उस शनिवार भी बस में जबरदस्त भीड़ थी...लोग एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे....कोई एक पैर पर खड़ा था...तो कोई बस किसी तरह खड़े होने की हालत में था.....तभी एक आवाज़ आई ...बेटा जरा सरक जा...बुढ़ा हूं....पैर दुखने लगे हैं....जवाब में बेजान सी उत्तर सुनाई पड़ी...बड़ी मुश्किल से तो पिछले स्टॉप पर बैठने की जगह मिली है....एक की जगह में दो भला बैठ सकते हैं क्या.....तभी बस हिचकोले के सात रुकी ...कई और सवारी अंदर आ गए...कुछ उतरे भी होंगे...पर हालत में कोई फर्क नहीं पड़ा....इस स्टॉप से अंदर आई नई सवारियों में एक संभ्रान्त सी लड़की भी थी....काफी आधुनिक लग रही थी...परिधान से भी...मेकअप से भी....अरे ये क्या....जिस लड़के ने अभी अभी बूढ़े बाबा को बैठने की जगह नहीं दी थी...लड़की के फुसफुसाने पर खिसक गया....और लड़की बैठ गई....।