके जमा पैसे होंगे....वे आला अफसर होंगे.....वो भी कम.....ज्यादा लोग तो इंडिया यानी भारत माता के सच्चे सपूत होंगे...जिन्होंने न जाने कितनी बार संविधान की शपथ खाई होगी.....भारत माता की सौगंध खाई होगी..जी हां मेरा इशारा नेताओं की तरफ ही है....और आडवाणी जी भी नेता हैं....कैटगरी एक तो सहानुभूति भी होगी ही....होनी भी चाहिए...अपने इंडिया में हर कोई अपनी बिरादरी का सहयोग करता है......आप इमानदार हैं...लेकिन बाकी के सभी हैं...मुझे शक है....और मेरा संदेह गलत नहीं.....चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनने के बाद जो सबसे पहली बात आपके दिमाग में चलेगी वो होगी अपनी सरकार को पांच साल तक बचाए रखने की....मनमोहन जी की प्राथमिकता भी यही रही....आपकी भी होगी....क्योंकि अब किसी एक पार्टी को बहुमत तो मिलने से रहा......यानी कुल मिलाकर चुनाव के बाद आप भूल जाऐंगे....कि स्विस बैंक में भारत का पैसा भी है.....होगा भी तो आपके आंकड़े कम हो जाऐंगे...जैसा कि अभी पी चिदंबरम साहब कह रहे हैं.....मनमोहन सिंह जी कह रहे हैं......लेकिन चुनाव है...जनता से कुछ न कुछ बड़ा...ठोस वादा करना है तो ये भी कह दिया......पांच साल जनता को कहां याद रहता है किस पार्टी ने क्या कहा....कब कहा....उसे तो बस दो जून रोटी की फिक्र होती है.....और चुनाव के मौसम में वैसे भी नेता ...सभी पार्टियों के इतने वादे करते हैं कि दो-चार पूरे हो गए तो समझो बहुत है.....अधिकतर तो छूट जाते हैं.....जनता भूल जाती है.....और पांच साल बाद फिर वहीं वादे...फिर वही वाणी...फिर वही जनता...फिर नई कहानी.......

3 टिप्पणियाँ:

yahi to samsya hai, netaa jo kehte hain karte nahi. Faaltu ke mudde uthate hai. Aam janta ki fikra koi nahin karta. Aam janata ko Swiss banks mein jama paison se kya lena dena?

नए लेख के इंतज़ार में

सही कहा आपने....इन नेताओं की फितरत उस ज्वालामुखी जैसी है जो कई साल शांत रहता है और एक दिन ऐसा फूटता है कि सब कुछ जला देता है...मगर कम से कम उसमें कुछ गर्माहट तो होती हैं..ये ज्वालामुखी(नेता) तो बिना लावें के ज्वालामुखी है...जो बिना मुद्दों के फड़फड़ाते हैं...