कभी स्कूलों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता था....लेकिन लगता है कभी कहा जाता होगा....आज हजार...दो हज़ार...तीन हजार रुपए मासिक शुल्क लेने वाले इन स्कूलों को मंदिर कहें तो कैसे....ये मंदिर लगते ही नहीं....क्योंकि मंदिर में वाग्देवी नहीं ...ज्ञान देने की शक्ति नहीं....ज्ञान पाने की उत्सुकता नहीं.....सुविधाओं का अंबार है.....एसी तक.......क्लासरुम से बस तक एसी.....बेमतलब..सिर्फ पैसे ऐंठने के चोंचले.....अभिभावक रुपी ग्राहकों को आकर्षित करने के तरीके.....उन अभिभावकों को जो रहते मिड्ल क्लास में हैं और दिखावा हाई क्लास की करते हैं....या करने की कोशिश करते हैं......भले खुद मां-बाप अंग्रेजी न बोल पाएं....लेकिन बेटे-बेटियों को अंग्रेजी सिखाने की ललक...उन्हें मजबूर कर देती है.....या वो कहीं न कहीं खुद को मजबूर समझने लगते हैं.....और जरा इन बेशर्म स्कूलों को देखिए.....एक स्कूल में दाखिला एक बार ही होता है....लेकिन जनाव ये मॉडर्न जमाना है....आधुनिक सोच है.....और आधुनिकतम ट्रेंड कह लीजिए.....हर साल एक ही स्कूल में बच्चे का नया दाखिला होता है.....वही जिसे एडमिशन कहते हैं.....और हर साल उसी स्कूल में नए एडमिशन की फीस होती है पांच से दस हज़ार रुपए......मां-बाप मजबूर हैं...नहीं देंगे तो जाऐंगे कहां......और सरकार और प्रशासन अंधी....क्योंकि सरकार और राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है......प्रशासन को स्पेशल कोटे से दो-चार नए एडमिशन कराने की छूट.....पिसता कौन है...आम आदमी.........मिड्ल क्लास......इन स्कूल कहे जाने वाले शिक्षा की दुकानों पर.......जहां शिक्षा भी बिकती है....नोटबुक्स भी...किताबें भी....ड्रेस भी......
और अब बात सरकार की.....देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ...हर बच्चा...हर नागरिक को शिक्षित करने के नाम पर बनती है करोड़ों की योजनाएं.....करोड़ों नहीं जनाब...अरबों रुपए की बात कीजिए.....लेकिन सरकार को इन धन्ना सेठ स्कूलों पर नज़र नहीं पड़ती...पड़ भी नहीं सकती.........क्योंकि नज़र है.....देखना चाहे तभी तो पड़ेगी.....अगर सरकार नज़र डाले तो इन कान्वेंट कहे जाने वाले स्कूलों का या तो अधिग्रहण कर ले.....या इनकी फीस की राशि तय कर दे कि बस्स ...इससे ज्यादा नहीं ले सकते...लोगे ...तो स्कूल पर से नियंत्रण खत्म......सरकार स्कूल का अधिग्रहण कर लेगी......लेकिन नहीं सरकार.....विधायक,सांसद.....और जैसा मैंने पहले कहा ये बड़े बड़े अफसरान.....इस ओर कोई तवज्जो ही नहीं देते.....चुनाव में वोट लेंगे....लेकिन इस ओर कोई बात नहीं करेंगे....अगर कर भी लिया.....तो कुछ करेंगे नहीं....क्योंकि इनका धंधा ही कुछ ऐसा है.......लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इन अँग्रेजीदां कहे जाने वाले मॉडर्न स्कूलों की फीस देशभर में एक नहीं हो सकती.....शिक्षा ...संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार है.....और इस मौलिक अधिकार से सरकार अपनी आंख कैसे मूंद सकती है........अगर मूंद रही है....या आंखें बंद रखना चाहती है तो फिर वो सरकार कैसी.....उसका तो नियंत्रण ही नहीं रहा......

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