पैसेंजर ट्रेन में भीड़ वैसे ही बहुत ज्यादा थी...फिर भी खोमचे वाले बेचने से बाज नहीं आ रहे थे...चने ले लो...भूने चने...लेमनचूस....एक रूपए में बाल बच्चा खुस.......नारियल...एक रुपए..दो रुपए...ले लो ताजा नारियल....इन्हीं आवाजों के बीच एक ट्रेन में एक मैगजीन वाला भी चढ़ा.....मैगजीन ....नई पुरानी मैगजीन.....देशभक्त शहीदों की किताबें भी.....गीत गानों की किताबें...फिल्मी गाने सुने सुनाएं लाइफ बनाएं....ये देखिए बच्चों की कहानियां....जो बनाएगी आपके बच्चों को समझदार...सिखाएगी जिंदगी के नए मायने...ये देखिए बड़े लेखकों के पुराने उपन्यास.....बाज़ार में नए उपन्यास की कीमत सौ रूपए से कम नहीं होगी ..लेकिन यहां मिलेगी बस पच्चीस में...जिसे लेना हो भाी लोग आवाज देकर मांग लेंगे..... लेकिन किसी पैसेंजर ने तवज्जो नहीं दी....मैगजीन वाला आधे से ज्यादा डिब्बे में घुम चुका था...किसी ने कोई किताब ..कोई मैगजीन नहीं मांगी ...मुझे लगा लगता है लोग पढ़ने की आदत छोड़ चुके हैं....उनके जीवन में पढ़ने के लिए या तो समय नहीं....या फिर टीवी देखना ज्यादा पसंद करते हैं.....तभी मैगजीन वाले की आवाज़ आई.....और ये देखिए.....ख़ास आपके लिए .....बच्चों को न दिखाएं क्योंकि इसमें है बहुत कुछ.....फोटो ऐसे ऐसे कि आप सबकुछ भूल पहले उसे देखेंगे.....नई हिरोईनों की तस्वीरें भी मिलेंगी....अंदाज ऐसे कि बस पूछिए मत.....मॉडलों की गर्मागर्म तस्वीरें.....और....भाई जिन्हें चाहिए आवाज़ देकर मांग लेंगे...कीमत बस बीस ...बीस ...बीस रूपए......एक साथ कई कोनों से आवाज़ आई...अरे ...एक इधर देना......जरा...किताब दिखा.....दो लेने पर कम होगा क्या......

1 टिप्पणियाँ:

बेहतरीन प्रस्तुति...