मेरे एक पड़ोसी हैं....नाम लूं...चलिए...नहीं लेते हैं...बेचारे खफ़ा हो जाऐंगे....पड़ोसी हैं तो हर छोटी बड़ी बात पर चर्चा भी हो जाती है...इन दिनों पिछले कई दिनों से एक टेलीविजन सीरियल "उतरन" पर गंभीर चर्चा कर रहे हैं.....हम भी उसमें दिलचस्पी ले रहे थे क्योंकि विषय बड़ा ही संजीदा था...सीरियल में एक नौकरानी की बेटी मालकिन की बेटी के साथ खेलती है...उसे नहीं पता कि उसमें और मालकिन की बेटी में क्या फर्क है...वो भी उसकी तरह घुमना चाहती है...मॉल जाना चाहती है....वो सबकुछ करना चाहती है जो...मालकिन की बेटी करती है.....जाहिर है मालकिन इससे ख़फा खफ़ा सी रहती है.....और फिर सीरियल में एक पात्र आती है...नानी.....नानी है तो अनुभव भी होगा....अनुभव..जी तजूर्बा.....और फिर नौकरानी की बेटी को खुश करने के लिए नामी नए नए तरकीब निकालने लगी....पुराने कपड़े...खिलौने देकर नौकरानी की बेटी से पिंड छुड़ाने की कोशिश करने लगी.....अब साहब हमारे पड़ोसी हर रोज यही कहते...देखिए....इंसानियत का तो जो जमाना ही नहीं है.....एक नौकरानी की बेटी ....मालकिन की बेटी के साथ खेल भी नहीं सकती.....मैं तो ऐसा न करूं...इंसानियत भी कोई चीज़ होती है.....जूठे बचे खाने किसी को न दूं.....ये गलत है.....

दो तीन दिन गुजर गए....एक दिन पड़ोसी साहब की मिसेज ने एक स्वेटर अपनी नौकरानी को दी....स्वेटर दिखने में अच्छी थी...लेकिन थी ?....और तो और देते वक्त कहा गया मंहगी है...लेकिन मैंने सोचा कि दीवाली पर कपड़े नहीं दिए...तो चलो इस जाड़े में एक अच्छा सा स्वेटर ही दे दूं.....नौकरानी खुश...मालकिन ने इतना ख़्याल रखा....उत्साह में मेरे घर मेरी पत्नी को दिखाने आई ...मेम साहब ......आपकी पड़ोसन ने ये मंहगी स्वेटर दी है मुझे.....पांच सौ से कम की नहीं लगती न मेमसाहब......
मेरी पत्नी ने लंबी सांस लेकर हम्म्म्म्म्म्म् .....................कहा....उसके जवाब पर मुझे थोड़ी नाराज़गी हुई.....थोड़ा खुश होकर कह देती ..बढ़िया है.....तो क्या बिगड़ जाता......लेकिन जब हकीकत पता चली तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई...स्वेटर वीकली हाट से सत्तर रूपए में खरीदी गई थी......

1 टिप्पणियाँ:

चलो कम से कम इतनी दरियादिली तो दिखा ही दी कि 70 रुपये की स्वेटल ला दी वरन् आज के दौर में कोई इतना भी कहां करता है।