मौसम चुनाव का है....तो हमने सोचा क्यों न कुछ बाते चुनाव की हो जाय....आखिर हजारों करोड़ ऱुपए का खर्च जो है....सरकार बनने बिगड़ने की बात जो है.....चुनाव आयोग की घोषणा के बाद नेता मांद से निकलकर शेर की तरह दहाड़ने लगते हैं.....ये अलग बात है कि हर नेता शेर नहीं होता.....जो दहाड़ता नहीं वो सबकी खेल बिगाड़ने की सोचने लगता है.....ताकि उसकी अहमियत बरकार रहे.....लोग ये समझें कि वो भी नेता है....ये अलग बात है वो हकीकत में नेता नहीं होता...नेतागिरी से उसका दूर दूर का कोई वास्ता नहीं होता.....इसी तरह चुनाव की घोषणा के साथ शुरु हो जाती है मीडिया की बहस......बात अख़बार की करें या इलेक्ट्रॉनिक चैनल की......बात तो ऐसे करेंगे जैसे ये न हो तो मुद्दे न बनें.......किसी को पता ही न चले कि फलां लोकसभा सीट से कौन गंभीर उम्मीदवार है और कौन अगंभीर......अब अख़बारों को कागज काला करने की मजबूरी है तो इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को अपना टाईम स्लॉट भरने की......हकीकत में सभी अपनी अपनी मजबूरी के मारे हैं...कुछ करना है तो चलो कुछ कर लें.....क्योंकि वोट डालने के लिए कतार में खड़ा होने वाला वोटर इनकी बातें गंभीरता से नहीं सुनता और जो इनकी बातें गंभीरता से सुनता है वो लंबी कतारों में खड़ा होकर वोट नहीं डालता......वोट का दिन यानी पिकनिक....सड़कें सूनी,गलियां सूनी....चलो क्रिकेट हो जाय...शाम तक जाकर देख आऐंगे कि बूथ पर कतार लंबी है या छोटी .......लंबी हुई तो घर आकर समोसे पकौड़े बनवाकर लुत्फ उठाया जाएगा.....छोटी हुई तो डेमोक्रेसी के नाम एक एहसान कर आऐंगे......गर्व से कहने के लिए कि हमने भी वोट दिया .......और खुदा न करे....एकाध गोलियां चलने की आवाज आए.....या बम धमाके का शोर सुनाई पड़ जाए...तो डेमोक्रेसी जाए भाड़ में......न तो मनमोहन सिंह हमारे मुहल्ले में आकर हमारी ख़बर लेंगे और न सोनिया को इतनी फूर्सत है ये जानने की ......अमित ने वोट क्यों नहीं दिया.....सुमित ने बीजेपी को क्यों दिया.....और रचित ने बीएसपी को .......वैसे भी चुनाव लड़ने के लिए किसी पढ़ाई लिखाई की जरुरत तो है नहीं.....फिर पढ़-लिखकर इस बात पर माथापच्ची क्यों करें कि कौन नेता अच्छा है.....कौन बुरा....किसकी सरकार अच्छी होगी....किसकी बुरी.....अब ये पढ़े लिखे मनमोहन ने ही क्या कर लिया.......कहते हैं विदेश से डिग्री लिए हुए हैं......कागज़ पर महंगाई कम हो रही है लेकिन जरा इनको कौन बताए कि ये गली का शनिचरा भी बता देगा कि महंगाई कितनी कम हुई है......इकोनॉमिक्स पढ़ने-पढ़ने के ढकोसले हैं बस्स......अब बीजेपी को ही ले लीजिए.......कुछ पता ही नहीं चलता कि इसके मुंह में राम है या बगल में.....कभी राम राम...तो कभी राम को राम.....एक रास्ते पर कोई चले तब तो पता चले......कुछ यही हाल बहन जी की भी है......शुरु में सत्ता सुख भोगा दल्त के नाम पर लेकिन जब लगा कि दलित बहुत दिन तक मूर्ख़ नहीं बन सकता तो सरक लिए सर्व धर्म समभाव की तरफ......अब इसके बाद किधर को जाऐंगी......एक बार हारने के बाद सोचेंगी......लाल झंडा वाले तो आजतक समझ नहीं पाए कि करें तो क्या करें.....ये अलग बात है कि एक दो राज्यों को छोड़ दें तो वोटरों ने उनसे लाल सलाम..... वो भी दूर से कर रखा है.......बाकी का हाल भी कुछ ऐसा ही है......कभी लालू को कच्चर दुश्मन मानने वाले रामविलास जब लालू से गले मिले तो ऐसा लगा कि जैसे पिछले जनम के बिछुड़ा भाई मिल गया हो.....लगे हाथ अमर अकबर एंतनी की तरह मुलायम भी साथ हो लिए.....इसीलिए आम आदमी चुनाव से दूर हो रहा है......भईया उस एलेक्शन में दूर दूर.....इस एलेक्शन में पास पास....क्यों...सब मिलकर दो पार्टी बना लो ......चुनाव का स्साला टंटा ही खत्म....पांच साल तुम लूटो ....पांच साल हम लूटें......क्योंकि लूटने के अलावा और तो कोई काम है नहीं ...सरकार मतलब लूट.....लूट सकै सो लूट.....राम राम.....

1 टिप्पणियाँ:

सही कहा, राजनीति जनता के लिए नहीं बल्कि जनता राजनीति के लिए हो गई है।
नेता निजी हित साध रहे हैं।