जब अपना ही बसेरा उजड़ जाए तो आदमी ये सोचने को मजबूर हो जाता है कि अब जाएं तो जाएं कहां.....करें तो क्या करें.....औरैय्या में पीडब्ल्यूडी इंजीनियर मनोज गुप्ता की हत्या महज़ किसी एक अधिकारी या इंजीनियर की हत्या नहीं...ये हत्या है सामाजिक व्यवस्था की.........ये बानगी है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्थाएं कितनी खोखली हो गई हैं..........ये जाहिर करता है कि विकलांग हो गई है विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र का तंत्र......इस हत्या से एक के बाद एक कई गंभीर सवाल समाज के सामने दागने शुरू कर दिए हैं.....इस हत्या के बहाने राजनीति निर्वस्त्र हो गई दिखती है......और भीख मांगता...गिड़गिड़ाता प्रशासन......ये घटना ये बताने के लिए काफी है कि समाज में रहना है तो समझौता करना सीख लो...या बागी बन जाओ.....शहीद होने के लिए तैयार हो जाओ....एम के गुप्ता की तरह........जिसकी मौत पर राजनीति होती है......सस्ती..घटिया राजनीति.....राजनीति वोट की....राजनीति नोट की......और राजनीति सत्ता पर चोट की.....मैं किसी को इमानदार नहीं कहता.....किसी को नहीं.....लेकिन चंद रूपयों के लिए किसी की मौत का सौदा किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए.....चाहे कुछ भी हो जाए......क्योंकि किसी बसेरे (घर ) के मालिक की हत्या या मौत से.....बसेरा टूट जाता है...बिखर जाता है....जैसे आंधी -तूफान में कोई झोपड़ी...या कोई कागज़ का टुकड़ा.......इंजीनियर का बसेरा ऐसे ही उजड़ चुका है.....बिखर चुका है.....उस बसेरे में रहने वाले लोगों की जिंदगी एक दिन में बदल गई....मुस्कुराहटें आंसुओं में तब्दील हो गई.....और जिंदगी के सपने सिमट से गए....ये अलग बात है कि वक्त हर जख़्म भरने की कोशिश करता है...जख़्म भर भी जाते हैं लेकिन ताउम्र दाग़ रह जाता है ...और रह जाती है वक्त के साए में यादें.....जिंदगी भर के लिए......
अब लगता है राजनीति संवेदनहीन हो गई है.....लोग अगर संवेदना दिखाते भी हैं तो सिर्फ दिखावे के लिए...अपने फायदे के लिए.....ये जताने के लिए कि हम हैं.....औरैया में इंजीनियर की हत्या के बाद यूपी में विपक्ष अचानक जीवित हो गई....धरना- प्रदर्शन,बंद,चक्काजाम, तोड़फोड़, गिरफ़्तारियां...मृतक के परिजनों से मुलाकात.....का दौर शुरू हो गया......मुख्यमंत्री को तो मानों पीसी करने का बहाना मिल गया......दूसरी पार्टियों को भी खबरों में बने रहने का......लेकिन इन सबमें अगर कुछ नहीं दिखा तो संवेदना.......मुआवजे की घोषणा,सीबीआई जांच की मांग ......मांग से इंकार......आरोपी बीएसपी विधायक की गिरफ़्तारी.....तफ्तीस....इन सबमें हर तरफ अगर कुछ नहीं दिखा तो संवेदना......विपक्ष को मुख्यमंत्री पर हमला करने का मौका मिला....दूसरी पार्टियों को बीएसपी की आलोचना करने का......और इस सबमें बेचारे बन गए उस बसेरे के लोग...जिनका अपना उनसे बिछड़ गया.....
सूबे का राजपाट संभालने वाली सीएम को हत्या में साज़िश दिखती है क्योंकि उसमें उनका एक एमएलए शामिल है...नहीं होता तो कतई नहीं दिखती...तब शायद बिना शर्त सीबीआई जांच के लिए तैयार हो जातीं....लेकिन बात पार्टी की साख की है....भले जनता भाड़ में जाए...वैसे भी राजनीति में अब जनता की फिक्र किसी को नहीं फिर मैडम माया क्यूं करें.....और जब सूबे की पुलिस जांच करेगी तब सबकुछ अपने मनमाफिक ही तो होगा.....वक्त के साथ पुलिस एक दिन बीएसपी विधायक को भी पाक साफ कह दे तो ताज्जुब नहीं होनी चाहिए.......लेकिन बात फिर भी वहीं की वहीं है.....एक घटना कुछ समय के लिए हम सबको स्तब्ध कर देती है लेकिन फिर वही पुराना राग....वही पुराना ढर्रा .....वही लोग वही काम....वही चंदा उगाही....वही चंदा देने वाले.....वही ठेकेदार...वही नेता...अफसर....सबकुछ वही......सोच लीजिए....जाएं तो जाएं कहां.......

1 टिप्पणियाँ:

dear
banse pa kade loktantra se jyada umeed mat karo
regards
great composition